डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
राजस्थान के बारां जिले के मांगरोल शेरगढ़ के किला से लगभग 30 किलोमीटर, प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्र चांदखेड़ी से 25 किलोमीटर और सामोद से 55 किलोमीटर की दूरी पर एक स्वतंत्र पहाड़ी पर पुराने जैन मन्दिर के भग्नावशेष हैं। यहां कई तीर्थंकर मूर्तियां व शिलालेख अब भी विद्यमान हैं। बारहमासी नाले के किनारे कालेशाह का मकबरा है। वहीं नाले के उस पार एक पहाड़ी पर एक विशाल गुफा है उसके अंदर व बगल की छोटी गुफा में चट्टान पर ही जैन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। सामने छोटा सा मैदान, बरामदा है। यह दो मंजिला बना हुआ है। मूर्तियां ऊपर की मंजिल पर भी हैं।
पहुंच मार्ग पथरीला, झाड़ झंखाड़ से भरा है। रास्ता ठीक नहीं है। यहां से चारों ओर का सुंदर नजारा दर्शनीय है।
सप्तफणी तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रतिमा
एक गुफा मंदिर में चट्टान पर सात सर्पफणाटोपित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति है। इस मूर्ति के नीचे की शिला का पर्याप्त क्षरण हो गया है, फिर भी इस प्रतिमा के अधो-शिला में दोनों ओर दो आकृतियाँ हैं, क्षरित हो जाने से अस्पष्ट हैं। पार्श्वनाथ प्रतिमा के पार्श्वों में संभवतः प्रतिहारी भी रहे हों जिनके बहुत मामूली निशानों की झलक प्रतीत होती है। यहां की प्रतिमाओं पर चूना आदि से कोई कुछ भी लिख देता है, कोई देख-रेख नहीं है।
तीर्थंकर पद्मप्रभ की प्रतिमा
मुख्य गुफा मंदिर में अनेक तीर्थंकर मूर्तियां हैं, इनमें से दो मूर्तियां सुन्दर और स्पष्ट हैं। दोनों में एक बड़ी प्रतिमा के पादपीठ पर कमल टंकित है। हथेली और तलुओं में चक्र बना हुआ है। हृदयस्थल पर श्रीवत्स है। कुंचित केश और उष्णीष है। पद्मासन होने पर भी इनका दिगम्बरत्व दर्शाया गया है।
तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा
लघु पद्मासन मूर्ति का शिल्पांकन कुछ अलग है। इसकी भुजाएं कुछ इस तरह तरासी गई हैं कि पैरों के तलवों का आधे से अधिक भाग हाथों से ढका हुआ है, इस कारण पैर के तलवों में चक्र अंकित नहीं हैं। हथेली पर चक्र दर्शाया गया है। श्रीवत्स है, इसका केश विन्यास भी अलग है। बाल पीछे को संवारे हुए से प्रतीत होते हैं। केश लटें स्कंधों तक अवलंबित हैं। कर्ण भी स्कंधों तक आये हुए हैं। इससे यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतीत होती है। इस मूर्ति के बायें तरफ एक खण्डित प्रतिमाओं का शिलाफलक भी रखा हुआ है।
शिलालेख
यहाँ पर शिलालेख भी हैं। एक स्तंभ पर देवनागरी लिपि में शिलालेख है। इस अभिलेख के प्रारंभ में ‘‘संवत् 1792 शाके 1657’’ हमने चित्र पर से ही पढ़ा है। शेष अभिलेख भी सर्वेक्षण करके पढ़ा जा सकता है।
चाँदखेड़ी बाले बड़े बाबा
चाँदखेड़ी की प्रसिद्ध मूलनायक चमत्कारी आदिनाथ की प्रतिमा इसी शेरगढ़ की बताई जाती है। इसकी बहुश्रुत घटना किंवदंती है। वह इस प्रकार है-
चाँदखेड़ी बाले बड़े बाबा की कहानी
कहते हैं कोटा दरबार के दीवान किशन दास मणिया को एक दिन रात में स्वप्न दिखा। सपने में उन्हें प्रभु ने बताया कि सामोद से 55 किमी दूर शेरगढ़ की पहाड़ी पर भगवान आदिनाथ की मूर्ति है। उसे ले आओ और मंदिर बनवाओ। वे अगले दिन शेरगढ़ की पहाड़ी पर गए। वहां एक मूर्ति मिली लेकिन वो साढ़े 6 फीट लंबी और 2 टन भारी थी। वे उस मूर्ति को बैलगाड़ी पर लेकर नहीं जा सकते थे। तभी आकाशवाणी हुई ‘आप बैलगाड़ी पर बैठो। मूर्ति अपने-आप लद जाएगी। पीछे मुड़कर मत देखना नहीं तो ये मूर्ति वहीं अचल हो जाएगी।’ किशन दास बैलगाड़ी लेकर चले।
चांदखेड़ी के पास वे बैलों को पानी पिलाने के लिए उतरे। उनका मन नहीं माना और वे पीछे मुड़कर देखने लगे। वह मूर्ति जमीन पर दिखी और अचल हो गई। किशन मणिया को वहीं मंदिर बनवाना पड़ा। चाँदखेड़ी मंदिर में यह मूर्ति ग्राउंड फ्लोर के नीचे अंडरग्राउंड वाले हिस्से में है।