रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू जिले के अमर सपूतों की इस वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता पूर्व के आन्दोलनो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सेना द्वारा लड़ी गयी लड़ाइयों में भी इस धरती की माटी में जन्मे वीरों ने समय-समय पर अपना पराक्रम दिखाया हैं। वीरों की इस धरती ने सदियों से जन्म लेते रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया हैं। वास्तव में यहां की धरती को यह वरदान सा प्राप्त होना प्रतित होता हैं कि इस पर राष्ट्रभक्ति के कीर्तिमान स्थापित करने वाले लाडेसर ही जन्म लेते हैं। चाहे 1948 का पाकिस्तानी कबायली हमला हो या 1962 में चीन से युद्ध हो या 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध। यहां के वीरों ने मातृभमि की रक्षा हेतू सदैव अपना जीवन बलिदान किया हैं। सेना के तीनो अंगो की आन की रक्षा के लिये यहां के नौजवान सैनिकों के उत्सर्ग को राष्ट्र कभी भुला नही सकता हैं।
राजस्थान में झुंझुनू जिले के नवयुवको में सेना में भर्ती होने की बहुत पुरानी परम्परा रही हैं। यहां के गांवों में घर-घर में सैनिक होता हैं। सेना के प्रति यहां के लगाव के कारण अंग्रेजो ने यहां एक सैनिक छावनी की स्थापना कर ‘शेखावाटी ब्रिगेड ‘का गठन किया था। देश रक्षा के लिये सेना में शहादत देना राजस्थान की परम्परा रही है। झुंझुनू जिले के वीर जवानो को उनके शौर्यपूर्ण कारनामों के लिये समय-समय पर भारत सरकार द्वारा विभिन्न अलंकरणों से नवाजा जाता रहा हैं। अब तक इस जिले के कुल 130 से अधिक सैनिकों को वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। जो पूरे देश में किसी एक जिले के सर्वाधिक हैं।
भारतीय सेना में योगदान के लिये झुंझुनू जिले का देश में अव्वल नम्बर हैं। वर्तमान में इस जिले के 55 हजार जवान सेना में कार्यरत हैं। वहीं जिले में करीबन 60 हजार भूतपूर्व सैनिक व अर्धसैनिक बलों के जवान हैं। आजादी के बाद भारतीय सेना की और से राष्ट्र की सीमा की रक्षा करते हुये यहां के 486 जवान शहीद हो चुके हैं। जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक है। कारगिल युद्व के दौरान पूरे देश में 527 जवान शहीद हुये थे जिनमें यहां के 19 सैनिक शहीद हुये थे जो पूरे देश में किसी एक जिले से शहादत देने वालों में सर्वाधिक जवान थे। झुंझुनू जिले से अब तक 486 से अधिक सैनिक जवान सीमा पर शहीद हो चुके हैं।
यहां के गांवों में लोकदेवताओं की तरह पूजे जाने वाले शहीदों के स्मारक इस परम्परा के प्रतीक हैं। इस जिले के वीरों ने बहादुरी का जो इतिहास रचा है उसी का परिणाम है कि भारतीय सैन्य बल में उच्च पदों पर सम्पूर्ण राजस्थान की ओर से झुंझुनू जिले का ही वर्चस्व रहा है। इस क्षेत्र के सैनिकों ने भारतीय सेना में रहकर विभिन्न युद्धो में बहादुरी एवं शौर्य की बदौलत जो वीरता पदक प्राप्त कियें हैं वे किसी भी एक जिले के लिये प्रतिष्ठा एवं गौरव का विषय हो सकता हैं। सीमा युद्ध के अलावा जिले के बहादुर सैनिकों ने देश मे आंतरिक शान्ति स्थापित करने में भी सदैव विशेष भूमिका निभाई हैं। सीमा संघर्ष एवं नागा होस्टीलीटीज हो या आपरेशन ब्लूस्टार या श्रीलंका सरकार की मदद हेतु किये गये आपरेशन पवन अथवा कश्मीर में चलाया गया आतंकवादी अभियान रक्षक या कारगिल युद्व। सभी अभियान में यहां के सैनिको ने शहादत देकर जिले का मान बढ़ाया हैं।
झुंझुनू जिले के हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत को 1948 के युद्व में वीरता के लिये देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। परमवीर चक्र पाने वाले पीरूसिंह शेखावत देश के दूसरे व राजस्थान के पहले सैनिक थे। यहां के सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्व में भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था। आज भी यहां द्वितीय विश्व युद्व के पूर्व सैनिकों की विधवाओं को सरकार से पेंशन मिल रही है।
यहां के जवानो ने सेना के सर्वोच्च पदों तक पहुंच कर अपनी प्रतीभा का प्रदर्शन किया है। इस जिले के चित्तोसा गांव के एडमिरल विजय सिंह शेखावत भारतीय नो सेना के अध्यक्ष रह चुकें है। वहीं स्व. कुन्दन सिंह शेखावत थल सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल व भारत सरकार के रक्षा सचिव रह चुके हैं। जे.पी.नेहरा, सत्यपाल कटेवा, लेफ्टिनेंट जनरल केके रेप्सवाल सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल पद से सेवानिवृत हुये हैं। लेफ्टिनेंट जनरल बसंत कुमार रेप्सवाल सेना सेवा कोर में कार्यरत हैं। इसके अलावा यहां के काफी लोग सेना में मेजर जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल, मेजर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत है। देश में झुंझुनू एकमात्र ऐसा जिला हैं जहां सैनिक छावनी नहीं होने के उपरान्त भी गत पचास वर्षो से अधिक समय से सेना भर्ती कार्यालय कार्यरत है। जिससे यहां के काफी युवकों को सेना में भर्ती होने का मौका मिल पाता है।
जिले में इतने अधिक लोगों का सेना से जुड़ाव होने के उपरान्त भी सरकार द्वारा सैनिक परिवारों की बेहतरी व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है। कारगिल युद्व के समय सरकार द्वारा घोषित पैकेज में यह बात भी शामिल थी कि हर शहीद के नाम पर उनके गांव में किसी स्कूल का नामकरण किया जायेगा मगर जिले के ऐसे कई शहीदों के नाम पर अब तक सरकार ने स्कूलों का नामकरण कई नहीं किया है।
झुंझुनू जिले के दोरासर गांव में सैनिक स्कूल प्रारम्भ हो चुकी है जिसका लाभ सेना में जाने वाले यहां के युवाओं को मिलेगा। 19 साल पहले हमने करगिल तो जीत लिया था, लेकिन शहीदों के परिवारों के सामने आज भी समस्याओं के कई करगिल खड़े हैं। जिन पर जीत दर्ज करनी अभी बाकी हैं। सरकार द्वारा झुंझुनू जिले को देश का सैनिक जिला घोषित कर यहां के सैनिक परिवारों को सुविधाये उपलब्ध करवाने की तरफ पर्याप्त ध्यान दे तो आज भी झुंझुनू क्षेत्र से अनेक पीरूसिंह पैदा होकर देश के लिये प्राण न्योछावर कर सकते हैं। झुंझुनू जिले के सैनिको की बहादुरी देखकर कवि ने अपनी रचना में भी झुंझुनू के वीरो का गुणगान इस प्रकार किया है।
शुरा निपजे झुंझुनू, लिया कफन का साथ ।
रण-भूमि का लाडला, प्राण हथेली हाथ ।।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।)