जस्टिस धनंजय यशवंत चन्द्रचूड: सर्वोच्च न्यायालय के 50वें मुख्य न्यायाधीश

प्रो: नीलम महाजन सिंह

प्रजातंत्र के चार स्तंभ, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस की स्वतंत्रता का सदैव सम्मान किया जाना चाहिए।न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता पर समय-समय पर प्रश्न उठते रहते हैं। मुझे यह लेख लिखने में बहुत प्रसन्नता हो रही है, कि मेरे सेंट स्टीफंस कॉलेज के हम-साथी, धनंजय वाई.चंद्रचूड भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 50वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहें हैं। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड के नाम पर मोहर लगा दी है। दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल, सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली के लाॅ सेंटर, हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक कर न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड, भारत में वापिस आ कर अधिवक्ता बने। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से कानून में दो डिग्रीयां प्राप्त कीं। 39 वर्ष की उम्र में वह वरिष्ठ अधिवक्ता बनने वाले भारत के सबसे कम उम्र के वकीलों में से एक थे। 1998 में उन्हें भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया।
पिता वाई. वी. चंद्रचूड के बाद अब, बेटे डी.वाई. चंद्रचूड सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। उनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड भी सी.जे.आई रह चुके हैं। यह पहली एकमात्र पिता-पुत्र की जोड़ी है जो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर गौरवांवित हुए। इसके बाद 1998 में उन्हें भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। बतौर वकील उन्होंने ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय कानून पढ़ाया और 1988 से 1997 तक बॉम्बे यूनिवर्सिटी में तुलनात्मक संवैधानिक कानून में गेस्ट प्रोफेसर रहे। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड को 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया था, जहां उन्होंने 13 साल तक सेवाएं दीं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड को 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 3 साल बाद 2016 में उन्हें शीर्ष अदालत में स्थानीकृत किया गया।जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं। इन्हें सत्ता का भोंपू भी नहीं समझा जाता है। वे अपने विवेक से निर्णय लेने में समर्थ हैं। भारतीय उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई .वी. चंद्रचूड 1978 में मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए थे। इस पद पर 7 साल तक कार्य करने का सबसे लंबा कार्यकाल भी उन्हीं के नाम है। वाई.वी. चंद्रचूड ने अपने कार्यकाल के दौरान संजय गांधी को ‘किस्सा कुर्सी का’ नामक फिल्म को लेकर सज़ा सुनाई थी। यह फिल्म इंदिरा गांधी और बेटे संजय गांधी की राजनीति पर व्यंग्य थी और आपातकाल के दौरान भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी। जस्टिस चंद्रचूड ने अपने पिता के 2 फैसले पलटे व खारिज कर दिये थे, जिसमें औपनिवेशिक ब्रिटिश युग के व्याभिचार कानून को बरकरार रखा था। दरअसल, यशवंत विष्णु चंद्रचूड ने धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा; हालांकि उनके बेटे न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड ने इस कानून को रद्द करते हुए कहा था, “हमें अपने निर्णयों को वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक बनाना चाहिए”। धनंजय चंद्रचूड ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए। अयोध्या का मामला हो या महिलाओं के अधिकार का या सेना और नेवी में महिलाओं को अधिकारिक कमीशन दिलाने का। उनके फैसलों की फेहरिस्त काफ़ी लंबी है। हाल ही में जस्टिस चंद्रचूड ने एक ऐतिहासिक फैसले में महिलाओं के प्रजनन या गर्भपात कराने के अधिकारों को कानूनी जामा पहनाया था। उस फैसले में अविवाहित या अकेली गर्भवती महिला को 24 सप्ताह तक गर्भपात करने से रोकने के कानून को रद्द कर सभी महिलाओं को एक समान अधिकार दिया। साथ ही पहली बार मैरिटल रेप को परिभाषित करते हुए पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने से गर्भवती विवाहित महिलाओं को भी नया अधिकार दिया। फैसला लिखते समय उन्होंने उल्लेख किया कि पुराना प्रावधान समानता के अधिकार की भावना का उल्लंघन का उलंघन है। वे उन जजों में से एक हैं, जिन्होंने कभी-कभी अपने साथी जजों के साथ असहमति जताई। ‘आधार’ के फैसले में जस्टिस चंद्रचूड ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि ‘आधार’ को असंवैधानिक रूप से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था जो कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड के साथ काम करने वाले सहयोगियों का कहाना है कि वे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को भी खुले तौर पर श्रेय देते हैं और काम के लिए प्रत्येक की प्रशंसा करते हैं। “वे हमें पूरे समय प्रेरित करते रहते हैं”। हमें यह गर्व करना चाहिए कि सत्ता की जितनी भी कशमकश क्यों ना हो न्यायपालिका की स्वतंत्रता व संवैधानिकता भारत के प्रजातांत्रिक गणराज्य स्वरूप को सुदृढ़ करने की मूलभूत नींव है। सत्यदेव जयते।

(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक व सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण)