
रविवार दिल्ली नेटवर्क
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के संत भवन में परम पूज्य आचार्य श्री प्रसन्नसागर महाराज जी के संघस्थ प्रवर्तक श्री 108 सहज सागर जी मुनिराज एवं निर्यापक मुनि 108 श्री नवपदमसागर जी मुनिराज को पड़गाहन करके आहार कराने का सौभाग्य श्रावक-श्राविकाओं को मिला। टीएमयू के करीब सौ विद्यार्थियों ने नवधा भक्तिपूर्वक मुनिश्री एवम् संघ के समस्त साधुओं को आहार दिया। श्रावक-श्राविकाओं ने मुनिश्री की मौजूदगी में नियम भी लिए। दूसरी ओर व्रत प्रभा माता जी का भी टीएमयू कैंपस में मंगल प्रवेश हो गया है। जिनालय में प्रवर्तक मुनिश्री 108 सहज सागर जी के दिव्य सानिध्य में विधि-विधान से अभिषेक और शांतिधारा हुई। संत भवन में शाम को आरती और भक्ति में टीएमयू की फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन ने भजन की प्रस्तुति देकर सभी का मन हर्षित कर दिया। इस अवसर पर श्रीमती ऋचा जैन, वीसी प्रो. वीके जैन आदि की उल्लेखनीय मौजूदगी रही।
संत भवन में मुनिश्री सहज सागर ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा, श्रावक-श्राविकाओं को अपनी आहारचर्या का मुख्य उद्देश्य अहिंसा को बनाए रखना है। जैन साधु-संत किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाते, इसीलिए वे केवल एक बार भोजन करते हैं। साथ ही दिन के कुछ घंटों में ही भोजन और पानी की अनुमति है। जैन साधु-संतों की आहारचर्या बहुत कठोर होती है। वे सूर्याेदय के पांच से छह घंटे के अंदर एक बार भोजन और पानी लेते हैं। वे किसी भी जगह भोजन नहीं करते हैं, बल्कि एक विशेष स्थान पर खड़े होकर अंजुली में भोजन लेते हैं। जैन धर्म में गुरु के बिना जीवन अधूरा है। गुरु का सम्मान करना हरेक का कर्तव्य है। व्रत प्रभा माता जी बोलीं, जो भी विद्यार्थी टीएमयू में पढ़ रहे हैं, उनका पुण्य का उदय है, क्योंकि वे लौकिक शिक्षा के साथ साथ संस्कारों और धर्म की शिक्षा भी यहां ले रहे हैं। आस्थमयी इन कार्यक्रमों में प्रो. विपिन जैन, डॉ. रवि जैन, प्रो. एसके जैन, डॉ. विनोद जैन, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. अक्षय जैन, डॉ. अर्चना जैन, डॉ. नीलिमा जैन, श्रीमती अहिंसा जैन, श्रीमती निकिता जैन आदि की मौजूदगी रही।