कर्म

karma

संदीप पांडे”शिष्य

किरमानी एण्ड सन्स, देश का एक जाना माना उद्योग परिवार है। फार्मास्यूटिकल्स और ब्यूटी केयर के सैकड़ो उत्पाद कम्पनी बेच रही है। पैसठ बरस के एस किरमानी अब अपने दो बेटो के काम संभाल लेने से लगभग रिटायर्मेंट ले चुके है। चालीस साल पहले तक एक टेंपो मे क्रीम- पाऊडर बेचने से शुरू करने के बाद साल दर साल अपनी आमदनी को कई गुना बढाते गए। दोनो बेटो को बिजनेस का बंटवारा कर देने के बाद अब वो बस मंहगे क्लब की सदस्ता लेकर गोल्फ खेलते है और बिजनेस समारोह मे भाषण देते है।

एक ऐसे ही समारोह मे जब भाषण के बाद लंच चल रहा था तो उनसे मिलने एक उनका हमउम्र आकर खडा हो गया। उसको देखते ही किरमानी के चेहरे का रंग उड गया।

वो शख्स कुछ देर उसे मुस्कुरा कर निहारने के बाद बोला ” क्यो किरमानी मिलकर खुशी नही हुई?”

” अरे नही दत्ता, यूं अचानक इतने वक्त बाद देख आश्चर्य मे था। ”

” हां होना भी चाहिए, पैंतीस साल पहले किसी को धोखा दो और वो सामने हंसता – मुस्कुराता सामने आ जाए तो आश्चर्य और चिन्तित होना लाजिमी है। तुमने तो सोचा होगा कि अबतक तो दत्ता मर-खप गया होगा। ”

” अरे भाई दत्ता मैं शर्मिन्दा हूँ कि उस वक्त मैं समय पर तुम्हारे पैसे नही लौटा पाया फिर धंधे मे ऐसा उलझा कि सबकुछ भूल गया। मैं तुम्हारी रकम आज ही लौटा दूंगा। ”

” रकम तो तुम लौटा दोगे पर मेरा वो तकलीफ वाले समय की पूर्ति कैसे करोगे। तुम्हारे कारण पांच साल मैं पाई – पाई का मोहताज बन गया था। मैने अपनी सारी जमा पूंजी तुम्हे दोस्त के नाते दी थी पर तुमने हमारी दोस्ती को ऐसा दाग लगाया कि मै फिर किसी से भी गाढी दोस्ती नही कर पाया। तुम्हरी दगाबाजी ने मेरे पूरे परिवार को तकलीफ दी है और अब मेरे मूंह से भी तुम्हारे लिए बद्दुआ निकलती है। वैसे तो तुम भी मेरी तरह अधिकांश जीवन व्यतीत कर चुके हो पर अपने बुरे कर्म का हिसाब तो तुम्हे इसी जीवनकाल मे देकर जाना पडेगा। ”

यह कह कर दत्ता वंहा से चला गया पर किरमानी को दुखः की चादर मे लपेट गया था। उसके साथ वाले यह महसूस कर रहे थे कि हंसता मुसकुराता किरमानी अब बिल्कुल चुपचाप है। वो पैंतीस साल पुराने वक्त को याद कर रहा था जब उसने दत्ता के अलावा तीन और लोगो से पांच-पांच लाख कुछ महीने का वास्ता देकर उधार लिए थे। टैंपो छोड उसने दूसरे शहर मे जाकर दवाई की दुकान खोल ली थी। दुकान अच्छी चलने भी लगी पर उसके तो स्वप्न बहुत बडे थे।

उन बडे सपनो के आगे दोस्ती छोटी रह गई। उसने अपना अता – पता बदलकर पुराने संपर्कों को पूर्ण रूप से अलविदा कह दिया। आर्थिक उन्नति और बढ़ती सामाजिक प्रतिष्ठा ने उन को याद करना भी गैर जरूरी बना दिया।

पर आज जाने क्यो उसे अपनी यह गलती बहुत कचोट रही थी। उसे क्लब जाना था पर वो सीधा घर गया। पता चला कि उसकी पत्नी को अस्पताल लेकर गए है। वो उल्टे पैर अस्पताल भागा। उसके पंहुचने से पहले ही तेज ह्रदय घात ने पत्नी की जान ले ली थी। उसका यह सदमा पूरा भी नही हुआ था कि बेटे ने अस्पताल पंहुच कर बताया कि फैक्ट्री के एक हिस्से मे आज आग लग गई थी। कोई हताहत तो नही हुआ पर आर्थिक हानि काफी बडी थी। बिजनेस मे अवरोध और नुकसान स्वभाविक है पर आज ही अचानक दो बडे झटको ने किरमानी को सुन्न कर दिया था। परिवारजन भी अपने मजबूत पिता को इस तरह टूटा देख हतप्रभ थे।

सब लोग किरमानी को हर परिस्थित मे डटकर खडे देखने के आदि थे। सब उसपर विशेष ध्यान रख रहे थे। तेरहवी पूरी होते ही किरमानी ने अपने दोनो बेटो को पास बिठा कर सालो पहले उसकी द्वारा जानबूझकर सिर्फ अपने मतलब के लिए की गई गलतीयो के बारे मे खुलकर बताया।

बेटो को अपने पिता से इस तरह के कृत्य की आशा नही थी। पर अब उस गुजरे वक्त को तो ठीक करना संभव ना था पर आने वाले वक्त को लोगो की बद्दुआ से मुक्त रखने का प्रयास तो किया ही जा सकता था। सो तय हुआ कि उन सभी पुराने संपर्क से मुलाकात कर व्यक्तिश माफी मांग उनकी आर्थिक रूप से क्षतिपूर्ति करने का प्रयास किया जाएगा।

अगले दिन से ही खोजबीन शुरू हुई और हफ्ते भर मे सबका पता लगा लिया गया। किरमानी ने सभी से जाकर मन से क्षमा याचना की और एक बडी धनराशि का चेक ससम्मान लौटाया। सच्चे मन से मांगी गई माफी का असर हुआ और नफ़रत से भरे दिल उसके प्रति काफी हद तक निर्मल हो गए।

किरमानी के मन का सारा बोझ जैसे उतर चुका था। वो अपने रोज की दिनचर्या को भी पूरी तरह बदल चुका था। क्लब लाइफ को उसने पूरी तरह त्याग दिया था। समाज सेवा के बहुत प्रकार के काम वो करने लग गया है जिसमे नए युवा व्यवसायीयो को आर्थिक मदद और मार्गदर्शन प्राप्त होना भी शामिल है।