बेहतर होगा कि विकसित भारत का स्वप्न दुनिया साकार करे

सीता राम शर्मा ‘चेतन’

पंद्रह अगस्त से प्रधानमंत्री लगातार देशवासियों से जिन पांच प्रण की बात कह रहे हैं उसमें पहला प्रण है भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का । निःसंदेह यह प्रण हर सच्चे भारतीय को उत्साहित और प्रेरित करने वाला है, पर यह सफलीभूत कैसे होगा ? इस पर वृहद चिंतन मनन और फिर प्रयास करने की जरूरत है । सबसे पहले बात भारत और भारतीय व्यवस्था, विशेषता तथा इसकी मूल शक्ति की, जिसका सदुपयोग कर हम वर्तमान विकासशील भारत को विकसित भारत में बदल सकते हैं !

किसी भी देश के अस्तित्व और उसके मुख्य आधार, आकार, प्रकार और विकास के विस्तार में सर्वाधिक योगदान उसकी मानवीय और प्राकृतिक क्षमता संपदा का होता है । मानवीय क्षमता का सदुपयोग उसके आहार विहार व्यवहार और संस्कार से होता है तो प्राकृतिक संपदा का सदुपयोग उसके अनुकूल मानवीय आचरण से होता है । सबसे पहले बात मानवीय क्षमता के सदुपयोग की । इस संदर्भ में देखें विचारें और समझे तो भारत और भारतीयों का पहला निष्कर्ष यह आता है कि धर्म और राष्ट्रधर्म ही भारतीय भूखंड को भारत देश बनाता है ! भारत को जोड़ता है ! विविधता को एकता की शक्ति में पिरोता है ! भारतीयों का धर्म और राष्ट्रधर्म ही भारत की शक्ति और सामर्थ्य का मूल आधार है ! अलग-अलग कई भाषा, रहन-सहन, खान-पान के तौर तरीक़ों के बावजूद धर्म और राष्ट्रधर्म का एकात्म बोध ही भारत की मूल शक्ति है । इन दोनों में से कोई एक भी कमजोर पड़ेगा, तो भारत संकट में होगा । अतः इन दोनों की रक्षा हर भारतीय का प्रथम दायित्व और कर्तव्य है । रही बात विकसित और अखंड भारत के निर्माण में इसकी मानवीय क्षमता के सदुपयोग की, तो इसके लिए हमें राष्ट्रधर्म के प्रति पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ पूरे होश और जोश से आगे बढ़ना होगा ! प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष और संभावित आंतरिक और बाह्य संकटों और चुनौतियों पर पूरी गंभीरता से चिंतन कर तत्काल समाधान के योजनाबद्ध सफल प्रयास करते हुए नये बड़े और शक्तीशाली लक्ष्य बनाने और साधने होंगे ! बात कमियों और कमजोरियों की करें तो बहुत स्पष्ट है कि विकसित राष्ट्र के लक्ष्य और निर्माण में मुख्य बाधा वर्षों से षड्यंत्रकारी लक्ष्यों के साथ काम करती कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ताकतें हैं, जो अब ज्यादा सक्रियता, षड्यंत्रों और शक्ति के साथ हमारी कमजोरियों ( नासमझ, स्वार्थी और षड्यंत्रकारी बिरादरी ) पर काम करेंगी ! अतः हमें पूरी सजगता, गंभीरता और सक्रियता के साथ प्रशासनिक, राजनीतिक और कूटनीतिक प्रहार कर इन पर विजय प्राप्त करनी होगी । इसके लिए एक तरफ हमें जहां अपने लोकतांत्रिक ढ़ाचे में कुछ आवश्यक सुधार लाते हुए उसे वर्तमान राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार ज्यादा सुदृढ, कारगर और सुरक्षित भविष्य वाले नीतिगत कठोर नियमों और कानूनों से परिपूर्ण करना होगा तो दूसरी तरफ अपने साथ वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए भी बहुत तेजी से अपनी रक्षा शक्ति को बढ़ाना होगा ! बेहतर होगा कि हम विकसित और आत्मनिर्भर भारत के अपने सपने को पूरी सजगता, दूरदर्शिता और चतुराई से वैश्विक हितों की नीति और शक्तियों से सींचे ।

गौरतलब है कि भारत में हजारों वर्ष की गुलामी के कालखंड में इसकी अथाह धन संपदा का दोहन करते हुए मुगलों और अंग्रेजों ने जो सबसे बड़ा षड्यंत्र जारी रखा वह इस देश के लोगों में इनके धर्म और राष्ट्रधर्म के उस सर्वोच्च भाव और कर्म को खत्म करने का था, जिससे इस देश की महान सभ्यता, संस्कृति और उन्नति विकसित और समृद्ध हुई थी । भारत की धन संपदा के साथ इसके असीम ज्ञान के भंडार का भी उन्होने खूब दोहन किया था । दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भी लंबे समय तक हमारे देश के सत्ता शीर्ष पर उनकी ही सोच विकसित किए लोगों का कब्जा रहा । अब जबकि देश सचमुच अपनी मूल आत्मा, आत्मभाव, आत्मशक्ति और आत्मविश्वास के साथ फिर से जागृत हुआ है तब वह यह सोचने समझने लगा है कि हमारी वास्तविक वैश्विक पहचान विकासशील नहीं विकसित भारत की होनी चाहिए । वह समझ गया है कि उसे अपने धर्म और राष्ट्रधर्म को बचाने बढ़ाने के साथ उसके मूल संदेश वसुधैव कुटुम्बकम पर बहुत बड़ा और सफल प्रयोग वैश्विक हितों के लिए करना होगा । भारत के विकसित राष्ट्र का स्वप्न वास्तव में विकसित विश्व का स्वप्न है, इस सच्चाई को भारत को बहुत स्पष्टता, पारदर्शिता और तर्कसंगत तरीके से दुनिया को बताना समझाना होगा ।

अंत में लीक से थोड़ा हटकर एक बहुत महत्वपूर्ण बात विकसित भारत को लेकर यह कि भारत विकसित राष्ट्र बने यह हर भारतीय का सपना है पर अच्छा होगा कि भारत के विकसित राष्ट्र बनने की चाहत पूरी दुनिया के भीतर पैदा हो और वह भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में जुट जाए । बढ़ चढ़कर उसमें अपना योगदान दे । भला क्यों ? यह सोचकर चौंकने की जरूरत बिल्कुल नहीं, सिर्फ समझने की जरूरत है । जब दूसरे की नीतियों को समर्थन देने से अपना बहुत भला हो तो हर कोई ऐसा करना चाहेगा । भारत का वसुधैव कुटुम्बकम का भाव और लक्ष्य बहुत पुराना है । अब भारत को अपनी उसी महान विचारधारा के साथ विकसित शब्द और अर्थ को परिभाषित करना चाहिए । मानव जगत और जीवन को विकसित बनाने के लिए आर्थिक समृद्धि से ज्यादा जरूरत मानसिक समृद्धि और सुख शांति के साथ सुरक्षित होने के भाव और विश्वास की है । भारत को अपनी इस मूल दृष्टि और सोच का प्रचार-प्रसार करना चाहिए । आर्थिक और सामरिक शक्ति में यदि आध्यात्मिकता की शक्ति का सम्मिश्रण भारत कर पाए तो इसका आर्थिक और सामरिक विकास भी बहुत हद तक स्वतः हो जाएगा ! कुल मिलाकर निष्कर्ष यह कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए सरकार को अब धर्म और राष्ट्रधर्म से लेकर आत्मनिर्भरता और वसुधैव कुटुम्बकम तक की अपनी नीतियों पर बहुत गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए । कितना अच्छा हो कि भारत एक नई दृष्टि और शांतिपूर्ण सृष्टि के स्वप्न और लक्ष्य को साकार करने के लिए भारत में एक राजनीतिक सह वैश्विक धर्म संसद का आयोजन करे ! भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम के अपने आत्मीय भाव के विस्तार के साथ अपनी राजनीतिक और कूटनीतिक विशेषज्ञता को परिष्कृत करने की जरूरत है । यदि ऐसा हुआ तो दुनिया आपरूपी भारत का साथ देगी । सच्चाई यही है कि यदि दुनिया भारत के विकसित राष्ट्र का स्वप्न साकार करती है तो इससे उसका भी बहुत भला होगा । रही बात प्राकृतिक संपदा की, तो उत्पादन, खनन और वन से लेकर पर्यावरण तक की सुरक्षा और विकास की बेहतर नीतियों पर फिलहाल भारत आगे बढ़ चुका है !