सीता राम शर्मा ” चेतन “
नुपूर शर्मा विवाद की आड़ में जिस तरह झारखंड की राजधानी रांची में उग्र और हिंसक प्रदर्शन किया गया, वह राज्य में सरकार की कमियों, कमजोरियों के साथ अपराधियों, षड्यंत्रकारियों के बढ़ते मनोबल का परिणाम है । पिछले कुछ दिनों से अपराध की शिकार होती राजधानी में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं । रांची के मेन रोड में कल जो तांडव हुआ, मंदिर में तोडफ़ोड़ की गई, पुलिस पर भी भारी पथराव हुआ, वह किसी भी दृष्टिकोण से ना तो उचित है और ना ही क्षम्य । अब रांची के साथ पूरे राज्य की जनता के मन-मस्तिष्क में यह सवाल कौंध रहा है कि आगे क्या ? क्या हेमंत सरकार राज्य में शांति स्थापित कर पाने में, कानून का राज स्थापित कर पाने में अपनी असहाय होती स्थिति से उबर पाएगी ? क्या यह सरकार सचमुच निष्पक्षता के साथ अपराधियों और उपद्रवियों से निपटेगी ? या फिर बहुत स्पष्ट रूप से यह मान लिया जाए कि कांग्रेस के दबाव में यह सरकार भी कांग्रेस की तुष्टीकरण वाली नीतियों से नियंत्रित होने को विवश होती रहेगी ? इन बेहद जरूरी, ज्वलंत और चुभते हुए सवालों का उत्तर खोजे बिना ना झारखंड का भविष्य सुरक्षित है और ना ही राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन के राजनीतिक जीवन का ! इस घोर निंदनीय और अक्षम्य उत्पात और तांडव के बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा उठाई जा रही यह मांग कि दोषियों पर कठोर कार्रवाई हो और इस घटना में हुई क्षति की भरपाई सरकार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के तर्ज पर दोषियों की संपित्त जब्त कर करे, आवश्यक हो तो उपद्रवियों की संपित्त पर बुलडोजर भी चलवाए, किसी भी दृष्टिकोण और तर्क से गलत नहीं है । यह सरल सत्य है कि अपराध और अपराधी या अपराध की मनोवृति पर अंकुश लगाने का सबसे उचित तरीका अपराधी में कानून का भय व्याप्त करना है, जो बिना ज्यादा सोचे या फिर पक्ष-विपक्ष की राजनीति किए हेमंत सरकार को करना चाहिए । गौरतलब है कि कल हुए उत्पात के दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को बहुत ज्यादा मशक्कत या खोजबीन करने की जरूरत भी नहीं है, जरूरत सिर्फ और सिर्फ ईमानदार और निष्पक्ष कार्रवाई करने की है । इस हिंसक वारदात को अंजाम देने वाले सैकड़ो उपद्रवियों के चेहरे कई वीडियो फुटेज से बहुत सरलता से मिल सकते हैं, उपलब्ध भी हैं । अतः उपद्रवियों को ढूंढने के लिए बहुत ज्यदा खोजबीन और जांच-पड़ताल की आवश्यकता नहीं है, रही बात इन प्रत्यक्ष उपद्रवियों के पिछे छिपे अप्रत्यक्ष षड्यंत्रकारियों और अपराधियों की तो वो भी इन प्रत्यक्ष दोषियों से बहुत आसानी से जाना जा सकता है । पर फिर सबसे बड़ा सवाल यही कि क्या सरकार इसके लिए अपने हिस्से की पूरी ईमानदारी दिखाएगी ? दोषियों, उपद्रवियों और अपराधियों पर कठोर कार्रवाई करेगी ? भीतर का छिपा नहीं, यह जाना-पहचाना सार्वजनिक सच है कि कर्फ्यू लगते ही अपराधियों का राजनीतिक गठजोड़ वाला तंत्र उनके बचाव के लिए सक्रिय हो चुका होगा और वह सरकार तथा प्रशासन के उच्च नेताओं और अधिकारियों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों, उठाए जाने वाले कदमों की पल-पल की खबरों के हिसाब से अपनी चालें भी चल रहा होगा । शांतिदूतों का छल भरा पापी खेल भी होगा । अब यह राज्य के मुखिया की जिम्मेवारी है कि वह अपराध और अपराधी संरक्षण की राजनीति से उपर उठकर राजधानी में हुए इस तांडव के दोषियों पर इतनी कठोर कार्रवाई करवाए कि राजधानी सहित राज्य की जनता का विश्वास उस पर बने और बढ़े । निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई से अपराध नियंत्रण तो आपरूपी होगा ही ।