प्रो. नीलम महाजन सिंह
23 अगस्त, 2024 को 12:31 बजे, सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए क्रूर बलात्कार और जघन्य हत्या के मामले मे, अखिल भारतीय हड़ताली डॉक्टरों के साथ शांति स्थापित की। मुख्य न्यान्यायाधी धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा, “न्याय और चिकित्सा हड़ताल पर नहीं जा सकते। अब आप काम पर वापिस लौटें”। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की तीन-न्यायाधीशों की संविधान पीठ, न्यायमूर्ति जमशेद बुर्जोर पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने एफआईआर दर्ज करने व जांच में अक्षम्य चूक की आलोचना की है। कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डॉक्टर बलात्कार-हत्या मामले और संबंधित मुद्दों पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की पीठ, कोर्ट नंबर 1 द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया (Suo Motto)।
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में अपने कनिष्ठ सहकर्मी के साथ हुए क्रूर बलात्कार व हत्या का विरोध कर रहे ‘डॉक्टरों की पेशेवर भावना’ को सफलतापूर्वक अपील की, और उनसे काम पर लौटने और उन गरीबों और बीमार लोगों की देखभाल करने के लिए कहा,” भारत भर के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा परामर्श के लिए जनता को वर्षों तक इंतज़ार करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में कुछ मिनटों की चिकित्सा सेवा के लिए घंटों कतारों में इंतजार करने वाले मरीज़ों और नंगे फर्श व सड़कों पर रातें बिताने वाले दर्शकों के दृश्यों को याद कीजिए,” इस बिंदु पर, भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने आग्रह किया। “मुझे पता है क्योंकि मैं भी एक सरकारी अस्पताल में फर्श पर सोया था जहाँ मेरे एक रिश्तेदार को भर्ती कराया गया था! हम उन सभी लोगों के लिए संवेदनशील हैं जो सरकारी अस्पताल जाते हैं। डॉक्टरों को वापस काम पर आना चाहिए। डॉक्टर ऐसे लोग हैं जिनकी सभी को ज़रूरत है। उनके बिना सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा कैसे चलेगा”? सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जताते हुए कहा.
एम्स दिल्ली जैसी जगहों पर, लोग दो साल पहले से अपॉइंटमेंट ले लेते हैं। जब वे चिकित्सा सेवा के लिए अस्पताल आते हैं तो डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं होते हैं, तो उन्हें तकलीफ होती है. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने दिन भर की सुनवाई के दौरान अपने न्यायालय में एकत्रित वकीलों से कहा। इस क्रूर हमले में अपनी जान गंवाने वाली प्रशिक्षु स्नातकोत्तर डॉक्टर का परिवार कभी सामान्य स्थिति में नहीं आ पाएगा। महिलाओं के खिलाफ हर भयानक अपराध से देश स्तब्ध हो जाता है, लेकिन नियम और प्रशासन पूरी तरह से हास्यास्पद रूप से उदासीन हैं। कानून अपना काम करेगा और डॉक्टर इंतजार कर रहे रोगियों से मुंह नहीं मोड़ सकते। “न्यायाधीश अदालत परिसर के बाहर खड़े होकर न्याय नहीं कर सकते। उसी तरह, डॉक्टर अपने अस्पतालों के बाहर मरीज़ों का इलाज नहीं कर सकते? न्याय और चिकित्सा हड़ताल पर नहीं जा सकते। अभी काम पर वापस लौटें,” मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कई डॉक्टर संघों व निकायों से आग्रह किया; जिन्होंने अदालत का रुख किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी है। शीर्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाने वाले चिकित्सा पेशेवरों ने कहा कि उन्हें इस बात की आशंका है कि अस्पताल के अधिकारी उनके काम पर लौटने के बाद उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे। डॉक्टरों की आशंका पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, “पहले हमारे सामने यह स्थापित करें कि हर कोई काम पर वापस आ गया है। एक बार यह स्थापित हो जाने के बाद कि आप काम पर वापस आ गए हैं, हम आपको आश्वस्त करेंग हैं कि किसी भी डॉक्टर के खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाएगी। हम आपकी रक्षा करेंगे।” न्यायालय ने ‘राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF)’ को निर्देश दिया है कि वह चिकित्सा पेशेवरों के लिए सुरक्षा उपायों और बेहतर बुनियादी ढाँचे और काम करने की स्थिति में सुधार लाने के लिए सुझाव तैयार करते समय हर हितधारक की बात सुने। अदालत ने राष्ट्रीय टास्क फोर्स NTF के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाने का आदेश दिया है ताकि गुमनाम रूप से भी सुझाव और शिकायतें प्राप्त की जा सकें। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा, डॉक्टरों के लिए 36 और 48 घंटे की शिफ्ट अमानवीय है। रेजिडेंट डॉक्टर 36 घंटे की शिफ्ट में कैसे काम कर सकते हैं? सरकारी अस्पतालों में एक निश्चित पदानुक्रम है, और जूनियर डॉक्टर इसका खामियाजा भुगतते हैं। जब डॉक्टरों ने एनटीएफ की रिपोर्ट आने तक तत्काल सुरक्षा उपाय करने के लिए कहा, तो अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ बैठक करने और बुनियादी अंतरिम सुरक्षा प्रक्रियाएं लागू करने का निर्देश दिया। बैठकें हो चुकी हैं। उसके बाद दो कार्यकालिक सप्ताह के भीतर ‘सुरक्षा प्रोटोकॉल’ स्थापित किए जा रहे हैं। पीठ ने कहा कि इस बीच, सीबीआई अपराध की अपनी जांच जारी रखेगी, जबकि पश्चिम बंगाल पुलिस 14 अगस्त को अस्पताल के परिसर में विरोध स्थल पर भीड़ के हमले और तोड़फोड़ की अपनी जांच जारी रखेगी। अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत को बलात्कार और हत्या मामले के मुख्य आरोपी पर पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति मांगने वाले आवेदन पर 23 अगस्त तक फैसला करने का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने वकील कपिल सिब्बल और राज्य पुलिस को फटकार लगाई, जिन्होंने 09 अगस्त, 2024 को डॉक्टर की मौत की सूचना मिलने के बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में 14 घंटे लगा दिए।प्रिंसिपल को मौत की सूचना मिलने पर, वे सीधे कॉलेज क्यों नहीं आए और एफआईआर दर्ज करने का निर्देश क्यों नहीं दिया? जैसे ही उन्होंने इस्तीफा दिया, प्रिंसिपल को, दूसरे कॉलेज में नियुक्त क्यों कर दिया गया? सिब्बल को न्यायमूर्ति पारदीवाला ने उनकी ओकात दिखाई व भारत के सर्वोच्च न्यायालय की लाइव कार्यवाही पर उनसे पूछताछ की। सिब्बल ने कहा, कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने 2018 में पुलिस विभाग द्वारा जारी एक राजपत्र अधिसूचना में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया था। इस तथ्य का रिकॉर्ड जब्ती सूची, जांच रिपोर्ट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में देखा जा सकता है, सिब्बल ने कहा। सारांशाार्थ अक्षम्य का बचाव करने के लिए कपिल सिब्बल को शर्म आनी चाहिए। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य जानबूझकर “पानी को गंदा करने” की कोशिश कर रहा है। केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार दोनों को एक युवा प्रशिक्षु महिला डॉक्टर पर किए गए भयानक अपराध का “राजनीतिकरण” नहीं करनी चाहिए। वे अपनी एम.डी. की पढ़ाई कर रही थीं। जब एक वकील ने वीर्य की मात्रा का उल्लेख किया, तो मुख्य न्यायाधीश ने उनसे अदालत में तर्क देने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करने का अनुरोध किया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने डांटते हुए कहा, “कृपया याद रखें, हमारे पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट है।” इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यौन उत्पीड़न पर केंद्रीय कानून बनाने और ऐसे अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। मृत के माता-पिता से मिलने के बाद राज्यपाल, आनंद बोस का एक पत्र पीएमओ को भेजा गया है। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि देश को ऐसे कानूनों की ज़रूरत है जो बलात्कार के मामलों में 50 दिनों के भीतर सजा सुनिश्चित करें। कोलकाता मे 19 अगस्त, 2024 को अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के यौन उत्पीड़न और हत्या के विरोध में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों द्वारा एक बैनर लटका दिया गया। विरोध प्रदर्शन के बीच आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के तीन अधिकारियों का तबादला कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों की सुरक्षा व भलाई राष्ट्रीय हित का मामला है। यह घटना डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए चिंता का अंतिम बिन्दु है। अज्ञात बदमाशों ने 15 अगस्त, 2024 को आधी रात के तुरंत बाद कोलकाता में राज्य संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के परिसर में प्रवेश किया और चिकित्सा सुविधा के कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ की। ‘रिक्लेम दी नाइट’ डॉक्टरों की आवाज़ है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अपराध स्थल को ‘बदल दिया गया’ और उससे छेड़ छाड़ हुई है। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, “हम यह समझने में असमर्थ हैं कि राज्य अस्पताल में तोड़फोड़ के मुद्दे को कैसे नहीं संभाल पाया।” मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले में पश्चिम बंगाल सरकार की प्रतिक्रिया, विशेष रूप से एफआईआर दर्ज करने में देरी और अन्य प्रक्रियात्मक खामियों पर गहरा असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए आवश्यक सुरक्षा मानकों को संबोधित करने में विफल हैं। उल्लिखित मुद्दों के जवाब में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने देश भर के शीर्ष डॉक्टरों से मिलकर 10 सदस्यीय राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF) का गठन किया। इस टास्क फोर्स को डॉक्टरों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने और चिकित्सा संस्थानों में सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल विकसित करने का काम सौंपा गया है। मनोविश्लेषणात्मक परीक्षण से पता चला है कि आरोपी संजय रॉय में ‘पशु जैसी प्रवृत्ति’ है। कोलकाता बलात्कार-हत्या मामला: पुलिस क्या कर रही थी? डॉक्टर जीवन संरक्षक हैं। भगवान के बाद डॉक्टर माने जाते हैं। इस असहनीय क्रूरता में न्याय प्रदान करना अति आवश्यक है हमरा सिर शर्म से झुका हुआ है …
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, सालिसिटर फार ह्यूमन राइट्स)