कर्म या धर्म ज़रूरी

पिंकी सिंघल

कहा जाता है कि व्यक्ति के अपने कर्मों के हिसाब से ही उसे जन्म मिलता है ।अच्छे और पुण्य कर्म करने वाले जीव को भी 8400000 योनियों के पश्चात ही मनुष्य जीवन मिलता है ।मनुष्य जीवन प्राप्त करने के लिए हमें सदकर्म करने चाहिएं, किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए और अपने आप को बुरे कर्मों से यथा संभव दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। अच्छे कर्म करने से आत्मिक शांति तो मिलती ही है साथ ही साथ ऐसा करके हम मनुष्य होने का फर्ज भी निभाते हैं।

ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को एक समान बनाया है। शारीरिक और मानसिक विभिन्नताएं होते हुए भी हम सभी मनुष्य मनुष्य योनि में आए, यही सबसे बड़ी और अहम बात है ।कहा जाता है कि कोई भी दो मनुष्य एक जैसे नहीं होते। किंतु मनुष्य मनुष्य में भेद हम मनुष्य ने ही बनाए हैं, ईश्वर ने तो हम सबको समान ही बनाकर भेजा था। हमारे ग्रंथों और शास्त्रों में भी लिखा है कि अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति सदैव सद्गति को प्राप्त होता है, इसलिए हमें अपनी गति सुधारने के लिए और अगले जन्म में मानव जीवन पाने के लिए शुभ कर्म करने चाहिएं, पाप कर्मों से अपने आप को बचाना चाहिए ,गलत कार्यों में किसी का साथ नहीं देना चाहिए और मानव मूल्यों को जीवन में सर्वोपरि रखकर ही अपने जीवन को जीना चाहिए।

कर्मों के साथ-साथ हमारे कुछ धर्म भी शास्त्रों में बताए गए हैं जिनका पालन करना नितांत आवश्यक है ।एक सफल जीवन जीने के लिए हमें कर्मों के साथ-साथ अपने धर्मों का भी उतनी ही शिद्दत से पालन करना चाहिए जितनी शिद्दत और इमानदारी से हम अपने कर्म करते हुए सतर्कता से नियमों का पालन करते हैं। जिस प्रकार अच्छे कर्म करने का फल हमें जरूर मिलता है उसी प्रकार अपने धर्मों का निष्ठा से पालन करने पर हमें आत्मिक शांति के साथ-साथ समाज में एक विशिष्ट पहचान भी मिलती है ।अपनों के लिए कुछ करने का जज्बा और समाज के लिए हित उपयोगी सिद्ध होने का एहसास मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होता है। धर्म अनेक प्रकार के हो सकते हैं जैसे, मनुष्य होने का धर्म, विभिन्न रिश्तों को निभाते समय निभाए जाने वाला धर्म; यथा: पिता धर्म ,भाई धर्म ,पत्नी धर्म, पति धर्म, संतान धर्म इत्यादि इत्यादि।

यह संभव नहीं है कि पूरी इमानदारी और सत्य निष्ठा के साथ अपने धर्मों का पालन करते हुए भी हम मनुष्यों से कोई चूक ना हो, किंतु जानबूझकर की जाने वाली गलती और असावधानी से हमें सदैव बचना चाहिए और पूरी सावधानी और कर्तव्य निष्ठा के साथ ही अपने हर प्रकार के धर्म का पालन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। धर्मों का पालन करते हुए ऊंच-नीच और छोटी छोटी बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए । संभव है कि धर्मों का पालन करते हुए हमें शत-प्रतिशत सफलता और संतुष्टि न मिले ,किंतु हमें अपने प्रयासों में कभी कोई कमी या कोर कसर बाकी नहीं छोड़नी चाहिए। यही मानव कर्तव्य है ,यही मानव कर्म है और सही मायनों में यही मानव धर्म भी है।

सार रूप में कहा जा सकता है कि कर्म और धर्म दोनों ही मनुष्य के लिए नितांत अनिवार्य हैं इनका पालन हम सभी को करना ही चाहिए। किसी भी सूरत में दोनों की महत्ता कम नहीं आंकी जा सकती। जिस प्रकार बिना शुभ कर्म किए मनुष्य को सद्गति प्राप्त नहीं होती ,उसी प्रकार बिना धर्म का पालन किए मनुष्य को आत्मिक शांति और सुख प्राप्त नहीं हो सकता ।इसलिए अपने कर्मो और धर्म के पालन में हमें कभी कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए ।