टीएमयू में पुष्पदंत भगवान के जन्मकल्याणक महोत्सव पर लाडू समर्पित

Laddu dedicated on the occasion of birth anniversary of Pushpadant Bhagwan in TMU

रविवार दिल्ली नेटवर्क

उत्तम शौच धर्म पर टीएमयू के रिद्धि-सिद्धि भवन में विधि – विधान से हुए समुच्चय पूजन, श्री पुष्पदंत जिनपूजन, सोलहकारण पूजन, पंचमेरु पूजन और दशलक्षण पूजन, रत्नत्रय पूजन का अर्घ्य चढ़ा

पर्वाधिराज दशलक्षण महामहोत्सव के चतुर्थ दिवस उत्तम शौच धर्म पर श्री 1008 पुष्पदंत भगवान के जन्मकल्याणक महोत्सव पर लाडू समर्पित किया गया। प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ जैन शास्त्री के मार्गदर्शन में समुच्चय पूजन, श्री पुष्पदंत जिनपूजन, सोलहकारण पूजन, पंचमेरु पूजन और दशलक्षण पूजन के संग-संग शिखर जी विधान विधि-विधान से हुए। मंगल कलश स्थापना करने का सौभाग्य कुलाधिपति परिवार की बहू श्रीमती जाह्नवी जैन और ईडी श्री अक्षत जैन को मिला,जबकि अखंड ज्योति का सौभाग्य जीवीसी श्री मनीष जैन एवम् श्रीमती ऋचा जैन को मिला। जिनवाणी स्थापना का पुण्य सुश्री नंदिनी जैन ने कमाया। तत्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय का वाचन पूर्वी जैन ने किया। शांतिधारा करने वालों को कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, प्रथम स्वर्ण कलश से अभिषेक करने वालों को वीसी प्रो. वीके जैन, जबकि अष्टकुमारियों को श्रीमती रेणु जैन ने सम्मानित किया। भैयाजी ने पुष्पदंत भगवान के मोक्ष स्थल के संग- संग लाडू चढ़ाने के महत्तम पर भी विस्तार से बताया।

प्रथम स्वर्ण शांति धारा का सौभाग्य वीसी परिवार को

प्रथम स्वर्ण कलश से अभिषेक करने का सौभाग्य श्री कुशाग्र जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश का श्री सार्थक जैन,तृतीय स्वर्ण कलश का सौभाग्य स्वप्निल जैन, चौथे स्वर्ण कलश का पुण्य श्री अक्षत जैन ने कमाया। प्रथम स्वर्ण शांति धारा का सौभाग्य वीसी प्रो. वीके जैन, डॉ. करुणा जैन, श्री स्पर्श जैन, श्री स्वतंत्र जैन,द्वितीय रजत शांतिधारा का पुण्य नमन जैन,अर्पण जैन, मुकुल जैन, प्रिंस जैन,सुयश जैन,अनुष्का जैन आदि को मिला। अष्टकुमारी बनने का सौभाग्य पाखी जैन, अंजलि जैन,रीति जैन,निष्ठा जैन, संजुल जैन आदि को मिला।

बाबा कुंडलपुर वाले जीवन तेरे हवाले…

नमोकर मंत्र से पूजन कर लिया और समझो अपना जीवन पावन कर लिया, आदिनाथ का बैल अजितनाथ का हाथी, ओ पालनहारे निर्गुण हो सारे, छोटा सा मंदिर बनाएंगे वीर बन जायेंगे हाथों में लेकर सोने का कलशा, हाथों में लेकर सोने का दीपक प्रभु जी की आरती उतरेंगे, कभी बनू शहनाई तेरे मन की बसा लिया है तुझको जो मन में, तेरी प्रतिमा इतनी सुंदर तू कितना सुंदर होगा, दिया मेरा कौन चलाएं जिनवर तेरे बिना दिन भर , तुम्हारी भक्ति तुम्हारी पूजा रिझा रही है, प्रभु आना इस तरह की लौटकर न जाना, तारीफ तेरी निकली है दिल से, बधाई हो, बधाई.. माताजी लल्ला हो गया हमारे शहर में हल्ला हो गया, पंखिड़ा तू उड़ के चला पावापुरी रे, हो पूरब चंदा प्रभु तुझको अपना मानु मेरे मन के आंचल में एक बार तो पधारो, बाबा कुंडलपुर वाले जीवन तेरे हवाले, त्रिशला को महावीर मिला है, देखो सारी नगरिया बनी है दुल्हनिया…सरीखे भजनों पर सैकड़ों श्रावक और श्राविकाएं रिद्धि-सिद्धि भवन में आस्था के सागर में डूबे नज़र आए।

जीवों की तीन गतियां – मनुष्य गति, तिर्यंच गति और नारकी गति…

ईवनिंग कल्चर से पूर्व दिव्यघोष के बीच संध्या आरती जिनालय से रिद्धि-सिद्धि भवन तक लाई गयी। यह आरती लाने का सौभाग्य एफओई के डीन प्रिंसिपल प्रो. आरके द्विवेदी और जैन स्टुडेंट्स को मिला।रिद्धि-सिद्धि में पंच परमेष्ठी और आदिनाथ भगवान की आरती की हुई। सीसीएसआईटी के स्टुडेंट्स की ओर से प्रस्तुत नाटक नियम का फल में जैन धर्म के अनुसार जीवों की तीन गतियां मानी गई हैं – मनुष्य गति में जीव कर्मानुसार सुख-दुख का अनुभव करता है। तिर्यंच गति, में पशु, पक्षी, वनस्पति और सूक्ष्म जीव आते हैं। नारकी गति में नरकवासी जीव रहते हैं। इसी क्रम में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन प्रेरणास्रोत है। उनका जन्म 1946 में कर्नाटक के सदलगा ग्राम में हुआ। विद्याधर नामक बालक ने मात्र 20 वर्ष की आयु में वैराग्य को अपनाकर गृह त्याग किया और आचार्य देशभूषण जी से ब्रह्मचर्य व्रत लिया। कठोर तपस्या, सहज स्वभाव और गहन अध्यात्म के कारण वे विश्वप्रसिद्ध संत शिरोमणि बने। संचालन सांस्कृतिक समन्वयक श्री आदित्य जैन ने किया। महोत्सव में वीसी प्रो. वीके जैन, ब्रहमचारिणी दीदी डॉ. कल्पना जैन, श्रीमती करुणा जैन, श्री विपिन जैन, डॉ. रवि जैन, डॉ. विनोद जैन, डॉ. आशीष सिंघई, डॉ. एसके जैन, डॉ. अक्षय जैन, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. अर्चना जैन, श्रीमती अहिंसा जैन, श्रीमती मोनिका जैन, श्रीमती स्वाति जैन, डॉ. विनीता जैन, श्रीमती अंजलि सिंघई, श्रीमती आरती जैन उपस्थित रहे।