अभिषेक यादव
आज हिंदी पत्रकारिता जिस दौर से गुजर रही है उससे संक्रमण काल नहीं अपितु संक्रमित काल कहा जाएगा, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या क्या लिखा जा रहा है क्या क्या बेचा जा रहा है यह किसी को भी पता नहीं ,आज पाठक नहीं है एक उपभोक्ता है और एक प्रोडक्ट है समाचार !
अपनी निजी गाड़ियों पर प्रेस का स्टीकर लगाकर खुद को पत्रकार साबित करने की होड़ लगी हुई है ,टोल पर पैसा ना देना पड़े ,लोगों पर धाक जमें ,बस यही है आज के पत्रकार की चाहत ! उसमे भी हास्यप्रद यह है की लोक जागरूकता शब्द का अर्थ तो आज के पत्रकारों को शायद किसी शब्द कोष में तलाशना पड़े !
समकालीन पत्रकारिता में पत्रकार चाहे वो कोई भी माध्यम हो उसमे विचारक और उपदेशक की भूमिका निभा रहे हैं,
यह सही है की समाचार पत्र को भी राजस्व की जरूरत होती है अपने संचालन के लिये इस हेतु सत्ता पक्ष का गुणगान भी करना पड़ता है l
पर वर्तमान में पत्रकार तो उस उक्ति को चरितार्थ करने का काम कर रहें हैं ‘हमनें कहा था पाँव छूने को, आप तो तलवे चाटने लगे’ !
पत्रकारिता की शिक्षा का मूल स्तम्भ है समाचार लेखन या प्रस्तुति करण की उल्टी पिरामिड विधि अर्थात महत्वपूर्ण सूचना सबसे पहले और अगर स्थान रह जाये तो कोई निष्कर्ष दें l
पर हर गली नुक्कड़ पर खुले पत्रकार बनाने वाले संस्थान तो शायद पिरामिड को सीधा कर पढ़ा रहें हैं यानी पहले पत्रकार अपनी निजी राय रखता है किसी घटना पर औऱ अंत मे होती है सूचना I
कब ,कहाँ, क्या ,कैसे औऱ क्यूँ यही होता है समाचार लेखन का नियम इसी क्रम में ! पर समकालीन पत्रकारिता तो ‘क्यूँ’ से समाचार लेखन, प्रस्तुतिकरण में विश्वास करती है ,पर पाठक मूर्ख नहीं वह समझ जाता है पर विकल्प हीनता के कारण दुर्भाग्यवश सोशल मीडिया पर चल रही खबरों की और रुख करता है ,जो संभवतः समकालीन पत्रकारिता का सबसे दूषित रूप है !
कोई व्यक्ति माइक लेकर किसी से भी सवाल करे, या किसी घटना पर अपनी राय दे ,उसे कोई भय नहीं ! कम से कम समाचर पत्र हो या न्यूज़ चैनल सब के संपादक अपनी खबरों के लिए किसी न किसी रूप में कानून के प्रति उत्तरदायी तो होते हैं !
पर ये सोसलिय पत्रकार बेखौफ अपने उपदेश देते हैं, संचार में तकनीकी क्रान्ति के इस खतरे की और किसी की निगाह नही जाती, आज स्मार्टफोन के रूप में हर कोई अपने जेब में कैमरा औऱ रिकॉर्डर लेकर घूमता है औऱ बन जाता है पत्रकार! उस पर बताया जाता है की भारत में इंटरनेट सबसे सस्ता है… लो हो गया सोने पे सुहागा…!
समकालीन पत्रकारिता के सन्दर्भ में यह भी विचारणीय प्रश्न है की लगभग 60 प्रतिशत साक्षरता की दर रखने वाला 130 करोड़ की आबादी का देश विश्व मे सबसे अधिक समाचार पत्रों का प्रकाशन करता है!
स्पष्ट है ,यह तो वही बात हुई की भैंस ने दूध दिया 10 लीटर और हमने पनीर बना लिया 15 किलो!