रविवार दिल्ली नेटवर्क
बीकानेर : बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित करणी माता मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाता है। देशनोक स्थित करणी माता मंदिर, भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर करणी माता को समर्पित है, जिन्हें काली या दुर्गा माता का अवतार माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ चूहों की पूजा की जाती है, जिन्हें श्रद्धालु काबा के नाम से जानते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
करणी माता मंदिर का इतिहास 15वीं सदी से जुड़ा हुआ है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, चारण कुल में अवतरण लेने वाली करणी माता ने अपने जीवनकाल में एक बार अपने भक्तों को दर्शन दिए थे और उनसे कहा था कि वे मृत्यु के बाद चूहों के रूप में जन्म लेंगे। यह मान्यता मंदिर की पूजा और चूहों की विशेष पूजा की वजह बन गई।करणी माता ने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्द्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा \’ओरण\’ (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना भी की थी।
मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली का अद्भुत उदाहरण है। सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर, अपनी भव्यता और जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का मुख्य मंडप और गर्भगृह श्रद्धालुओं को एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यहाँ की दीवारों पर की गई नक्काशी, स्थानीय कलात्मकता को दर्शाती है। करणी माता मंदिर में दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। विशेषकर नवरात्रि के दौरान, यहाँ भव्य उत्सव आयोजित होते हैं।
भक्तजन यहाँ विभिन्न प्रकार से पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर में हर दिन सुबह और शाम आरती होती है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यहाँ चूहों को पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु चूहों को दूध और मिठाई का भोग अर्पित करते हैं। यहाँ लगभग 25,000 चूहों का निवास है, माना जाता है कि किसी चारण की मृत्यु होने पर वह चूहा यानी काबे के रूप में मंदिर में जन्म लेता है, इसमें भी सफेद चूहे यानी सफेद काबे को बहुत शुभ माना जाता है। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है।
ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे( काबे) के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों( काबों) का हुजूम तो देखने लायक होता है। नवरात्रि के दौरान माता की विशेष आरती तथा पूजन किया जाता है। नवरात्रि की सप्तमी पर माता की शोभायात्रा सवारी के रूप में निकलती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल अपनी आस्था को प्रकट करते हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ बनाते हैं। मंदिर के आसपास के बाजारों में हस्तशिल्प, मिठाई और अन्य वस्तुएँ बेची जाती हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।
हाल के वर्षों में, मंदिर प्रशासन ने पर्यटकों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए कई विकासात्मक और सुरक्षा उपाय किए हैं। यहां स्वच्छता, यातायात प्रबंधन, और बेहतर सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा है। सीसीटीवी कैमरों और सुरक्षा गार्ड्स की नियुक्ति से श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। इसके अलावा, सोशल मीडिया के माध्यम से मंदिर की गतिविधियों और विशेष अवसरों की जानकारी भी साझा की जाती है, जिससे दूर-दूर से लोग जुड़े रहते हैं। करणी माता मंदिर एक ऐसा स्थल है जो आस्था, संस्कृति और परंपरा का अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत करता है। यहाँ की धार्मिकता, परंपराएँ और विशेष पूजा-पद्धतियाँ इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।