तय हो चुका है, देश का अगला राष्ट्रपति

सीता राम शर्मा ‘चेतन’

राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हो गए और देश का अगला राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ही होंगी, यह भी तय हो चुका है । जब से राष्ट्रपति के लिए भाजपा ने उड़ीसा की नेता और झारखंड की भूतपूर्व राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया था, कई विपक्षी दलों ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया था । सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह कि विपक्षी उम्मीदवार के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि भाजपा द्रोपदी मुर्म के नाम की घोषणा पहले कर देती तो विपक्षी उम्मीदवार की जरूरत ही नहीं पड़ती । महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्भव ठाकरे को भी अपने सांसदों के दबाव में द्रोपदी मुर्म को समर्थन देने की घोषणा करनी पड़ी । राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि विपक्षी दल के राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने अपने चुनावी कैंपेन का समापन करते हुए थकी हारी ऊँची आवाज में जो अंतिम निवेदन किया था – सभी सांसदों और विधायकों से अनुरोध है कि वे आत्मा की आवाज पर अपना मतदान करें, उसे मानते हुए भाजपा के शत्रुदल के रूप में विख्यात हो चुकी कांग्रेस के भी कई सांसदों और विधायकों के द्वारा अपने मत का सदुपयोग द्रोपदी मुर्म के पक्ष में ही किया गया होगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए । कुछ लोगों के द्वारा तो इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की खबरें भी आ रही हैं । इस राष्ट्रपति चुनाव और उसके आने वाले नतीजे का यदि इमानदार विश्लेषण किया जाए तो कुछ बेहद जरूरी तथ्य और सत्य बेहद विचलित करने वाले हैं ।

अभियान के दौरान कई भारतीय राजनीतिक दलों और उसके सांसदों, नेताओं ने द्रोपदी मुर्मू के बारे में जिस भाषा और जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है वह देश का नेतृत्व करते राजनीतिक दलों और राजनेताओं के चरित्र और भाषाई पतन को शर्मनाक तरीके से उजागर करने वाला है । उससे भी चिंतनीय स्थिति देश के सर्वोच्च पद के लिए उनके अपने उम्मीदवार के चयन को लेकर है, जिस पद की गरिमा और उपयोगिता देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । हालाकि भारत के संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल को बहुत ज्यादा अधिकार नहीं दिया गया है और ये पद कार्यपालिका को उचित मार्गदर्शन देने और उसे निरंकुश होने से बचाने के लिए हैं, बावजूद इसके इनके लिए वैसी भाषा का इस्तेमाल कदापि नहीं किया जाना चाहिए, जैसी भाषा का इस्तेमाल इस चुनाव में कुछ दलों और नेताओं ने किया । वास्तव में इन दलों के कुछ मानसिक विकलांगता के शिकार नेताओं ने मुर्म के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल किया है और लगभग पूरे विपक्ष ने उस पर चुप्पी साधे रखी, वह इनकी नीति, नीयत और समझ को भी उजागर करने वाली है, जो किसी भी स्थिति में नहीं होनी चाहिए । अब बात विपक्षी उम्मीदवार की तो उसके लिए यशवंत सिन्हा का चयन सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया गया कि वे प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत धूर विरोधी कहे और माने जाते हैं । अर्थात आशय बहुत स्पष्ट है कि देश के राष्ट्रपति, जिससे निष्पक्षता की आशा खुद विपक्ष रखता है, उसने एक ऐसे पक्षपाती उम्मीदवार का चयन किया था जिसके निष्पक्ष होने की दूर-दूर तक संभावना भी नहीं थी और यह बिल्कुल स्पष्ट था कि वह जीतने के बाद अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सरकार द्वारा देशहित के लिए किए जाने वाले बड़े और महत्वपूर्ण फैसलों को भी गलत मानसिकता और तरीके से प्रभावित करने के साथ खुद सरकार का मुख्य विपक्ष बनने में कोई कोर कसर नहीं रखते । यशवंत सिन्हा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जम्मू-कश्मीर में अपनी जिस नीयत का पर्दाफाश किया और कई जगहों पर देश की सरकार के खिलाफ जिस तरह भाषण दिया, उससे ऐसा महसूस हुआ कि वे खुद एक विपक्षी दल के रूप में केंद्र सरकार के विरूद्ध चुनाव लड़ रहे थे । मुझे लगता है यदि निश्चित हो चुकी हार के बाद पूरी इमानदारी से वे खुद अपनी आत्मा की आवाज सुन सके तो इस दौरान अपनी गलतियों के लिए खुद को कभी माफ नहीं कर पाएंगे और यथाशीघ्र अपने राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लेंगे । खैर, वे क्या करेंगे और आगे के अपने जीवन को कैसे जियेंगे, इस पर कोई टीका टिप्पणी करने या सलाह देने की जरूरत नहीं, क्योंकि इसके लिए वे खुद को बहुत ज्यादा समझदार समझते हैं । फिलहाल बात सिर्फ और सिर्फ देश की अगली संभावित राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की, तो इस पर इतना तो बहुत विश्वास के साथ साफ तौर पर कहा या लिखा जा सकता है कि एक राष्ट्रपति के रूप में वे अपने पद की गरिमा और अधिकार क्षेत्र का बेहतर सदुपयोग करेंगी । जिन्हें ऐसा नहीं लगता, वे या तो खुद गलत हैं या फिर उन्होंने वास्तव में द्रोपदी मुर्मू के व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन को समझने का इमानदार प्रयास ही नहीं किया है । झारखंड की राज्यपाल रहते हुए कई अवसर पर द्रोपदी मुर्मू ने जिस तरह भाजपाई सरकार को आईना दिखाया, मार्गदर्शन दिया, उसे झारखंड की जनता ने बखूबी महसूस किया है । झारखंड की राज्यपाल के रूप में गरीबी उन्मूलन, शैक्षणिक सुधार और नशामुक्ति को लेकर कई बार व्यक्त की गई उनकी चिंता और सरकार को दिए गए सही मार्गदर्शन को याद करते हुए व्यक्तिगत तौर पर मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वे देश की श्रेष्ठ, सर्वमान्य और महान राष्ट्रपति सिद्ध होंगी । जिसके प्रमुख गवाह विपक्षी दल भी होंगे । भावी महामहिम को उनके सफल कार्यकाल की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ !