सुशील दीक्षित विचित्र
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में मोदी को रावण बता कर फिर वही गलती कर दी जो हर चुनाव में कांग्रेस करती आयी है | इससे लगता है कि कांग्रेस के दरबारी नेताओं ने तय कर लिया है कि जब तक वे कांग्रेस को हासिये से भी नहीं धकेल देंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे | शायद इसीलिए वे अपने कम से कम पिछले आठ साल से घटिया वक्तव्यों के पत्थर नरेंद्र मोदी की झोली में जबरन डाल देते हैं और फिर उन्हीं पत्थरों से जब मोदी उन पर प्रहार करते हैं तब उन्हें सिर छुपाने की जगह नहीं मिलती | चतुर राजनेता वह होता है जो अपनी गलतियों से सबक सीख कर फिर उसी गलती को नहीं दोहराता है | जो अपनी गलतियों से सबक नहीं लेता तो वह और उसका दल दलदल से उभर नहीं सकता | जब कि कांग्रेस ने तो अपने लिए खुद ही दलदल तैयार किया और खुद ही उसमें कूद पड़ी |
कांग्रेस अध्यक्ष नहीं जानते कि जोश में मोदी को रावण बोलने के जो परिणाम निकलेंगे वे कांग्रेस के लिए अच्छे नहीं होंगे | खड़गे जैसे परिपक्व नेता नेताओं से यह उम्मीद शायद ही कोई करता हो कि वे घटिया स्तर की भाषा का इस्तेमाल करेंगे | अगर वह समझते हैं कि इस तरह की भाषा बोल कर भाजपा का चुनाव प्रभावित कर पाएंगे ऐसा सम्भव नहीं दिखता | विगत में भी इसके अच्छे परिणाम नहीं निकले थे | इसी गुजरात के ऐसे ही विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचार के दौरान 2007 में तत्कालीन अध्यक्ष सोनियां गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर बताया | तब मोदी विकास के नाम पर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन सोनिया का उद्बोधन होते ही उनकी दिशा बदल गयी | उन्होंने सारा चुनाव मौत के सौदागर का विश्लेषण कर के कांग्रेस को भारी शिकस्त दी |
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने यही गलती दोहरा दी | मणिशंकर अय्यर ने चाय वाला कह कर उन्हें कांग्रेस के दफ्तर के बाहर चाय बेचने का ऑफर दिया था | मोदी ने चाय वाले ब्यान को हाथों हाथ लिया और उसका कांग्रेस के खिलाफ इतना जबरदस्त इस्तेमाल किया कि कांग्रेस न केवल सत्ता से बाहर हो गयी बल्कि न्यूनतम सीटों पर सिमट गयी | इसके बाद भी कांग्रेस और कांग्रेसियों ने अपनी टोन नहीं बदली बल्कि गांधी परिवार समेत सभी कांग्रेसी नेता नई-नई गालियां ईजाद करते रहे | मोदी पर व्यक्तिगत हमलों का जनता पर प्रतिकूल असर पड़ा | कांग्रेस बार-बार चुनाव दर चुनाव हारती रही और हर हार के बाद गालियों की एक नई क़िस्त जारी करती रही |
मोदी पर व्यक्तिगत हमले और उनके द्वारा बार-बार मोदी के हाथों कांग्रेस की पराजय ने कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा भी की पार्टी को और राहुल गांधी को भी मोदी पर व्यक्तिगत हमलों से बचना चाहिए लेकिन उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया गया | हमले जारी रहे | कांग्रेस अपने इतिहास की सबसे बुरी स्थिति में पहुंच गयी लेकिन न संभली और न उसने संभलने की कोशिश की | 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को राहुल ने चोर बता कर चौकीदार चोर है के नारे पर चुनाव लड़ा | राहुल गांधी तब खुद अमेठी का चुनाव हार गए थे और कांग्रेस यूपी में एक सीट पर सिमट गयी | देश में कांग्रेस की ही नहीं पूरी यूपीए की भारी फजीहत हुई | खड़गे खुद चुनाव हार गये | उत्तर प्रदेश में इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी ने मोदी को टारगेट किया | कांग्रेस और भी दुर्गति को प्राप्त हुई | उसके कुल दो विधायक ही विधान सभा पहुँच पाये | यही नहीं यूपी के साथ ही अन्य चार राज्यों में हुए चुनाव में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी | पंजाब में वह सत्ता से बाहर हो गयी | उत्तराखंड में यह मिथक भी नहीं दोहरा सकी कि वहां एक बार भाजपा की सरकार बनती है और दूसरी बार कांग्रेस की |
अगर गलियों के प्रकार को देखें तो साफ हो जाता है कि हर कदम पर हार से कांग्रेस के नेता कितने झुंझलाए और हतोत्साहित हैं | भाजपा ने तो ऐसी अस्सी गलियों की एक लिस्ट जारी की है | 2019 के चुनाव तक ऐसी गालियों की संख्या पचपन थी | पिछले तीन वर्ष में राहुल गांधी को खुश करने के लिए 25 गालियां और जोड़ी गयीं | ताजा गालियों में नीच आदमी , हिटलर , कुत्ता , राक्षस शामिल हैं | गालियां जोड़ कर ऐसी भविष्यवाणियां भी की गयी और धमकियाँ भी दी गयीं | मसलन सुबोध कांत सहाय ने भविष्यवाणी की कि मोदी हिटलर की मौत मरेंगे तो शेख हुसैन ने कुत्ते की मौत की भाविष्यवाणी की | चुनाव प्रचार के दौरान वाराणसी के पिंडरा क्षेत्र के प्रत्याशी अजय राय ने मोदी को जमीन में गाड़ देने की धमकी दी | महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने तो यहां तक कहा कि जब चाहे वे मोदी को मार भी सकते हैं और गाली भी दे सकते हैं | गुजरात में कांग्रेस का घोषणा पात्र जारी करते हुए कांग्रेसी नेता मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि वे मोदी को उनकी औकात बता देंगे | मोदी व्यंग्य में कहते हैं कि मैं दो तीन किलो गालियां रोज खाता हूँ और बाइस साल से खाता आ रहा हूँ | मोदी की इस ताकत को तब भी कांग्रेस नहीं समझी अब उन्होंने खुद कहा कि अपने ऊपर फेंके पत्थरों को सीढ़ियां बना कर ही वह ऊँचे और ऊंच चढ़े हैं |
नकारात्मक राजनीति की एक सीमा होती है | सीमा का उल्लंघन किसी भी दल के लिए कैसे भी मजबूत दल के लिए जहर साबित होती है | यूपी में बसपा इसका शिकार हो चुकी है सपा हो रही हैं जबकि अन्य दल अगर मगर किन्तु परन्तु के साथ बैगन की तरह इधर उधर लुढ़क कर अपना बजूद बचाने की कोशिश कर रहें है | यह कोशिश बहुत अधिक सफल होगी इसकी किसी के पास भी गारंटी नहीं है | अपशब्द बोल कर भड़ास तो निकाली जा सकती लेकिन चुनाव नहीं जीते जा सकते | असभ्य भाषा पराजय की परिचायक है | कांग्रेस यदि मोदी के लिए नई-नई गालियां गढ़ने के स्थान पर मोदी शासन के खिलाफ कोई विमर्श गढ़ती , अपनी रैलियों में जनता के सामने देश के विकास के लिए कोई एजेंडा रखती तो सफल भी हो सकती थी |
ऐसा कोई विमर्श गढ़ने में कांग्रेस नाकाम रही | भारत जोड़ो यात्रा में ऐसे विमर्श , ऐसे एजेंडे बहुत काम आते | जनता के सामने एक ऐसा नक्शा पेश किया जा सकता था जो मोदी के नक़्शे से बेहतर होता | कांग्रेस का थिंक टैंक ऐसा भी नहीं कर सका | मुसलमान डरा हुआ है जैसे नारे , धर्मनिरपेक्षता , साम्प्रदायिकता जैसे मुद्दे ही नहीं जातीय समीकरण बनाने वाली राजनीति अप्रासंगिक हो चुकी है | ऐसी पुरानी राजनीति करने का मतलब भाजपा को खुला मैदान देना होगा | अब तक की पूरी यात्रा में राहुल गांधी ने जो कुछ कहा उससे ऐसा कुछ नहीं था जो नया होता | पिछले आठ वर्षों से संघ , भाजपा , मोदी , अडानी , अम्बानी के लिए जो कहते आ रहे हैं वही यात्रा में भी दोहराते चल रहे हैं | बावजूद इसके दोहरा रहे कि कांग्रेस शासित राजस्थान और झारखंड में अडानी को हाल में अरबों रूपये के प्रोजेक्ट दिए गए | उन्होंने खुद केरल में मुस्लिम लीग का समर्थन लिया और पश्चिम बंगाल में कोविड से पचास करोड़ लोगों के मरने की कामना करने वाले घोषित साम्प्रदायिक फुरफुरा शरीफ और कम्युनिस्ट पार्टी से गठबंधन किया |
कांग्रेस की एक यह मुसीबत है कि बदली हुई राजनीति को वह समझ नहीं पा रही है | जनता की मानसिकता और उसमें आये भारी बदलाव को भी वह भापने में असफल रही | ऐसा नहीं कि उसके किसी भी नेता ने हालात न भापे हों | कई वरिष्ठ नेताओं ने , ऐसे नेताओं ने जिन्होंने कांग्रेस को खड़ा करने में अपनी जवानी ही नहीं प्रैढ़ावस्था भी गला दी , बार-बार राहुल गांधी और उनके समर्थकों के तौर तरीकों को बदलने की अपील की लेकिन उनकी अपील ही नहीं खुद उनको ही कूड़ेदान में डाल दिया गया | कांग्रेस से अभी भी देश को आशा है | दमदार विपक्ष की उम्मीद उससे की जाती है और यदि खुद में बदलाव लाकर उसने अपनी वैचारिक धारा को तरोताजा नहीं किया , नवीनता की आक्सीजन नहीं दी तो आगे हालात और भी खराब हो सकते हैं |