तनवीर जाफ़री
कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम आ चुके हैं। स्वयं को अजेय समझने वाली भारतीय जनता पार्टी जो सत्ता में वापसी की बाँट जोह रही थी बुरी तरह धराशायी हो गयी है। और भाजपा जिस कांग्रेस को देशद्रोहियों की पार्टी,टुकड़े टुकड़े गैंग,यहाँ तक कि राष्ट्र को विभाजित करने के प्रयासों में लगी पार्टी बताकर देश को ‘कांग्रेस मुक्त ‘ बनाने के सपने देखती रहती है उसी कांग्रेस ने शानदार पूर्ण बहुमत हासिल कर राज्य की सत्ता पर अधिकार जमा लिया है। इन चुनाव परिणामों के तरह तरह के विश्लेषण हो रहे हैं। परन्तु एक बात तो साफ़ है कि राज्य के जागरूक,धर्मनिरपेक्ष मतदाताओं ने सामूहिक रूप से नफ़रत की राजनीति व ऐसे प्रयासों को,फ़ुज़ूल की बयानबाज़ियों तथा धार्मिक भावनाओं के बहाने वोट हासिल करने के सभी प्रयासों को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है।
कर्नाटक में सत्तारूढ़ रही भाजपा जोकि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी वह चुनाव प्रचार के दौरान अपनी उपलब्धियों का ज़िक्र करने के बजाय अपनी चिरपरिचित रणनीति के तहत यहाँ भी कांग्रेस,नेहरू गांधी परिवार व उसके पिछले शासनकाल पर ही ज़्यादा हमलावर रही । इनके नेताओं के भाषणों में चीन पाकिस्तान को ‘लाल आँखें’ दिखाने जैसा विरोध नहीं सुनाई दिया । ये उन अंग्रेज़ों के ज़ुल्म की दास्ताँ सुनाने से भी कतराते हैं जिन्होंने देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ रखा था और स्वतंत्र आंदोलन में भाग लेने वाले लाखों लोगों को यातनाएं दी थीं और शहीद किया था। बल्कि इनके निशाने पर वही कांग्रेस पार्टी व उनके नेता रहते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया और पराधीन देश को स्वाधीन कराया। इनके वोट मांगने के रंग भी निराले हैं। कभी बजरंग बली के नाम पर वोट मांगते हैं,तो कभी मुझे 91 गलियां दीं,मेरी क़ब्र खोदने को कह रहे,मुझे सांप कहा बिच्छू कहा जैसी बातें कर सहानुभूति का वोट मांगते हैं। कभी साम्प्रदायिक भय व विद्वेष फैलाकर तो कभी झूठे राष्ट्रवाद का लिबादा ओढ़ कर वोट मांगते हैं। कभी अपने विरोधियों को पाकिस्तानी, राष्ट्रविरोधी,देशविरोधी बताकर जनसमर्थन मांगते हैं,तो कभी कांग्रेस पर तुष्टीकरण का इलज़ाम लगाकर तो कभी अपने विरोधियों को टुकड़े टुकड़े गैंग बताकर जनता की सहानुभूति अर्जित करना चाहते हैं। यह सब कुछ कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान हुआ।
कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान हालांकि अनेक घटिया टिप्पणियां विभिन्न पार्टियों द्वारा की गयीं परन्तु सबसे विवादित टिप्पणी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा कर्नाटक के कोप्पल में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते समय की गयी थी । वहां नड्डा ने कहा था कि-‘9 साल पहले कैसा भारत था ? भ्रष्टाचार के नाम से जाना जाने वाला भारत था । कैसा भारत था ? फ़ैसले नहीं लेने वाला भारत था। कैसा भारत था ? घुटने टेक कर के चलने वाला भारत था। और जब आपने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया तो दुनिया में सिक्का जमाने वाला भारत बन गया,छलांग लगाने वाला भारत,विकसित भारत’। आज देखो भारत में जी 20 की बैठक हो रही है…… यह भारत की पहचान मोदी जी ने बनाई है इसको हमें समझना चाहिये। कर्नाटक की जनता ने नड्डा के इस बयान को गंभीरता से ‘समझा’ और अपने मतदान के द्वारा इसका ज़बरदस्त प्रतिवाद किया।
कर्नाटक के जागरूक मतदाताओं ने नड्डा का यह कथन अस्वीकार्य किया कि -‘2014 से पहले का भारत ‘घुटने टेक कर के चलने वाला भारत था’। निश्चित रूप से इससे पूरे देश का अपमान हुआ है । कर्नाटक की जनता ने जे पी नड्डा को भारत पाक युद्ध के उस इतिहास को फिर से पढ़ने के लिये मजबूर कर दिया जब भारतीय सेना ने भारत के लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ़्टिनेंट जनरल नियाज़ी ने 93 हज़ार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे। इतिहास गवाह है कि यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था। इस तरह इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने दुश्मनों को ‘घुटने टेकने’ पर मजबूर किया था। नड्डा साहब ने कर्नाटक में यह भी फ़रमाया था कि 2014 से पहले का भारत ‘फ़ैसले नहीं लेने वाला भारत था’। तो कर्नाटक की जनता ने उन्हें इसी 1971 भारत पाक संक्षिप्त युद्ध का वह इतिहास भी याद करा दिया कि उस समय अमेरिका ने अपना सातवां युद्ध पोत पाकिस्तान की मदद के लिये भेजने की घोषणा कर दी थी। परन्तु वह इंदिरा गाँधी का ही साहस था कि उन्होंन अमेरिका की किसी भी गीदड़ भपकी की परवाह नहीं की और ‘सख़्त फ़ैसला ‘ लेते हुये पाकिस्तान का विभाजन करा कर ही दम लिया।
रहा सवाल भारत में इसी वर्ष 2023 में दुनिया के बीस देशों के समूह जी 20 की बैठक आयोजित होने का, तो निश्चित रूप से यह समस्त भारतवासियों के लिये गर्व का विषय है। इससे पहले 2015 में तुर्की तथा 2020 में सऊदी अरब जैसे कई छोटे देशों में भी जी 20 की बैठक आयोजित हो चुकी है। परन्तु कर्नाटक के मतदाताओं को याद है कि जी 20 की बैठक से कहीं पहले भारत में सातवां गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन भी हुआ था जो कि इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में ही 7 से 12 मार्च 1983 के दौरान नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की तो स्थापना ही 1961 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति जमाल अब्देल नासेर तथा यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टिटो के प्रयासों से की गयी थी, जिसके सदस्य दुनिया के 120 देश थे। गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र (UNO) के बाद विश्व के देशों की केवल सबसे बड़ी सभा ही नहीं बल्कि यह पूरे महाद्वीप भर में भागीदार देशों के साथ बातचीत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच भी था। गोया कर्नाटक वासियों ने बता दिया कि भारत दुनिया में सिक्का जमाने वाला और छलांग लगाने वाला भारत दशकों पूर्व भी था।
दरअसल भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा भी अपने दल के उन्हीं नेताओं में हैं जो कांग्रेस,नेहरू गांधी परिवार,कांग्रेस के शासन काल को जितना ज़्यादा कोसेंगे और अपने नेतृत्व को यथा संभव ‘महामानव’ के रूप में प्रस्तुत करेंगे उतनी ही उनकी गद्दी सुरक्षित रहेगी। परन्तु कर्नाटक के परिणामों ने बता दिया कि ‘वफ़ादारी’ जताने के इस जोश में भाजपा नेताओं को उन ऐतिहासिक घटनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये जो विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखी जा चुकी हैं। ऐसा करना देश का भी अपमान है और देश की रक्षा करने वाले शहीद वीर जवानों का भी। ऐसे बयान कांग्रेस ही नहीं बल्कि देश के प्रति स्थाई दुराग्रह रखने के भी प्रतीक हैं। कर्नाटक चुनाव परिणामों में भाजपा को मिली करारी शिकस्त से साबित हो गया है कि नफ़रत फैलाने और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर वोट झटकने का सिलसिला और अधिक समय तक नहीं चलने वाला। यानी कहा जा सकता है कि कर्नाटक का चुनाव परिणाम कांग्रेस के प्रति अति दुराग्रह रखने का भी परिणाम है।