रविवार दिल्ली नेटवर्क
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के गुज्जर–बकरवाल ट्राइबल एकेडमिक फ़ोरम द्वारा जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य में “रीक्लेमिंग वॉइसेज़: लाइफ़, लिटरेचर एंड लेगेसी ऑफ़ फतेह अली सरवरी कसाना” विषय पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें विद्वानों, लेखकों और प्रशासकों ने भाग लेकर प्रसिद्ध जनजातीय विद्वान, कवि, पत्रकार और समाज सुधारक फतेह अली सरवरी कसाना के साहित्यिक एवं सामाजिक योगदान पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की शुरुआत जेएनयू के सहायक प्रोफेसर डॉ. नसीब अली चौधरी के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने जनजातीय नायकों को याद करने और हाशिये पर मौजूद समुदायों की आवाज़ को शैक्षणिक मंचों पर प्रमुखता देने की आवश्यकता पर बल दिया।
सेमिनार के दौरान डॉ. अनिल कुमार सिंह (सहायक प्रोफेसर, जेएनयू), डॉ. इश्तियाक़ अहमद शौक़ (JKAS) तथा एडवोकेट अनवार चौधरी ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने सरवरी कसाना के जनजातीय अधिकारों के प्रति समर्पण, उनकी पत्रकारिता और सामाजिक सुधारों से जुड़ी विभिन्न उपलब्धियों पर विस्तृत चर्चा की।
कार्यक्रम का मुख्य संबोधन हसन पर्वाज़ चौधरी द्वारा दिया गया। उन्होंने सरवरी कसाना के जीवन, उनकी साहित्यिक उपलब्धियों और समुदाय के उत्थान में उनके योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार सरवरी कसाना ने शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की जनजातीय आबादी के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक थे।
सेमिनार का भावनात्मक पक्ष तब और गहरा गया जब ज़रीना नग़्मी कसाना, जो सरवरी कसाना की पुत्री हैं, ने अपने पिता के संघर्ष, दृढ़ निश्चय और जनजातीय समुदाय की उन्नति के लिए किए गए त्यागों को साझा किया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता को जम्मू-कश्मीर के गुज्जर–बकरवाल समुदाय का मार्टिन लूथर किंग कहा जाता था।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित श्री बसीर-उल-हक़ चौधरी, IAS, ने आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि जनजातीय विद्वानों और नेताओं की विरासत को शैक्षणिक रूप से दर्ज करना अत्यंत आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा ले सकें।
अंत में डॉ. मलकन सिंह (सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर, जेएनयू) ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया और सभी वक्ताओं, अतिथियों तथा प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
यह कार्यक्रम न केवल जनजातीय समुदायों की समृद्ध बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, बल्कि फतेह अली सरवरी कसाना की अमर विरासत को भी नई ऊंचाइयों तक पहुँचाने वाला रहा।





