खुदीराम की मौत से पहले की प्रसन्नता और निर्भीकता ने अंग्रेजी शासन को झकझोर दिया था

Khudiram's happiness and fearlessness before his death had shaken the British rule

सुनील कुमार महला

भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित करने वाले, बहुत ही बेबाक, अदम्य साहसी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर नायक, भारत के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक, तथा बंगाल प्रेसीडेंसी(वर्तमान में पश्चिम बंगाल) के एक भारतीय राष्ट्रवादी खुदीराम बोस को 1908 में एक ब्रिटिश मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या के प्रयास के आरोप में मुज्जफरपुर की एक जेल में फांसी दे दी गई थी। पाठकों को बताता चलूं कि आप भारत माता के वह वीर सपूत थे, जिनको मात्र 18 साल, 8 महीने और 8 दिन की बहुत ही छोटी सी उम्र में ही अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई थी। पाठकों को बताता चलूं कि कुछ इतिहासकार आपको देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त मानते हैं। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि आपका जन्म बंगाल में मिदनापुर के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर 1889 को त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था। आपकी माताजी का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। आपके, आपका नाम ‘खुदीराम’ नाम पड़ने की यदि हम यहां पर बात करें तो, आपके जन्म से पहले आपके दो भाइयों की बीमारी की चलते मृत्यु हो जाने के कारण आपके डरे हुए माता-पिता ने अपने तीसरे बेटे की जान बचाने के लिए एक टोटका अपनाया था, जिसमें बड़ी बहन ने चावल के बदले आपको(खुदीराम को) खरीद लिया। वैसे भी बंगाल में चावल को ‘खुदी’ कहा जाता था, यही वजह रही कि आपका नाम खुदीराम पड़ गया। आप धोती पहनते थे। जब आप बहुत छोटे थे, तभी आपके माता-पिता का निधन हो गया था और आपकी बड़ी बहन ने आपका लालन-पालन किया था। मैट्रिक की परीक्षा से पहले ही 9 वीं कक्षा के बाद ही आपने स्कूल छोड़ दिया था। कहते हैं कि स्कूल के दिनों से ही आप अंग्रेजों के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लग गए थे और अनेक जलसों, जुलूसों में शामिल होकर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। आप ‘रिवॉल्यूशनरी पार्टी’ के सदस्य बने और ‘वंदे मातरम् ‘ पर्चे बांटने में भी आपने एक बड़ी भूमिका निभाई। उल्लेखनीय है कि 1906 में मिदनापुर में एक मेले का आयोजन किया गया था।उस समय सत्येंद्रनाथ बोस ने ‘वन्दे मातरम् ‘शीर्षक से अंग्रेज़ी शासन का विरोध करते हुए एक पर्चा छपवाया था और खुदीराम बोस को मेले में इस पर्चे के वितरण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। यहां यह भी गौरतलब है कि वर्ष 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस ने सत्‍येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की थी।उपलब्ध जानकारी के अनुसार 1905 में बंगाल विभाजन(19 जुलाई, 1905 को लॉर्ड कर्ज़न द्वारा विभाजन) के विरोध में चलाए गए आंदोलन में आपने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। कहते हैं कि उस समय बंगाल ही नहीं पूरे भारत के लोगों के मन में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आक्रोश भड़क उठा था और हर जगह विरोध मार्च, विदेशी सामान के बहिष्कार और अख़बारों में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अखबारों में जैसे लेखों की एक तरह से बाढ़ सी आ गई थी। जानकारी के अनुसार उसी ज़माने में स्वामी विवेकानंद के भाई भूपेंद्रनाथ दत्त ने ‘जुगाँतर’ अख़बार में एक लेख लिखा, जिसे सरकार ने राजद्रोह माना। कलकत्ता प्रेसिडेंसी के मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफ़ोर्ड ने न सिर्फ़ प्रेस को ज़ब्त करने का आदेश दिया, बल्कि भूपेंद्रनाथ दत्त को ये लेख लिखने के आरोप में एक साल की कैद की सज़ा सुनाई। इस फ़ैसले ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह में आग में घी का काम किया। 28 फरवरी 1906 को आप(खुदीराम बोस) गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन आप कैद से भाग निकले और लगभग 2 महीने बाद आपको अप्रैल में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में, 16 मई 1906 को आपको जेल से रिहा कर दिया गया। अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर आपने तत्कालीन सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई थी, क्यों कि आप भारतीयों पर किंग्सफोर्ड द्वारा किए जा रहे अत्याचारों, क्रूरता ,बेरहमी और सख्ती से ख़फ़ा थे। पाठकों को बताता चलूं कि आप(खुदीराम बोस) इतने साहसी और हिम्मती थे कि आप मुकुंदापुरा (बिहार) से लेकर मुजफ्फरपुर तक बम पहुँचाने के लिए झोले में बम लेकर कई किलोमीटर(लगभग 40 किलोमीटर तक) पैदल चले थे, ताकि अंग्रेज़ों की नज़र से बच सकें। छह दिसंबर 1907 को आपने नारायगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया। सन् 1908 में आपने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया, लेकिन वे भी बच निकले।30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में सेशन जज की गाड़ी पर आपने व चाकी ने बम फेंक दिया, लेकिन उस समय गाड़ी में जज किंग्सफोर्ड की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिला कैनेडी और उसकी बेटी सवार थी। किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गई, जिसका आपको और आपके साथी प्रफुल्ल चंद चाकी को बेहद अफसोस हुआ। हालाँकि, महात्मा गांधी ने हिंसा की निंदा की और दो निर्दोष महिलाओं की मौत पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘भारतीय लोग इन तरीकों से अपनी आज़ादी नहीं जीत पाएँगे।’ बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी में दोनों क्रांतिकारियों का बचाव किया और तत्काल स्वराज की माँग की। इसके बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने राजद्रोह के आरोप में तिलक को भी तुरंत गिरफ्तार कर लिया। आपके व आपके साथी द्वारा धोखे में कैनेडी और उसकी बेटी के मारे जाने के बाद, अंग्रेज पुलिस आपके पीछे लगी थी और वैनी रेलवे स्टेशन पर आपको घेर लिया गया। अपने को पुलिस से घिरा देख आपके साथी प्रफुल्लचंद चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी, जबकि आप पकड़े गए।आप पर दो महिलाओं की हत्या का मुकदमा चलाया गया। पाठकों को बताता चलूं कि आपने (खुदीराम ने) अपनी गिरफ्तारी के बाद साफ तौर पर कहा कि आपने किंग्सफोर्ड को सजा देने के लिए बम फेंका था। इतना ही नहीं,जज कॉर्नडॉफ की अदालत सुनवाई के दौरान जब आपसे (खुदीराम से) यह सवाल किया गया कि क्‍या आप(खुदीराम बोस) फांसी की सजा का मतलब जानते हो? तो आपके वकील द्वारा आपके कम उम्र का हवाला देने के बाद भी आपने जज से यह बात कही थी कि वह (खुदीराम बोस) जज( कॉर्नडॉफ) को भी बम बनाना सिखा सकते हैं, यह वास्तव में आपकी बेबाकी और आपके साहस को दर्शाता है। उनके बारे में

ब्रिटिश अखबार ‘द इंग्लिशमैन’ ने लिखा—खुदीराम की मौत से पहले की प्रसन्नता और निर्भीकता ने हमें भी झकझोर दिया है।’ बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि आपको 11 अगस्त 1908 को अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई।आपकी शहादत के बाद बड़े स्तर पर धोती पहनने का चलन चल पड़ा था। पाठकों को बताता चलूं कि बंगाल के कई बुनकर आज भी खुदीराम लिखी धोतियां बनाकर तैयार करते हैं। अंत में यही कहूंगा कि आप भारत माता के एक वीर सपूत थे और आपने अपने छोटे से जीवन से यह साबित कर दिया कि देश सेवा के लिए आयु मायने नहीं रखती है, और राष्ट्र के लिए समर्पण की कोई भी सीमा या हद नहीं होती है। भारतीय स्वाधीनता संग्राम को एक नवीन ऊर्जा प्रदान करने वाले अदम्य साहसी, कर्मनिष्ठ और सच्चे देशभक्त खुदीराम बोस को बारंबार नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।