एक महीने की है बात, पाकिस्तान नहीं है पूर्णकालिक संयुक्त राष्ट्र संघ अध्यक्ष

It is a matter of one month, Pakistan is not the full-time President of the United Nations

संजय सक्सेना

भारत-पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों के बीच पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की मासिक रोटेशनल अध्यक्षता संभाले जाने से भारत के एक विशेष वर्ग में बहुत तीखी प्रक्रिया हो रही है। सोशल मीडिया पर भी मोदी सरकार के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे मोदी सरकार की विदेश नीति पूरी तरह से पिट गई है।पहली नजर में यह घटना भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनावपूर्ण संबंधों के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण लगती है,लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल, पाकिस्तान को यह जिम्मेदारी जनवरी 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 में से 182 वोटों के साथ अस्थायी सदस्य चुने जाने के बाद मिली है। यह अध्यक्षता, हालांकि प्रतीकात्मक और केवल एक महीने के लिए है, फिर भी पाक का यह छोटा सा कार्यकाल भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक चुनौतियां पेश कर सकता है, विशेष रूप से तब जब पाकिस्तान लम्बे समय से कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने के लिये प्रयासरत है।

गौरतलब हो, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता एक रोटेशनल प्रक्रिया है, जिसमें 15 सदस्य देशों (5 स्थायी और 10 अस्थायी) को वर्णानुक्रम के आधार पर हर महीने यह जिम्मेदारी मिलती है। इस दौरान अध्यक्ष देश परिषद की बैठकों का एजेंडा तय करता है, प्रेसिडेंशियल स्टेटमेंट जारी करता है, और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा को दिशा देता है। वैसे पाकिस्तान ने अपनी अध्यक्षता की शुरुआत में ही कश्मीर मुद्दे को उठाकर भारत को असहज करने की कोशिश की है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत असीम इफ्तिखार अहमद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का प्रमुख कारण बताते हुए इसे क्षेत्रीय स्थिरता और मानवाधिकारों के लिए खतरा करार दिया। यह कदम भारत की आशंकाओं को सही साबित करता है, जो पहले से ही मानता था कि पाकिस्तान इस मंच का दुरुपयोग भारत के खिलाफ प्रचार के लिए करेगा।

गौर करने वाली बात यह भही है कि पाकिस्तान की रणनीति में दो प्रमुख कार्यक्रम शामिल हैं, जो 22 और 24 जुलाई को आयोजित होंगे। पहला, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना और दूसरा, संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के बीच सहयोग पर केंद्रित है। इन दोनों बैठकों की अध्यक्षता पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार करेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान इन मंचों का उपयोग कश्मीर और अन्य मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए कर सकता है, जिससे भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ सकता है।

वैसे जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की यूएनएससी अध्यक्षता का भारत पर प्रभाव सीमित लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है। सबसे पहले, कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण करने की पाकिस्तान की कोशिश भारत के लिए एक चुनौती है। भारत ने हमेशा कश्मीर को अपना आंतरिक मामला माना है और इसे द्विपक्षीय रूप से हल करने की वकालत की है। लेकिन, यूएनएससी जैसे मंच पर इस मुद्दे को उठाने से पाकिस्तान वैश्विक समुदाय का ध्यान इस ओर खींच सकता है, जिससे भारत को अपनी स्थिति को और मजबूती से रखना होगा।

दूसरा, पाकिस्तान की अध्यक्षता के दौरान भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीति को और सशक्त करना होगा। भारत ने हाल ही में यूएन मुख्यालय में द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ टेररिज्म प्रदर्शनी आयोजित कर पाकिस्तान की आतंकवाद में कथित भूमिका को उजागर किया था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस दौरान स्पष्ट किया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को वैश्विक मंचों पर और मजबूती से उठाएगा। लेकिन, पाकिस्तान की अध्यक्षता भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती पेश करती है, क्योंकि वह न्छैब् के एजेंडे को प्रभावित कर सकता है।

तीसरा, भारत में विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने इस घटना को मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता करार दिया है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया कि पहलगाम में हाल के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को यह जिम्मेदारी मिलना भारत की विदेश नीति की नाकामी को दर्शाता है। इससे भारत में आंतरिक राजनीतिक दबाव भी बढ़ सकता है, जो सरकार के लिए एक अतिरिक्त चुनौती है।

जबकि सरकारी पक्ष का कहना है भारत इस स्थिति से निपटने के लिए पहले से ही सक्रिय है। वह वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता रहेगा और यूएनएससी में अपने सहयोगी देशों, जैसे अमेरिका, रूस, फ्रांस, और ब्रिटेन, के समर्थन का उपयोग करेगा। ये देश पहले भी कश्मीर मुद्दे पर भारत के पक्ष में रहे हैं। इसके अलावा, भारत अपनी कूटनीतिक ताकत का उपयोग कर यह सुनिश्चित करेगा कि पाकिस्तान का कोई भी प्रस्ताव परिषद में समर्थन न पाए, क्योंकि किसी भी प्रस्ताव को पास होने के लिए सभी पांच स्थायी सदस्यों की सहमति आवश्यक है।

लब्बोलुआब यह है कि पाकिस्तान की यूएनएससी अध्यक्षता भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित है। यह अध्यक्षता केवल एक महीने की है और इसमें कोई विशेष शक्ति नहीं है। फिर भी, भारत को सतर्क रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान इस मंच का उपयोग अपनी छवि सुधारने और भारत के खिलाफ प्रचार के लिए कर सकता है। भारत की मजबूत कूटनीति और वैश्विक समर्थन इस चुनौती का सामना करने में सक्षम है, लेकिन यह स्थिति भारत की विदेश नीति की मजबूती और सतर्कता की परीक्षा होगी।