प्रदीप शर्मा
हाल ही में सम्पन हुए भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग के समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसे पर अपनी बात रखी जिसका अर्थ अलग अलग लोग अलग अलग लगा रहे है। लेकिन अब खुद प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि ऐसा मुगालता पालना ठीक नहीं है। उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सम्भोधित करते हुए कहा कि मोदी आएंगे और चुनाव जितवा देंगे, ऐसी सोच रखना घातक है। पीएम ने पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को जमकर पसीना बहाने की सलाह दी। उनका इशारा साफ है कि चुनावी राजनीति में किसी एक शख्सियत के भरोसे लंबी पारी नहीं खेली जा सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे वक्त में आगाह किया है जब हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अपने चिर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा है। बीजेपी के पास इस बार हिमाचल प्रदेश की राजनीतिक परंपरा बदलने का बड़ा मौका था। पार्टी अगर इस बार जीत जाती तो उसके नाम सत्ता बचाने का सेहरा सज जाता। इस पहाड़ी राज्य में लंबे समय से हर चुनाव में सत्ता बदल जाने की परंपरा चलती आ रही है। इसी परंपरा को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां कीं, लेकिन बीजेपी सिर्फ एक प्रतिशत वोटों के अंतर से हार गई।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के रूप में पार्टी की दो बड़ी शख्सियतें हिमाचल से ही आती हैं। फिर भी वहां पार्टी सत्ता बचाकर रिकॉर्ड बनाने से चूक गईं। कुल 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में बीजेपी 25 सीटों पर सिमट गई जबकि कांग्रेस पार्टी ने 40 सीटें लाकर राज्य की सत्ता पलट दी। मजे की बात है कि कांग्रेस पार्टी को कुल 43.90 प्रतिशत वोट आए जबकि बीजेपी को 43 प्रतिशत। यानी, दोनों पार्टियों के बीच एक प्रतिशत से भी कम वोटों का अंतर रहा।
ऐसा माना जाता है कि देशभर में मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग बन गया है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर मर-मिटने को तैयार है। कहा जाता है कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं के कार्यों, उनकी छवि, पार्टी के प्रभाव के कारण जो वोट मिलते हैं, उससे इतर पीएम के चेहरे पर कुछ और वोट मिल जाते हैं। ऐसा दूसरी किसी पार्टी के साथ नहीं है। बीजेपी को पछाड़ने की कोशिशों में जुटे किसी भी दल के पास ऐसा नेता नहीं है जिसके प्रभाव से पार्टी को अतिरिक्त वोट मिल जाए। लेकिन पीएम मोदी को भी पता है कि उनका जलवा हर बार नहीं चल सकता है। इसके उदाहरण मिलते रहे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की लहर चली और 10 सालों से केंद्र में काबिज कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार का पतन हो गया। लेकिन कुछ महीनों बाद ही दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। नए-नए पीएम बने नरेंद्र मोदी को लेकर तब मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में गजब का उत्साह था। तब बीजेपी का जोश दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। फिर भी दिल्ली में बीजेपी को सबसे बड़ी हार मिली।
नरेंद्र मोदी की कठिन मेहनत के बावजूद बीजेपी को एक बड़ी हार बिहार में भी मिली थी। प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था। वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। चूंकि नीतीश ने सीधा नरेंद्र मोदी के विरोध में ही गठबंधन तोड़ा था, इसलिए उन्हें इसका सबक सिखाने का धुन बीजेपी पर सवार था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार की सत्ता से नीतीश के सफाये के लिए अपना दमखम लगा दिया।
बीजेपी ने प्रदेश में कुल 850 रैलियां कीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की भी ताबतोड़ रैलियां हुईं। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से अकेले पीएम मोदी ने बिहार में 26 चुनावी रैलियां की थीं। पीएम ने चुनाव के वक्त आखिरी तीन दौरों में 17 जनसभाएं की थीं। वहीं, अमित शाह ने 85 रैलियां कीं। लेकिन नतीजे आए तो आरजेडी-जेडीयू का गठबंधन विजयी रहा। नीतीश को नेस्तनाबूद करने का बीजेपी के सपने पर पानी फिर गया। पार्टी को सिर्फ 53 सीटें आईं जबकि जेडीयू ने 71 सीटें लेकर उसे मात दे दी। 80 सीटें हासिल कर आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
हालांकि, दिल्ली, बिहार और हिमाचल जैसे उदाहरण राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से भी सामने आए। बीजेपी को इन चुनावों में हार मिली। वह अलग बात है कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश में बाद में राजनीति का पासा पलटा और बीजेपी फिर से सत्ता में आ गई। हमेशा चौकन्ना रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग में ये सारी बाते हैं। वो जानते हैं कि व्यक्ति आधारित पार्टी का भविष्य कभी भी डगमगा सकता है। इसलिए वो संगठन की मजबूती और हरेक की मेहनत पर जोर दे रहे हैं। उन्हें पता है कि एक बार नेताओं-कार्यकर्ताओं में यह सोच घर कर जाए कि कोई मोदी का जादू चलना ही चलना है तो फिर वो न जमीन पर काम करेंगे और न चुनावों में मेहनत। यह संभव नहीं है कि हर चुनाव में जादू चल ही जाए, भले ही व्यक्ति की शख्सियत कितनी भी जादूई क्यों न हो।