सीता राम शर्मा ” चेतन “
पंद्रह नवंबर झारखंड वासियों के लिए सबसे बड़े उत्सव का दिन है ! बिहार के रुप में दशकों तक झारखंड के क्षेत्र का जिस तरह शोषण-दोहन हुआ और इसे इसके विकास के वास्तविक अधिकारों से दूर रखा गया, वह जग जाहिर सत्य है, जिसे याद करना, जिस पर बात करना या फिर जिसके कारण और दोषियों का जिक्र करना कम से कम आज के दिन अच्छा नहीं होगा । इसलिए उत्सव और उल्लास के इस सुनहरे अवसर पर आज बात सिर्फ और सिर्फ झारखंड और इसके हर एक विकसित, अविकसित, अग्रणी और उपेक्षित नागरिक के विकास और उसके स्वर्णिम भविष्य की ! निश्चित तौर पर इसके लिए हमें बहुत इमानदारी और निष्पक्षता के साथ अपने राज्य के हर क्षेत्र, संसाधन, शक्ति और कमजोरी पर गहन दृष्टि डालने और इससे जुड़े तमाम तथ्यों पर सोचने समझने और फिर बहुत कुछ करने की जरूरत है !
15 नवंबर 2000 को मुख्य रूप से गुरुजी शिबु सोरेन की अगुवाई में दशकों तक अलग राज्य के लिए किए गए आंदोलन और लंबे जीवट संघर्ष को जब अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्त्व वाली केंद्र सरकार ने सफलिभूत करते हुए झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिया तो हर एक झारखंड वासी का चेहरा असीम उल्लास से भर उठा और अनायास ही विकास से उपेक्षित रहे उन करोड़ों झारखंडियों की आंखों में विकास और समृद्धि के असंख्य नये सुनहरे सपने भर आए थे । झारखंड अलग राज्य बनने के 22 वर्ष बाद यदि आज हम उन सपनों को याद करें और इस पूरी अवधि में हुए विकास का मुल्यांकन करें तो परिणाम उत्साहित करने और उत्साह को बनाए रखने वाले दिखाई देते हैं । निराश या निरुत्साहित होने के वैसे कोई कारण दिखाई नहीं देते, जो झारखंड या झारखंड के किसी भी नागरिक को उसके वर्तमान और भविष्य को लेकर आशंकित, भयभीत करते हों । बहुत इमानदारी और पूरी स्पष्टता से इस संदर्भ में बात करें तो झारखंड में जिस एक बात को लेकर सबसे ज्यादा विवाद, असमंजस और भय का माहौल बनाया जाता है, वह यहां की मानवीय आबादी को भीतरी-बाहरी, मूलवासी और स्थानीय कहने, बताने और बनाने को लेकर है, जिस पर बहुत ज्यादा चिंतित, भ्रमित और भयभीत होने की जरूरत बिल्कुल नहीं है । यह पूरी तरह एक राजनीतिक लाभ-हानी का खेल है । जनता को इस खेल से आपसी भाईचारे और मेलजोल में किसी भी तरह की खटास डालने की कतई जरूरत नहीं है । भूमंडलीकरण के वर्तमान समय में जब दुनिया एक गांव या शहर बन रही है ! देशी और विदेशी शब्द और भाव सिमट कर एकाकार हो रहे हैं ।
जाति-धर्म, उंच-निच के भेदभाव खत्म हो रहे हैं ! सारे भेद भूलकर मनुष्यता के नये संबंध स्थापित हो रहे हैं । आजीविका और उधोग के लिए एक देश दूसरे देश के लिए बांहें फैलाए स्वागत में खड़े हैं, तब वसुधैव कुटुम्बकम के महान भाव और विचारों वाले देश भारत के किसी मनुष्यता और प्रकृति प्रेमी राज्य के निवासियों को अपने ही देश के लोगों के लिए भीतरी-बाहरी जैसे शब्दों या विचारों का भय पालने की कतई जरूरत नहीं है । यह हर झारखंड वासी के लिए बेहद सुखद और संतोषजनक स्थिति है कि झारखंड की वर्तमान सरकार ने इस सबसे विवादित मुद्दे का समाधान कर दिया है । मेरा स्पष्ट मानना है कि 1932 खतियान लागू होने से किसी भी झारखंड निवासी को भयभीत या आक्रोशित होने की कतई जरूरत नहीं है । इससे उनके जीवन या कार्य रोजगार को कोई नुकसान नहीं होगा । रही बात इसके लागू होने से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में सिर्फ और सिर्फ मूलवासी को नौकरी मिलने या देने की, तो यह उनका हक है । सरकार को नौकरी के साथ आर्थिक आधार पर पिछड़े हर मूलवासी के विकास के लिए मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की क्रांतिकारी योजनाएं बनानी चाहिए ।
अंत में बात झारखंड और हर झारखंड वासी के समग्र विकास की तो इसके लिए अब शांति, सुरक्षा और न्याय की उत्कृष्ट व्यवस्था बनाने की जरूरत है । गौरतलब है कि किसी भी देश या राज्य के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शांतिपूर्ण सुरक्षित वातावरण की होती है । देशी या विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की भी यह पहली शर्त होती है । यदि झारखंड सरकार राज्य में कानून का राज स्थापित करने का सफल प्रयास करे, सुरक्षा और निवेश की पारदर्शी नीतियां बनाए और उसे पूरी इमानदारी से सफलतापूर्वक जमीन पर उतारे तो प्राकृतिक संसाधनों की विरासत वाला यह राज्य देश का अग्रणी और विकसित राज्य बन सकता है । इसके लिए जरुरी है उन सभी उधोगों की स्थिति पर दृष्टि डालने की भी, जो अलग राज्य बनने के बाद नीतिगत आधार पर यहां लगे या लगाए जाने थे ! कितने लगे और कितने नहीं लगे ? जो लगे उसमें कितने सफल हुए ? जो सफल नहीं हुए या लग ही नहीं पाए तो क्यों ? एक राज्य के रूप में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौतियां क्या है ? उनका समाधान कैसे करें ? जब तक सरकार और राज्य का हर नागरिक राज्य गठन के बाद की इन सारी बातों, कमियों, कमजोरियों, खूबियों पर पूरी इमानदारी से विचार और व्यवहार नहीं करेगा, एक राज्य और राज्य के जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमारे सपने अधूरे रहेंगे । आइए, अपने राज्य और राज्य के हर नागरिक के विकास के लिए आज जोहार का उद्घोष करते हुए हम अपने राज्य को देश का सबसे शांतिपूर्ण, सुरक्षित, खुशहाल, समृद्ध और अग्रणी राज्य बनाने का संकल्प लें ! जोहार झारखंड ! जय झारखंड ! जय भारत !