रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान में राज्यसभा की चार सीटों के लिए संपन्न हुए चुनाव में भाजपा एक सीट ही जीत सकी थी। भाजपा के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े सुभाष चंद्रा को भी पार्टी के पूरे वोट नहीं मिल पाये थे। जिससे वह चुनाव हार गए थे। सुभाष चंद्रा को मात्र 30 वोट ही मिले थे। जबकि भाजपा के विजेता रहे प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी को 43 वोट मिले थे।
राजस्थान में भाजपा के 71 विधायक है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायकों ने भी सुभाष चंद्रा के पक्ष में वोट डाला था। जीतने के लिए 41 वोटों की जरूरत थी। इस तरह भाजपा के घनश्याम तिवारी को 41 वोट देने के बाद 34 वोट बचते थे। इस हिसाब से सुभाष चंद्रा को 34 वोट मिलने चाहिए थे मगर मिले मात्र 30 वोट ही। भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी। वहीं पार्टी के दो अन्य विधायकों ने भी निर्दलीय सुभाष चंद्रा को वोट न देकर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी के ही पक्ष में वोट डाल दिया था।
पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ क्रास वोटिंग करने के कारण भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने धौलपुर से पार्टी विधायक शोभारानी कुशवाह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वहीं दो अन्य विधायक जिन्होंने सुभाष चंद्रा के बजाय भाजपा प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी के पक्ष में वोट डाला उनके खिलाफ पार्टी कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है। क्योंकि उन्होंने पार्टी के प्रत्याशी को ही वोट दिया था। हालांकि अंदर खाने चर्चा है कि ऐसा उन्होंने पार्टी के एक बड़े नेता के इशारे पर किया था। कांग्रेस पार्टी द्वारा आसानी से तीनों सीटें जीत लेने व भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा के पक्ष में किसी भी निर्दलीय या अन्य किसी दल के प्रत्याशी का वोट नहीं मिलना भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की कमी को ही दर्शाता है।
भाजपा का प्रादेशिक नेतृत्व पिछले काफी समय से नेताओं की आपसी गुटबाजी में फंसा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया एक दूसरे के विरोधी गुट से होने के चलते राजस्थान में भाजपा भी गुटों में बंटी हुई है। इसी के चलते राज्यसभा चुनाव में 13 में से एक भी निर्दलीय प्रत्याशी का वोट सुभाष चंद्रा के पक्ष में नहीं डल पाया। ऊपर से वसुंधरा राजे समर्थक शोभारानी कुशवाहा ने कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर भाजपा की फजीहत करवा दी।
राज्यसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद वसुंधरा राजे समर्थक प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया को उनके पद से हटाने की मांग करने लगे हैं। वही सतीश पूनिया समर्थक भी दबी जबान से वसुंधरा राजे को ही क्रास वोटिंग का जिम्मेदार बता रहे हैं। वसुंधरा समर्थकों का आरोप है कि राजस्थान में निर्दलीय विधायकों की संख्या 13 है तथा माकपा के दो, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो व राष्ट्रीय लोकदल का एक विधायक है। इस तरह देखे तो कांग्रेस के बाहर 18 अन्य ऐसे विधायक थे जो कांग्रेस व भाजपा दोनों के प्रत्याशियों को हराकर चुनाव जीते थे। मगर कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन सभी 18 विधायकों से तालमेल बैठाकर राज्यसभा चुनाव में वोट ले लिया। चर्चा यह भी है कि भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा गहलोत के ही माली समाज की होने के चलते भी गहलोत के कहने से वोट डाल दिया।
कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के बाद अपने निष्कासन पर सफाई देते हुए शोभारानी कुशवाहा ने कहा कि पार्टी के ही बड़े नेता पार्टी में रहकर उनके खिलाफ गतिविधियां चलाते थे। ऐसे में उनका भाजपा से जुड़े रहने का कोई कारण नहीं रह गया था। शोभारानी कुशवाहा अपने पति को उम्र कैद की सजा होने के बाद उनकी विधायकी समाप्त होने पर उपचुनाव में वसुंधरा राजे के प्रयास से भाजपा में शामिल होकर उपचुनाव में विधायक बनी थी। फिर 2018 के चुनाव में भी उन्हें भाजपा ने टिकट दिया था और वह चुनाव जीत गई थी। शोभारानी कुशवाहा के परिजनों पर ढाई सौ करोड़ का चिटफंड घोटाला करने का भी आरोप लगा हुआ है। जिसके चलते उनके पति व देवर जेल की हवा भी खा चुके हैं।
भाजपा राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से सभी बड़े चुनावों में हार रही है। राजस्थान में चार सीटों पर हुए राज्यसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर ही बीजेपी जीत सकी। इस चुनाव में कांग्रेस की दो और बीजेपी की एक सीट पक्की थी। चौथी सीट के लिए मुकाबला था। लेकिन बीजेपी चुनावी प्रबंधन में कांग्रेस से बाजी हार गई। क्रॉस वोटिंग ने भी भाजपा को चिंता में डाल दिया है। इससें पूर्व जून 2020 को राजस्थान में 3 सीटों पर हुए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपने दो प्रत्याशी जिताने में कामयाब रही थी। जबकि बीजेपी के राजेन्द्र गहलोत ही जीत दर्ज कर सके थे। भाजपा के दूसरे प्रत्याशी ओंकार सिंह लखावत को मात्र 20 वोट मिल थे। उस वक्त भाजपा का एक वोट रिजेक्ट हो गया था तथा 2 वोट अनुपस्थित रहे थे।
28 जनवरी 2019 में अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी साफिया जुबेर खान ने भाजपा के सुखवंत सिंह को 12 हजार 228 मतों से हराया था। 24 अक्टूबर 2019 को राजस्थान के मंडावा और खींवसर सीट के विधायको के सांसद बनने से हुए उपचुनाव में मंडावा से कांग्रेस की रीटा चौधरी और खींवसर से बीजेपी की सहयोगी आरएलपी के नारायण बेनीवाल ने जीत दर्ज की थी। 2018 में हुए चुनाव में मंडावा सीट से बीजेपी के नरेन्द्र खीचड़ व खींवसर सीट आरएलपी के हनुमान बेनीवाल जीते थे।
उदयपुर की वल्लभनगर और प्रतापगढ़ की धरियावद विधानसभा सीटों पर 30 अक्टूबर 2021 को हुए उपचुनाव में दोनों सीटें कांग्रेस ने जीतीं। कांग्रेस के नगराज मीणा की धरियावद में जीत हुई। बीजेपी के खेत सिंह तीसरे नम्बर पर रहे। वल्लभनगर में कांग्रेस की प्रीति शक्तावत 20 हजार से ज्यादा वोटों से जीतीं। वहां बीजेपी के हिम्मत सिंह झाला की जमानत तक जब्त हो गई थी। सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद में हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे 2 मई 2021 को आए। जिसमें सहाड़ा से कांग्रेस की गायत्री त्रिवेदी, सुजानगढ़ में कांग्रेस के मनोज मेघवाल और राजसमंद से भाजपा की दीप्ति माहेश्वरी ने जीत दर्ज की थी।
राजस्थान में 19 नवम्बर 2019 को 49 नगर पालिकाओं के चुनाव में कांग्रेस ने 28, भाजपा ने 16 पालिकाओं में जीत दर्ज की थी। जयपुर, जोधपुर और कोटा शहर के 6 नगर निगम में 10 नवम्बर 2020 को हुये मेयर के चुनाव में कांग्रेस ने 6 में से 4 निगमों में अपने बोर्ड बनाए। बीजेपी महज जयपुर ग्रेटर और जोधपुर दक्षिण में ही बोर्ड बना सकी। 28 जनवरी 2021 को राजस्थान में 20 जिलों के 90 नगर निकायों में से 48 में कांग्रेस, 37 पर बीजेपी बोर्ड बनाने में कामयाब रही। 4 सितम्बर 2021 को 6 जिलों जयपुर, जोधपुर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, दौसा और सिरोही के 78 पंचायत समितियों के लिए हुए चुनावों में 60 पंचायत समितियों में कांग्रेस पार्टी के प्रधान बने। भाजपा केवल 14 पंचायत समितियों में बहुमत हासिल कर सकी। जबकि जिला प्रमुख चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी ने बराबर 3 – 3 जगह अपना जिला प्रमुख बनाया था।
इस तरह देखने से पता चलता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस लगातार भाजपा पर भारी पड़ रही है। कांग्रेस ने उपचुनावो में भाजपा से मंडावा व धरियावद विधानसभा सीट छीनने में कामयाब रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भाजपा नेताओं की आपसी फूट का पूरा फायदा उठा कर हर चुनाव में भाजपा को पटखनी दे रहें है। भाजपा की हाल ही में कोटा में हुयी प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बिना भाषण दिये बैठक छोड़ कर निकल गयी थी। वसुंधरा राजे लगातार बागी रूख अपनाये हुये हैं। जहां मौका मिलता है प्रदेश संगठन की खिंचाई कर देती है। मौजूदा स्थिति भाजपा के लिये अच्छी नहीं कही जा सकती है। जिस तरह पार्टी गुटो में बंटी है उसको समय रहते रोका नहीं गया तो 2023 के विधानसभा चुनाव में भी गहलोत एक बार फिर बाजी मार ले जायेगें और भाजपा नेता हाथ मलते रह जायेगें।