जन सुराज : वैकल्पिक राजनीति का नया दर्शन ?

Jan Suraj: A new philosophy of alternative politics?

तनवीर जाफ़री

पूरे देश की निगाहें इस समय बिहार विधान सभा के होने जा रहे आम चुनावों पर लगी हुई हैं। इन चुनावों में जहां देश व राज्य के अनेक पारंपरिक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दल चुनाव मैदान में सत्ता अथवा विपक्ष के किसी न किसी गठबंधन के साथ मिलकर बिहार का ‘भाग्य बदलने’ के नाम पर ख़ुद अपना भाग्य आज़मा रहे हैं वहीँ इस बार के चुनाव में पहली बार ‘जन सुराज पार्टी ‘ नामक एक नया राजनैतिक दल भी बिहार की राजनीति में अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है।’जन सुराज पार्टी ‘ जैसे किसी नवगठित दल द्वारा अपने पहले ही चुनाव में राज्य की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना ही अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि इस पार्टी के लगभग सभी उम्मीदवार शिक्षित,बुद्धिजीवी,पूर्व नौकर शाह,पूर्व आई ए एस,आई पी एस,वैज्ञानिक,गणितज्ञ तथा शिक्षाविद हैं जबकि चुनाव मैदान में कूदे अन्य पारंपरिक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों की शिक्षा,उनके आचरण, चरित्र व योग्यता के विषय में कुछ अधिक बताने की ज़रुरत ही नहीं।

बहरहाल इस नये नवेले राजनैतिक दल ‘जन सुराज पार्टी ‘ के संस्थापक व अकेले रणनीतिकार व स्टार प्रचारक वही प्रशांत किशोर हैं जो नरेंद्र मोदी व भाजपा से लेकर देश के अधिकांश राजनैतिक दलों व नेताओं के लिये एक पेशेवर के रूप में चुनावी रणनीति तैयार करने के बारे में जाने जाते हैं। पूर्व में वे संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में आठ वर्षों तक कार्य कर चुके हैं। देश के विभिन्न राजनैतिक दलों को अपनी रणनीति का लोहा मनवाने के बाद मूल रूप से बिहार के ही रहने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी योग्यता का प्रयोग सर्वप्रथम अपने ही राज्य के विकास के लिये करने का निर्णय लिया और 2022 में बिहार की जनता को जागरूक करने व उन्हें उनकी व पूरे राज्य की बदहाली के मूल कारणों से अवगत कराने के मक़सद से बिहार में ‘जन सुराज अभियान’ चलने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद ही उन्होंने राज्य में लगभग 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा भी की। इस पदयात्रा के दौरान उन्होंने राज्य की आम जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। इसी ‘जन सुराज अभियान’ से ही उनके नये राजनैतिक दल का नाम ‘जन सुराज पार्टी’ निकला।

बहरहाल देश के बड़े से बड़े राजनैतिक दिग्गजों के लिये रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर स्वयं अपने लिये कैसी सफल रणनीति बना रहे हैं उसी का परिणाम है कि उन्हें न केवल ‘गोदी मीडिया ‘ भी पूरी तवज्जोह दे रहा है बल्कि वे सत्ता व विपक्षी महागठबंधन के दाग़दार नेताओं पूर्व की उनकी असफल नीतियों यहाँ तक कि राज्य की बदहाली तक के लिये इसी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन व महागठबंधन के दलों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य के विकास के लिये प्रशांत किशोर मुफ़्त की रेवड़ियों या शराब बंदी जैसी नीतियों को नहीं बल्कि केवल शिक्षा को ही पहली ज़रुरत मान रहे हैं। राज्य की सभी 243 सीटों के लिये अपने पहले चुनाव में योग्य व शिक्षित प्रत्याशी उतारना बल्कि कई सीटों पर तो अनेक योग्य उम्मीदवारों द्वारा चुनाव लड़ने के लिये एक साथ दावा पेश किया जाना भी प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति की बड़ी सफलता है।

वे सोशल मीडिया पर भी अन्य राजनैतिक दलों से अधिक छाये हुये हैं। उन्होंने विभिन्न टीवी चैनल्स व यू ट्यूबर्स को अब तक जितने साक्षात्कार दे डाले हैं उतने तो शायद सत्ता व विपक्ष के नेताओं ने भी अब तक नहीं दिये। वे अपने साक्षात्कार में अपने विरोधी दलों के अनेक नेताओं को बेनक़ाब कर उनकी आपराधिक व शैक्षिक पृष्ठभूमि को उजागर कर रहे हैं। प्रशांत किशोर बड़े ही स्पष्ट अंदाज़ में बिहार की बदहाली व पिछड़ेपन के लिये जहाँ पूर्व की सत्ता व नेताओं को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं वहीँ राज्य के उन मतदाताओं को भी आइना दिखा रहे हैं जो मुफ़्त के राशन अथवा धर्म जाति के नाम पर वोट कर भ्र्ष्ट व अयोग्य उम्मीदवारों का चुनाव करती रही है।

राजनैतिक विश्लेषक हालांकि बिहार के चुनावी रण में ‘जन सुराज पार्टी’ के उतरने को लेकर तरह तरह के क़यास लगा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ‘जन सुराज पार्टी’ भी असद्दुदीन ओवैसी की ए आई एम आई एम की ही तरह राज्य में वोट काटने वाली पार्टी साबित होगी और इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा। जबकि कुछ का मानना है कि केवल एन डी ए ही नहीं बल्कि जन सुराज पार्टी विपक्षी महागठबंधन को भी नुक़सान पहुंचाएगी। उधर प्रशांत किशोर अपना सीधा मुक़ाबला सत्ता रूढ़ एन डी ए से ही बता रहे हैं परन्तु साथ ही उनका यह भी कहना है कि चुनाव परिणाम ही फ़ैसला करेंगे कि उनकी पार्टी अर्श पर होगी या फ़र्श पर। जबकि राजनैतिक विश्लेषकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो ‘जन सुराज पार्टी’ की तुलना आम आदमी पार्टी से करते हुये इसके वर्तमान तेवर के साथ ही संभावित भविष्य को भी देख रहा है।

जो भी हो मगर अपनी योग्यता का लोहा मनवाने के बाद अपने कुशल रणनीतिकार के पेशे को त्यागकर अपनी ही कमाई गयी पूँजी को दांव पर लगाकर बिहार व बिहार वासियों के भविष्य की चिंता में राज्य की गली गली में धूल मिट्टी व कीचड़ में घूमकर राज्य की ख़ुशहाली की बातें करना वह भी बिना किसी धर्म जाति व समुदाय की बात किये हुये तथा बिना मुफ़्त की रेवड़ी की लालच दिये, अपने आप में ही बड़ी बात है। वह भी उस बिहार राज्य में जोकि ग़रीबी के साथ साथ अपनी जातिवादी राजनीति के लिये भी प्रसिद्ध हो ? इसमें कोई शक नहीं कि देश को शिक्षित,ज्ञानवान,राष्ट्र हितकारी,धर्म व सम्प्रदाय व जाति से ऊपर उठकर सोचने वाले तथा स्वच्छ छवि रखने वाले नेताओं की ज़रुरत है। आज यदि कोई अनपढ़,अज्ञानी व साम्प्रदायिकतावादी व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन जाये कोई अपराधी व्यक्ति देश का गृह मंत्री या मुख्य मंत्री बन जाये अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा मंत्री बन जाये कोई लुच्चा,लफ़ंगा,बलात्कारी,गैंगस्टर हमारा जनप्रतिनिधि बन जाये तो इससे बढ़कर शर्मिन्दिगी व वैश्विक स्तर पर बदनामी की बात हमारे देश के लिये और क्या हो सकती है ?

यदि भारतीय राजनीति का वातविक चेहरा इतना भयावह व दाग़दार न होता तो केंद्रीय विद्युत व ऊर्जा मंत्री आर के सिंह को पिछले दिनों अपनी ही पार्टी भाजपा के प्रत्याशी व बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी व मोकामा से जेडीयू की ओर से एनडीए उम्मीदवार व बाहुबली नेता अनंत सिंह का नाम लेते हुये राज्य की जनता के नाम यह वीडिओ सन्देश जारी न करना पड़ता जिसमें उन्होंने दीवाली की शुभकामनाएं देते हुए मतदाताओं से अपील की थी कि -‘अपराधी या भ्रष्टाचार के आरोपी सम्राट चौधरी व अनंत सिंह जैसे उम्मीदवारों को वोट न दें, भले ही वे किसी की जाति के हों।’ उन्होंने इसी सन्देश में यह सुझाव भी दिया कि यदि सभी उम्मीदवार ऐसे हैं, तो NOTA दबाएं। आर.के. सिंह ने यहां तक कहा कि ऐसे उम्मीदवार को वोट देने का अर्थ है “चुल्लू भर पानी में डूब मरना”। इसीलिये रसातल में जा रही राजनीति के वर्तमान दौर में यह सोचना पड़ रहा है कि जन सुराज पार्टी क्या वैकल्पिक राजनीति का नया ‘दर्शन’ साबित हो सकेगा ?