
तनवीर जाफ़री
सीरिया की सत्ता की बागडोर इस समय अहमद अल-शरा उर्फ़ अबू मोहम्मद अल-जुलानी नमक एक ऐसे विवादास्पद व्यक्ति के हाथों में है, जो एक आतंकवादी नेता से सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचा है। अलक़ायदा से निकले जुलानी के आतंकी संगठन हयात तहरीर अल-शाम HTS को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध किया था। पहले अमेरिका ने जुलानी पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम भी रखा था। बाद में 14 मई 2025 को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जुलानी से मुलाक़ात की और सीरिया पर लगे प्रतिबंध हटा दिए, जिससे उनकी सरकार को मान्यता मिली। इस मुलाक़ात के समय सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी मौजूद थे। ग़ौर तलब है कि बशर अल-असद की सरकार का पतन 8 दिसंबर, 2024 को हुआ, जब विद्रोही गुटों, विशेष रूप से अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नेतृत्व वाले हयात तहरीर अल-शाम (HTS) ने सीरिया की राजधानी दमिश्क पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद अपने परिवार के साथ देश छोड़कर रूस चले गये। असद को रूस में राजनीतिक शरण दी गई। विद्रोहियों ने 27 नवंबर, 2024 को शुरू हुए एक तीव्र हमले के बाद, केवल 11 दिनों में ही बिना किसी ख़ूनी संघर्ष के असद सरकार को उखाड़ फेंका था। बशर अल-असद को सत्ता से हटाने व अबू मोहम्मद अल-जुलानी को आतंकी से सीरिया का अंतरिम राष्ट्रपति बनाने तक के सफ़र में अमेरिका व इस्राईल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अमेरिका व इस्राईल ने ऐसा इसलिये किया था क्योंकि बशर अल-असद का न केवल रूस की ओर झुकाव था बल्कि उन्हें ईरान समर्थित भी माना जा रहा था। इसीलिये शिया सुन्नी मतभेदों का लाभ लेकर कट्टर सुन्नी विचारधारा वाले अबू मोहम्मद अल-जुलानी को सत्ता सौंपी गयी।
आज उसी सीरिया पर इस्राईल तरह तरह के बहाने बनाकर हमलावर है।इस्राईली वायुसेना ने गत 16 जुलाई को सीरिया की राजधानी दमिश्क में सीरियाई सेना के मुख्यालय और दक्षिणी सीरिया के दर्रा और स्वीदा क्षेत्रों में सैन्य ठिकानों पर हवाई हमला किया । इस्राईल की ओर से हमले का उद्देश्य द्रूज़ व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा के लिए उठाया जाने वाला रणनीतिक क़दम बताया गया। जबकि राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि ग़ज़ा में नरसंहार की इबारत लिखने वाली इस्राईली सेना का सीरिया में द्रूज़ समुदाय की सुरक्षा के लिए खड़े होने की बात करना ही अपने आप में हास्यास्पद है। दरअसल इस हमले का मक़सद व सन्देश सीरिया का असैनिकीकरण करना है। और इस बहाने वह अपनी सीमा से लगते सीरिया पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुये है। अपनी इसी दूरगामी लक्ष्य को साधते हुये इस्राईल ने विशेष रूप से 2024 और 2025 में, सीरिया में कई हवाई और ज़मीनी हमले किए हैं। इन हमलों का मुख्य लक्ष्य सीरिया के सैन्य ठिकानों, हथियार भंडारों, और ईरान समर्थित समूहों (जैसे हिज़बुल्लाह) को निशाना बनाना रहा है। 2024 के दिसंबर में तो इस्राईल ने सीरिया के 250 से अधिक ठिकानों पर हमला किया, जिसमें 70-80% रणनीतिक सैन्य संपत्तियों को नष्ट करने का दावा किया गया था । इसी तरह इस्राईल ने गोलान हाइट्स के पास बफ़र ज़ोन पर नियंत्रण बढ़ाया और दक्षिणी सीरिया में द्रूज़ समुदाय की सुरक्षा का हवाला देते हुए हमले किए। इस्राईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, ने इन हमलों को राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवादी समूहों या शत्रुतापूर्ण ताक़तों (जैसे ईरान और हिज़बुल्लाह) को सीरिया में मज़बूत होने से रोकने के लिए आवश्यक बताया।
वर्तमान समय में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अबू मोहम्मद अल-जुलानी को अमेरिका व इस्राईल ने सत्ता पर बिठाकर इतना अलग थलग व असहाय कर दिया है कि वह न तो रूस की ओर देख सकता है न ईरान की ओर। उल्टे सीरिया की रही सही सैन्य क्षमता को भी समाप्त करने की भरपूर कोशिश की जा रही है। हालाँकि ताज़ा प्राप्त समाचारों के अनुसार इस्राइल और सीरिया के बीच युद्धविराम (सीज़ फ़ायर) की घोषणा की गई है। गत 17 जुलाई को, सीरिया के दक्षिणी शहर सुवायदा में ड्रूज़ अल्पसंख्यक और बेदुईन समुदायों के बीच हिंसक झड़पों के बाद, जिसमें इस्राइल ने हस्तक्षेप किया था, एक युद्धविराम पर सहमति बनने की ख़बर है । अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने घोषणा की है कि इस्राइल सहित सभी पक्षों ने युद्ध विराम के लिए सहमति जताई है। इस युद्ध विराम के के तहत सीरियाई सेना सुवायदा से वापस हट रही है, और ड्रूज़ नेताओं के साथ एक समझौता हुआ है जिसमें सैन्य कार्रवाइयां पूरी तरह से रोकने और क्षेत्र को सीरियाई राज्य में पूरी तरह से एकीकृत करने की बात शामिल है। अमेरिकी दूत टॉम बैरक ने भी पुष्टि की है कि इस्राइल और सीरिया ने तुर्की, जॉर्डन और अन्य पड़ोसी देशों के समर्थन से युद्ध विराम पर सहमति जताई है। इस्राइल ने सुवायदा में सीरियाई आंतरिक सुरक्षा बलों को 48 घंटों के लिए सीमित प्रवेश की अनुमति भी दी है ताकि व्यवस्था बहाल की जा सके। इन्हीं ख़बरों के बीच कुछ ड्रूज़ नेताओं, जैसे शेख़ हिकमत अल-हजरी, ने इस युद्धविराम को ख़ारिज कर दिया है और लड़ाई जारी रखने की बात कही है, जिससे युद्ध विराम की स्थिरता पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसी वजह से यह युद्धविराम नाज़ुक भी माना जा रहा है, क्योंकि पहले भी एक युद्धविराम कुछ ही घंटों में टूट चुका है। स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है, और यह स्पष्ट नहीं है कि यह समझौता लंबे समय तक कायम रहेगा भी अथवा नहीं ।
परन्तु बशर अल-असद को सत्ता से बेदख़ल करने से लेकर अपने पिट्ठू अंतरिम राष्ट्रपति जुलानी के दौर में भी सीरिया को सैन्य विहीन करने के लिये चलाया जाने वाला इस्राईली सैन्य अभियान इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफ़ी है कि गोलान की पहाड़ियों पर क़ब्ज़ा जमाने के बाद अब इस्राईल की कुदृष्टि सीरिया पर लगी हुई है। और कोई आश्चर्य नहीं कि इसके लिये ख़ुद अंतरिम राष्ट्रपति अबू मोहम्मद अल-जुलानी को ही अमेरिका-इस्राईल का मोहरा बनने के लिये बाध्य होना पड़े। पूरे विश्व के लिये यह आँखें खोलने का अवसर है और मध्य एशिया में अमेरिकी मोहरे के रूप में इस्तेमाल किये जा रहे इस्राईल के इरादों को समझने का वक़्त है। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े के बड़े हिस्से पर क़ब्ज़े के बाद अब ग़ज़ा के नरसंहार से लेकर सीरियाई हमलों तक इस्राईल ‘ग्रेटर इस्राईल’ के निर्माण की राह पर आगे बढ़ने के लिये प्रयासरत है ?