
सुनील कुमार महला
आवारा कुत्ते और आवारा पशु विशेषकर शहरों में आमजन के लिए एक बड़ी समस्या रहा है। हाल ही में इस क्रम में माननीय 11 अगस्त 2025 सोमवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के आतंक और रेबीज(कुत्ते के काटने से होने वाली बीमारी) से लोगों की मौत को गंभीर मानते हुए एक सख्त आदेश जारी किया है कि राजधानी दिल्ली में सभी आवारा कुत्तों को आबादी वाले क्षेत्रों से हटाकर आठ सप्ताह में शैल्टर में भेजा जाए। पाठकों को बताता चलूं कि कोर्ट ने इस संबंध में यह बात कही है कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन इस प्रक्रिया का विरोध करता है, तो उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई(कंटेप्ट आप कोर्ट) होगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने भी एक अलग आदेश में प्रदेश में कुत्तों व आवारा पशुओं को सड़क से हटाने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यह उम्मीद जताई जा सकती है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों में भी आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं को देखते हुए ऐसे ही कदम उठाए जाएंगे। वास्तव में, सुप्रीम कोर्ट व राजस्थान हाईकोर्ट का फैसलों से कहीं न कहीं आम आदमी को राहत मिल सकेगी। आज आए दिन हमें मीडिया की सुर्खियों में मनुष्य को आवारा व लावारिश कुत्तों द्वारा काटने, घायल करने की खबरें पढ़ने सुनने को मिलती रहतीं हैं। रेबीज वायरस से होने वाली एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है, जो कुत्तों, बिल्लियों, बंदरों के काटने से हो सकती है। यदि रेबीज का समय पर इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा हो सकती है। दरअसल, यह एक वायरल संक्रमण है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर संक्रमित जानवर के काटने या खरोंचने से फैलता है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों पर हमला करने से संबंधित एक समाचार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज याचिका की सुनवाई कर दिल्ली के बारे में निर्देश जारी किए। बेंच ने कहा कि इस मामले में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी और इसकी तत्काल पालना होनी चाहिए। वास्तव में यह काबिले-तारीफ है कि बेंच ने यह निर्देश दिया है कि कुत्तों के लिए शेल्टर बनाए जाएं और आठ सप्ताह में बुनियादी ढांचे के निर्माण की रिपोर्ट दी जाए। इतना ही नहीं, इस संबंध में, शेल्टर में कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिए पर्याप्त कर्मचारी होने की बात भी कही गई है। गौरतलब है कि बेंच ने सुनवाई के दौरान डॉग लवर्स को कड़ी फटकार लगाई है। पीपल फॉर एनिमल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने इस संबंध में अपना तर्क रखना चाहा, तो जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि लोगों में यह भरोसा होना चाहिए कि वे कुत्तों के डर के बिना कहीं भी आजाद होकर घूम सकते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि माननीय कोर्ट ने यहां तक कहा है कि किसी भी इलाके में एक भी आवारा कुत्ता घूमता हुआ नहीं दिखना चाहिए और इस संबंध में एक सप्ताह में हैल्पलाइन बननी चाहिए तथा, चार घंटे में कुत्ते पकड़ने की कार्रवाई होनी चाहिए। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि सरकारी अस्पताल में ही रेबीज के टीके लगें, और रेबीज वेक्सीन उपलब्धता की सूचना भी प्रकाशित की जाए ताकि आमजन को इसकी जानकारी हो सके। अच्छी बात यह है कि मानवीय कोर्ट ने व्यापक जनहित में इस मामले में किसी भी हस्तक्षेप आवेदन को स्वीकार नहीं करने की बात भी कही है। कोर्ट ने यहां तक कहा है कि क्या तथाकथित पशु प्रेमी, उन बच्चों को वापस ला पाएंगे जिनकी रेबीज की वजह से जान चली गई ? बहरहाल,यह वाकई बहुत ही चिंताजनक व गंभीर बात है कि आज रोजाना औसतन 10136 लोग कुत्तों के शिकार हो रहे हैं, और साल 2024 में देशभर में 37 लाख से ज्यादा डॉग बाइट के केस सामने आए हैं। पाठकों को बताता चलूं कि केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने बीती 22 जुलाई को ही संसद में बताया था कि पिछले वर्ष देश में कुत्ते के काटने के कुल मामलों की संख्या 37,17,336 थी, जबकि संदेहास्पद मानव रेबीज से मौतें 54 थीं। दिल्ली एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक राष्ट्रीय राजधानी में रेबीज के कुल 49 मामले सामने आए हैं। बहरहाल, यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि जस्टिस पारदीवाला ने कुत्तों की नसबंदी और उसी इलाके में उन्हें वापस छोड़ने की नगर निगमों की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने इसे बेतुका और अनुचित नियम बताया है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी कर उन्हें उसी इलाके में छोड़ दिया जाता है। कोर्ट ने इस संबंध में यह साफ कहा है कि इसका कोई मतलब या औचित्य नहीं है। वास्तव में,यह एक कड़वा सच है कि देश में अनेक स्थानीय निकाय आवारा श्वानों की आबादी पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं और नियम के तहत न तो उनका बधियाकरण हो रहा है और न उन्हें रेबीज-रोधी टीके ही लग रहे हैं, ऐसे में समस्या बढ़ रही है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज शहर तो शहर गांवों में भी आवारा पशु एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहे हैं। आवारा पशुओं के कारण कभी एक्सीडेंट की घटनाएं जन्म लेतीं हैं तो कभी बाजार, गलियों में व सड़कों पर इन पशुओं के आवारा घूमने से आमजन में हमेशा भय और खौफ का माहौल हमेशा बना रहता है। नगर निगम, नगर पालिकाएं हालांकि समय-समय पर इस संबंध में अभियान चलाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद स्थिति ढाक के तीन पात वाली हो जाती है। जब कभी आवारा पशुओं के कारण कोई घटनाएं प्रकाश में आतीं हैं तो आनन-फानन में आवारा पशुओं को पकड़ने की कार्रवाई की जाती है और बाद में मामला ठंडा पड़ने पर इस पर गंभीरता व संवेदनशीलता नहीं दिखाई जाती और इसके कारण आम आदमी को इन आवारा पशुओं का शिकार होना पड़ता है। बहुत बार तो जानें तक चलीं जाती हैं। घायल होना तो जैसे आम बात है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज आवारा पशुओं के कारण नागरिकों को परेशानी और खतरा लगातार बढ़ रहा है, जिससे आम जनजीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही साथ पर्यटन को भी नुकसान पहुंच रहा है।यह वाकई काबिले-तारीफ है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने भी शहरों और राजमार्गों से आवारा पशु हटाने के लिए नगर निगमों, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण व अन्य विभागों को विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है। वास्तव में माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आवारा कुत्तों/पशुओं को लेकर हाल ही में जारी किए गए दिशा-निर्देशों को आज देश के हर गांव, शहर और कस्बे में लागू करना बहुत ही जरूरी व आवश्यक है। वैसे भी, आवारा कुत्तों/पशुओं को पकड़कर सुरक्षित डॉग शेल्टर/ एनिमल शेल्टर में रखना कोई मुश्किल काम नहीं है। ईमानदारी से काम करके इसे बखूबी अंजाम दिया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आवारा कुत्तों व पशुओं की समस्या आज पूरे देश में है। मध्यप्रदेश में तो आवारा कुत्तों के काटने के मामले लगातार दर्ज हो रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा मामले इंदौर और जबलपुर में आए हैं। भोपाल, रीवा, खंडवा और खरगोन में बच्चों की मौत भी दर्ज हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में भी गांव-शहरों में कुत्ते के काटने की अनेक घटनाएं हुई हैं और रेबीज के इंजेक्शन की पर्याप्त आपूर्ति के अभाव में पीड़ितों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।बहरहाल, अंत में यही कहूंगा कि आवारा पशुओं/कुत्तों को लेकर माननीय कोर्ट के फैसले के सुखद परिणाम हो सकते हैं, लेकिन संवदेना का प्रश्न भी गंभीर रूप से खड़ा हो सकता है। इंसानों पर पूरी तरह से निर्भर इन बेजुबानों(आवारा कुत्ते/पशुओं ) से संबंधित यह फैसला इतना आसान नहीं है, जो माननीय न्यायालयों ने लिए हैं। वास्तव में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि बेजुबानों के साथ अमानवीय व्यवहार न हो।उनके शेल्टर साफ-सुथरे और आरामदेह हों, तथा उन्हें भरपेट भोजन(खुराक-पानी) मिले।इसके लिए फीडिंग प्वाइंट तय किए जा सकते हैं। एनजीओ और स्थानीय प्रशासन का सहयोग जरूरी है।घायल, बूढ़े या कमजोर कुत्तों को एनिमल शेल्टर भेजा जा सकता है तथा पिल्लों को एडोप्शन ड्राइव(गोद लेना )के जरिए घर दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें मालिक मिल सके।इस संबंध में श्वानों/बेजुबानों से प्रेम करने वालों को भी आगे आना चाहिए। कुत्तों की समय पर नसबंदी और टीकाकरण बहुत आवश्यक है। नगर निगम और एनजीओ इसमें सहयोग कर सकते हैं। कुत्तों का रेबीज टीकाकरण करवाया जाना चाहिए ताकि बीमारी का खतरा कम हो सके साथ ही साथ लोगों का डर भी कम हो सके। जन-जागरूकता तो जरूरी है ही। वास्तव में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आखिर बेजुबानों की रक्षा भी हमारी ही जिम्मेदारी है।