ओम प्रकाश उनियाल
हिन्दी भले ही सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। देश के गैर-हिन्दी भाषियों के लिए भारत सरकार द्वारा भी हिन्दी सीखने के कोर्स चलाए जा रहे हैं। अनेक हिन्दी स्वैच्छिक-संस्थाएं भी विभिन्न हिन्दी पाठ्यक्रम संचालित कर रही हैं। कई हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। बेशक, साथ-साथ दम भी तोड़ रही हैं। सामाजिक पत्रकारिता में भी हिन्दी का प्रचलन खूब जम रहा है। हिन्दी फिल्में और फिल्मों के गानों के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार बखूबी होता आ रहा है। भारत में ही नहीं विदेशों में जहां-जहां भारतीय रहते हैं हिन्दी भाषा बोलते हैं। कुछेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हो रहा है। यहां तक कि कई देश ऐसे हैं जहां के लोग हिन्दी भाषा सीखने में विशेष रुचि दिखा रहे हैं। विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा सीखने का पाठ्यक्रम भी चलाया जाता है। फिर भी हिन्दी बेचारी बनी हुई है। जब हम हिन्दी बोलते हैं तो बीच-बीच में आंग्ल-भाषा (अंग्रेजी) के शब्दों का प्रयोग कर खुद को सभ्य और उच्च- शिक्षित समझने का दंभ भरते हैं। और तो और आजकल कुछ हिंदी अखबार तो आधी आंग्ल और आधी हिन्दी का प्रयोग धल्लड़े से कर रहे हैं। मसलन शीर्षक आंग्ल और सामग्री हिन्दी।
दूसरी भाषा को सीखने-बोलने में किसी प्रकार की बुराई नहीं होती। संविधान सभा के अनुसार हिन्दी को राष्ट्रभाषा अर्थात् कामकाजी भाषा का दर्जा मिला हुआ है। हिन्दी मातृभाषा नहीं है। भारत में क्षेत्रों के अनुसार अन्य मातृभाषाएं भी बोली जाती हैं। हर भारतवासी को चाहिए कि हिन्दी को शीर्ष तक पहुंचाने के लिए अधिक से अधिक हिन्दी सीखें, पढ़ें और बोलें।
-ओम प्रकाश उनियाल