संजय सक्सेना
पूर्वांचल की धरती पर ही अब 13 सीटों चुनाव बचा है। यह काफी हॉट सीटें मानी जाती हैं। यहां मतदाता अपनी परेशानियों और मुद्दों को लेकर बंटे हुए नजर आ रहे हैं। इसी के चलते सातवें चरण में मंदिर, मजहब, आरक्षण, बेरोजगारी और महंगाई सरीखे तमाम मुद्दों की चर्चा हो हरी है, पर कई जगह इन तमाम मुद्दों के अतिरिक्त जातिगत समीकरण भी हावी दिख रहे हैं। मतदाताओं पर जातीय अस्मिता का सवाल इतना छाया हुआ है कि उसके सामने दूसरे मुद्दे गौड़ हो गए हैं। छठवें चरण की 14 सीटों पर ऐसा ही नजारा दिखा। अब अंतिम चरण के लोकसभा क्षेत्रों में भी मतदाताओं के दिलो-दिमाग पर जाति ही सबसे ऊपर दिखाई दे रही है। 13 सीटों पर पहली जून को मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे।
कुर्मी समाज को भाजपा अपने साथ मानती रही है। पिछले चुनावों में यह समाज पार्टी के साथ दिखा भी। इस चुनाव में पार्टी ने कई प्रत्याशी बदले, लेकिन इस समीकरण की ओर ध्यान नहीं दिया। देवीपाटन मंडल, बस्ती मंडल और अयोध्या मंडल में एक भी कुर्मी उम्मीदवार नहीं दिया। राज्य सरकार में भी इस समाज की हिस्सेदारी नहीं थी। बीजेपी से कथित तौर पर चूक हुई तो इंडी गठबंधन ने बस्ती, गोंडा, श्रावस्ती और अंबेडकरनगर में कुर्मी समाज के प्रत्याशी उतारकर भाजपा के कोर वोटबैंक में सेंध लगाने का दांव चल दिया है। इंडिया और एनडीए प्रत्याशी में से कौन जीतेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन जीत-हार का अंतर ज्यादा नहीं रहता नहीं दिख रहा है। मुकाबला कांटे का हो सकता है। चर्चा यह भी है कि कुर्मी वोटरों में सेंधमारी में इंडी गठबंधन काफी हद तक सफल हुआ है।
इसी वजह से छठें चरण में 25 मई को सुल्तानपुर में जहां आठ बार की सांसद व भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी मैदान में थीं उन्हें यूं तो सभी वर्गों का समर्थन मिला। पर, निषाद मतों को साधने के लिए उन्होंने खास प्रयास करना पड़ा। निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद की सभा कराई। वहीं, सपा प्रत्याशी के एमवाई (मुस्लिम व यादव) फैक्टर में कुछ क्षत्रिय मतदाताओं का साथ मिलने से लड़ाई कांटे की हो गई है।
हर सीट पर पार्टियों का अलग-अलग दांव है। कैसरगंज और डुमरियागंज में गठबंधन ने ब्राह्मण प्रत्याशी का दांव चला है। जाति, आरक्षण व संविधान की बात करने के बावजूद कई जगह गठबंधन ब्राह्मण मतों में सेंध लगाता नजर आया है। दोनों ही सीटों पर भाजपा और सपा प्रत्याशी के बीच ब्राह्मण मतदाता बंटते नजर आए। दिलचस्प बात है कि डुमरियागंज में आजाद समाज पार्टी से चौधरी अमर सिंह के मैदान में होने से कुर्मी समाज का एक हिस्सा उनके साथ लामबंद नजर आया। संतकबीरनगर में भी जातीय समीकरण हावी रहे।
छठें चरण में आजमगढ़ और जौनपुर में तो एमवाई समीकरण ने खूब काम किया। दलितों के कुछ वोट भी सपा को मिले हैं। भाजपा प्रत्याशी को सवर्ण मतदाताओं के साथ ही गैर यादव ओबीसी का समर्थन मिला। भदोही में सवर्ण और बिंद मतदाता भाजपा के पाले में रहे, तो टीएमसी प्रत्याशी ने ब्राह्मण मतों का बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाबी पाई। प्रतापगढ़ में भी मुद्दों से ज्यादा जातीय समीकरण हावी रहे।
एक जून को महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज में चुनाव होना है। इन सीटों पर भी मतदाता मुद्दों की चर्चा तो कर रहे हैं, पर वोट देने का आधार पूछने पर यही कहते हैं कि जिधर उनकी बिरादरी के सब लोग जाएंगे, उधर का ही रुख करेंगे। वे मुद्दों के बजाय ब्राह्मण, ठाकुर, कुर्मी, निषाद आदि जातीय पहचान में ही बंटे दिख रहे हैं।