कृष्णमोहन झा
कांग्रेस पार्टी ने महंगाई और बेरोज़गारी के विरोध में 5 अगस्त को यूं तो सारे देश में प्रदर्शन करने की घोषणा की थी परन्तु उसका सबसे अधिक अधिक असर राजधानी नई दिल्ली में दिखाई दिया और यह स्वाभाविक भी था क्योंकि पार्टी के अधिकांश सांसद इस समय संसद के मानसून सत्र के कारण नई दिल्ली में मौजूद हैं। पार्टी के अनेक वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता भी राजधानी में आयोजित प्रदर्शन में शामिल होने के लिए नई दिल्ली पहुंचे। प्रदर्शन के दौरान राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा सहित अधिकांश नेता और कार्यकर्ता मोदी सरकार के प्रति अपना विरोध जताने के लिए काले वस्त्र धारण किए हुए थे। कांग्रेस पार्टी ने विरोध का यह तरीका संभवतः पहली बार चुना था लेकिन यह कहना मुश्किल है कि काले कपड़े पहनकर किये गये इस विरोध प्रदर्शन से मोदी सरकार ने किंचित मात्र भी परेशानी महसूस की होगी । आम जनता ने भी इस ‘अनूठे’विरोध में नयापन जरूर महसूस किया परंतु इसके जरिए कांग्रेस पार्टी आम जनता का समर्थन जुटाने में सफल इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि आम जनता के मन में यह धारणा पहले ही बन चुकी थी कि नेशनल हेराल्ड के दफ्तरों में ईडी के छापों और सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी को मानसिक रूप से बेहद थका देने वाली पूछताछ के बाद आयोजित इस प्रदर्शन का उद्देश्य वास्तव में इन दोनों नेताओं के नेतृत्व में पार्टी का विश्वास व्यक्त करना था। राजधानी में विशाल पैमाने पर इस प्रदर्शन के माध्यम से पार्टी ने मोदी सरकार को यह संदेश भी दिया है कि नेशनल हेराल्ड के दफ्तरों पर ईडी के छापों और गांधी परिवार के सदस्यों से गहन पूछताछ के बावजूद पूरी पार्टी उन्हें पूरी तरह निर्दोष और निष्कलंक मानती है ।न ई दिल्ली में आयोजित इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया यद्यपि कुछ घंटों के बाद ही उन्हें छोड़ दिया गया। महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दों को लेकर हल्ला बोल की मुद्रा अपना कर मोदी सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराने के अपने इस नवीनतम प्रयोग पर कांग्रेस पार्टी यद्यपि प्रसन्नता का अनुभव कर रही है परंतु उससे अधिक खुश तो मोदी सरकार है क्योंकि मंहगाई और बेरोज़गारी के विरोध में किये गये प्रदर्शन में कांग्रेस को किसी और विपक्षी दल का साथ नहीं मिला जबकि ये दोनों मुद्दे सीधे सीधे आम जनता से जुड़े हैं। बाकी विपक्षी दलों ने भी शायद यह सोचकर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम से दूरी बना ली थी कि इसकी असली वजह महंगाई और बेरोजगारी नहीं बल्कि नेशनल हेराल्ड दफ्तर में ईडी के छापे और सोनिया गांधी और राहुल गांधी से की गई लंबी पूछताछ है। वैसे भी विपक्षी दलों ने हमेशा ही कांग्रेस के नेतृत्व में कोई भी लड़ाई लड़ने से परहेज किया है।
कांग्रेस पार्टी ने मंहगाई और बेरोज़गारी के मुद्दों पर काले कपड़े पहनकर सरकार का विरोध करने के लिए जब 5 अगस्त की तारीख चुनी थी तब शायद उसे यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि भाजपा दो साल पहले इसी तारीख को अयोध्या में संपन्न हुए श्री राम मंदिर के शिलान्यास के ऐतिहासिक आयोजन की याद इस मौके पर दिला कर कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाने के लिए तैयार बैठी है। इधर 5 अगस्त को सुबह कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काले कपड़े पहनकर प्रदर्शन किया और उधर शाम होते होते राजनीति के चतुर खिलाड़ी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर यह आरोप लगा दिया कि कांग्रेस ने 5 अगस्त को काले कपड़ों में इसलिए प्रदर्शन किया क्योंकि दो साल पहले 5अगस्त को ही अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री ने इस बयान के जरिए कांग्रेस को मंदिर निर्माण का विरोधी बताकर उसके सामने एक नया धर्म संकट पैदा कर दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो इसके लिए कांग्रेस से माफी नामे की मांग भी कर दी। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस पार्टी इस आरोप के लिए तैयार नहीं थी। भाजपा नेताओं का यह तर्क भी एक दम खारिज नहीं किया जा सकता कि जब दो दिन पहले ही संसद में मंहगाई के मुद्दे पर विपक्ष को अपने विचार प्रस्तुत करने का मौका मिल चुका था तब सदन के बाहर कांग्रेस का उसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन बेमानी था।इसी तरह राहुल गांधी ने जब प्रधानमंत्री मोदी पर तानाशाहीपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया तब वे यह भूल गए कि भाजपा इस आरोप के जवाब में स्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में लागू किए गए आपातकाल की याद दिला कर उसे निरुत्तर कर सकती है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस पार्टी के पास आपातकाल का समर्थन करने के लिए कोई स्वीकार्य तर्क नहीं है। कुल मिलाकर मंहगाई और बेरोज़गारी के विरोध में कांग्रेस पार्टी का काले कपड़ों में किया गया प्रदर्शन न तो सरकार के लिए परेशानी का कारण बन पाया ,न ही वह आम जनता का समर्थन जुटा पाई । देश में मंहगाई का दौर तो पिछले कई महीनों से चल रहा है लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अपना विरोध जताने के लिए प्रदर्शन करने का फैसला तब किया जब नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया और नेशनल हेराल्ड के दफ्तरों पर छापे की कार्रवाई की। विपक्षी दलों ने भी मंहगाई के विरोध में कांग्रेस के इस प्रदर्शन को सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और नेशनल हेराल्ड दफ्तर पर उसके छापे से जोड़ कर देखा यही कारण है कि सभी विपक्षी दलों ने कांग्रेस के प्रदर्शन से दूरी बना कर रखना ही उचित समझा।
यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश जोर-शोर से आजादी के अमृत महोत्सव की तैयारियों में जुटा हुआ है तब एक विपक्षी दल के द्वारा देश की राजधानी में सरकार का विरोध करने के लिए धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं । हमने यह आजादी लंबे संघर्ष और लाखों कुर्बानी देकर हासिल की है। आजादी का अमृत महोत्सव केवल सत्ता रूढ़ दल का आयोजन नहीं है। इसमें अपनी सहभागिता सुनिश्चित करना हर देशभक्त नागरिक का कर्तव्य है । न तो किसी को इस महोत्सव से दूर रखा जाना चाहिए और न ही किसी को इस महोत्सव से दूरी बनाने का विचार अपने मन में लाना चाहिए । आजादी के अमृत महोत्सव में हमारी सहभागिता उन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए मातृभूमि की बलिवेदी पर हंसते हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। वास्तव में आजादी के अमृत महोत्सव के महापर्व के पुनीत अवसर पर हमें अपने सारे मतभेदों और विवादों को परे रखकर ही हम इस महोत्सव को ऐतिहासिक आयोजन का रूप दे सकते हैं।
(लेखक ifwj के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष है)