औचित्यहीन है अडानी मामले में जेपीसी की मांग

सुशील दीक्षित विचित्र

कांग्रेस ही नहीं उसके कुछ सहयोगी दल अक्सर उस मांग को उठाते रहे हैं जिसको उठाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है । इस समय उनकी मांग है कि अडानी मामले में जेपीसी गठित करके मामले की जांच कराई जाए । कांग्रेस भी जानती है कि यह उसकी गलत मांग है लेकिन अपने युवराज पर से निशाना हटाने के लिए खड़गे एन्ड कम्पनी ने यह गलत राह चुनी । बड़ी बात नहीं कि आगे इस मुद्दे पर कांग्रेस नीत दल संसद न चलने दें लेकिन उससे उन्हें अपयश के अलावा और कुछ हासिल होने वाला नहीं । जेपीसी की मांग इसलिए और भी अनुचित है कि मामला अदालत में विचाराधीन है। जब कोई मामला न्यायालय में होता है तो उस पर किसी और कमेटी द्वारा जांच कराने का मतलब समय और धन बर्बाद करना है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे यदि समझते हैं कि इस तरह की राजनीति से वे कांग्रेस का सितारा फिर बुलंद कर देंगे तो यही कहना पड़ेगा कि वे मुगालते में हैं और उनके पूरे राजनीतिक अनुभव पर पानी फिर जाता है । उनका यह आक्रोश इसलिए भी इन दिनों बढ़ा है कि उनके आदर्श राहुल गांधी लंदन में दिये गए देश विरोधी भाषणों के चलते केवल सरकार के ही नहीं आम आदमी तक के निशाने पर आ गए हैं क्यूंकि देश के अंतिम सिरे पर खड़ा अंतिम आदमी भी अपने देश को बदनाम करने वाले को माफ़ नहीं करता । राहुल गांधी का समर्थन तो पार्टी के अंदर भी नहीं है लेकिन जनता और सरकार का ध्यान हटाने के लिए खड़गे ने जेपीसी की मांग को ले कर मार्च निकालने का नाटक किया । इस बात की मांग की कि अडानी और मोदी के बीच रिश्ते की जांच की जाए ।

यह दिशाहीन ही नहीं बरगलाने वाली वैसी ही दोयम दर्जे की राजनीति है जैसी कि कांग्रेस के कई बर्षों से करते आ रहे रहे हैं । इससे न पहले कांग्रेस को कोई लाभ मिला और न आगे कोई संभावना है । खड़गे को पता है कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गयी समिति किसी मामले की जांच कर रही होती है तो किसी अन्य एजेंसी को भले ही वह जेपीसी क्यों न हो , जांच के लिए मामला नहीं सौपा जाता । यह एक स्थापित तथ्य है लेकिन कांग्रेस इस तथ्य को वैसे ही उलटने के लिए अड़ी है जैसे वह इससे पहले भी अपने भ्रष्टाचार के तथ्यों को उलटने का प्रयास करती रही । यह अलग बात है कि वह न पहले सफल हुयी थी और न अब उसकी सफलता की कोई सम्भवना है । इसके बाबजूद यदि अडानी मामले को उठाती है तो यह सन्देश जाने में कोई देरी लगने वाली नहीं कि कांग्रेस की वैचारिक सोंच थक चुकी है और अब उसके पास खीझ उतारने के लिए देश की बदनामी करने और देश और संसद का कीमती समय बर्बाद करने के अलावा कोई सकारात्मक राजनीतिक विचार नहीं बचा है ।

कांग्रेस को लगने लगा है कि अडानी प्रकरण उसके लिए एक बड़ा अवसर है लेकिन ऐसा लगना भी कांग्रेस की दोहरी मानसिकता का ही प्रमाण है। मोदी अडानी के बीच रिश्ता खंगालने के लिए उतावले खड़गे को पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अडानी के बीच रिश्ता तलाशना चाहिए । इस काम में उन्हें राहुल गांधी का भी सहयोग लेना चाहिए ताकि पा चले कि अडानी से गहलोत ने क्या लाभ कमाया जो उन्हें 60 हजार करोड़ की परियोजना सौंपी । अपनी छत्तीस गढ़ वाली सरकार से पूछना चाहिए की उसका अडानी से क्या रिश्ता नाता है जो उन अडानी को अपने राज्य में निवेश करने को बुलाया । यदि खड़गे और उनके सहयोगी कहतें कि अडानी मामले को जनता देख रही है तो उनके राजस्थान और छत्तीसगढ़ के निवेश पर खड़गे के हिसाब से जनता ने अपनी आँखे वैसे ही बंद कर ली जैसे राहुल गाँधी ने पत्रकारों द्वारा किये गए इस तरह के सवालों पर आँखे बंद कर ली थी। खड़गे और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का यह भी भ्रम है कि अन्य विपक्ष उसके साथ है । कई मौके ऐसे आये जब उसके ही सहयोगी दलों ने अलग राह पकड़ी । नागालैंड में एनसीपी ने बिना मांगे भाजपानीत सरकार को अपना समर्थन दे दिया वह भी तब जब कि दल पूर्ण बहुमत में है और उसको ऐसे किसी समर्थन की जरूरत नहीं है । खड़गे ने कुछ विपक्षी दलों को ले कर ईडी मुख्यालय तक मार्च निकाला । उनके मार्च को उनके ही सहयोगी दल एनसीपी का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ और न ममता बनर्जी की टीएमसी ने उनके साथ खड़ा होना पसंद किया । खड़गे और कांग्रेस के अन्य नेताओं को पता होना चाहिए कि नाटक नौटंकी और स्वांगों से कमसेकम अब राजनीति को प्रभावित नहीं किया जा सकता । कोई ठोस योजना , कोई प्रभावी एजेंडा यदि नहीं है तो आज के बदले राजनीतिक माहौल में सफलता की गारंटी करना भी नादानी है । सब आर्थिक संस्थाओं को बर्बादी का ढोल पीटना और उद्योगपतियों के खिलाफ षड्यंत्र रचना कांग्रेस की समझ में यदि कारगर योजना है तो यही कहा जाएगा कि पतन की ओर अग्रसर कांग्रेस को उबारने में उनके ही नेताओं की कोई दिलचस्पी नहीं है । यदि दिलचस्पी होती हो ऐसे फार्मूलों पर वे दांव नहीं लगाते जो हर बार पिटे ही नहीं बल्कि कांग्रेस को ही भारी हानि उठानी पड़ी। जिस हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट पर कांग्रेस अडानी के बहाने मोदी सरकार को घेरने के लिए जमीन आसमान एक कर रही है उसके अपने देश अमेरिका की बैंकिंग प्रणाली ध्वस्त हो गयी। दो बड़े बैंक सिलिकॉन वैली और सिग्नेचर बैंक बंद हो गए है लेकिन उसे इस पर कभी कोई रिपोर्ट बनाने की नहीं सूझी । सूझने की हिम्मत भी नहीं थी क्यूंकि अमेरिका में हिंडनबर्ग पर अपने देश के किसी आर्थक मामले की रिपोर्ट प्रकाशित कराने पर प्रतिबंध है । फिर भी जैसा कि पहले कहा गया है कि जब मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की कमेटी कर रही है तब किसी अन्य कमेटी के गठन का औचित्य भी नहीं है और ऐसा करना कोर्ट की निष्पक्षता पर संदेह करना होगा ।

यदि सरकार सदन में इस मामले पर चर्चा नहीं करा रही है तो इसका भी यही कारण है कि इसको देश की सबसे बड़ी अदालत देख रही है। फिर भी उम्मीद नहीं कि कांग्रेस इस मुद्दे को आसानी से छोड़ देगी। इसके बहाने वह अपनी राजनीतिक जमीन तलाश करने की कोशिश करेगी। ऐसी कोशिश 2019 में हुयी थी। उसका जो नतीजा आया वह कांग्रेस के लिए बहुत घातक था । खुद राहुल गांधी कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली अमेठी की सीट नहीं बचा पाए थे। इसलिए असम्भव के पीछे भागने की जगह कांग्रेस यदि मुद्दों की राजनीति करे तो उसके लिए बेहतर होगा । मुद्दों की कमी नहीं है लेकिन विपक्ष का कोई भी दल इन्हें प्रभावी तरीके से नहीं उठा पा रहा है । जनता के बड़े हिस्से को भी अडानी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से कोई लेना देना नहीं । हर बैंक में वह काम काज सुचारु तरीके से होते देख रही है । अमेरिका की तरह न अभी तक कोई बैंक दिवालिया हुयी और न ही किसी ने कहा कि उसे अडानी समूह में निवेश से कोई घाटा हुआ । एसबीआई , पीएनबी , एलआईसी सभी ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया कि उनका अडानी ग्रुप में एक प्रतिशत से भी कम निवेश है । सोशल मीडिया पर भी कई बार ऐसी रिपोर्ट डाली गयीं। इसलिए विपक्ष अडानी के अलावा कुछ और सोंचे । कोई ऐसा विमर्श खड़ा करे जो मोदी के विमर्श से बड़ा और भाजपा के विमर्श से अधिक आकर्षक हो । इसके अलावा कांग्रेस को जमीन से जुड़ना होगा । यदि नहीं जुड़ेगी और अपना संगठन मजबूत नहीं बना सकी तो उसके लिए राजनीति की चिकनी सतह पर खड़ा होना भी मुश्किल हो जायेगा । 2024 में इस मुद्दे अपर चुनाव लड़ कर कांग्रेस अपने लिए मुश्किलें ही खड़ी करेगी , वैसी ही मुश्किलें जैसी 2019 में खड़ी हुयी थीं और जिसके बाद इन मुसीबतों ने कांग्रेस को फिर खड़ा नहीं होने दिया ।