एमपी में लाडली बहना और नारी सम्मान की धनराशि तय

नरेंद्र तिवारी

सरकारों द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं के बहाने मुफ्त सुविधाओं का वितरण क्या नागरिक समाज का वास्तविक विकास है ? क्या प्रदेश की महिलाओं को घर बैठे खातें में राशि भेजी जाना आत्मनिर्भर भारत बनाने के लक्ष्य के विरुद्ध कार्य नहीं है। क्या देश भर की राज्य और केंद्र सरकार मुफ्त की सुविधाओं का वितरण नागरिकों के कल्याण के लिए करती है या यह चुनावी सफलता प्राप्त करने का साधन मात्र है ? यह विषय अब जागरूक नागरिकों में विचार का विषय बन गया है। मध्यप्रदेश में 15 वर्ष लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार रही है। 2018 में 15 माह की कांग्रेस सरकार के बाद वर्ष 2020 से पुनः एमपी की सत्ता पर भाजपा की शिवराज सरकार काबिज हो गयी, जो अब भी काबिज है। इस तरह कुलमिलाकर 18 साल से अधिक एमपी की सत्ता पर काबिज सरकार द्वारा वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों के 4-5 माह पूर्व लाडली बहना योजना का क्रियान्वयन किया गया, उसके क्रियान्वयन एवं प्रचार में यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि प्रदेश की लाडली बहनों को अब न्याय मिलेगा। उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा, 10 जून से शिवराज सरकार द्वारा लाडली बहना योजना अंतर्गत 1000 रु महीना इन महिलाओं के खातों में पहुचाए जाएंगे। साल भर में 12 हजार रु देकर प्रदेश की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा, महिलाओं को सम्मान से जीने की परिस्थितियों का निर्माण होगा। अब जब 2023 के चुनावों में 4 से 5 महीने शेष हैं। 18 साल से सत्ता पर काबिज सरकार का प्रदेश की महिलाओं को दिए जाने वाले एक हजार रु माह क्या एमपी की महिलाओं का वास्तविक कल्याण कर पाएंगे। नागरिक समाज मे यह बहस छिड़ी हुई है। बहस का विषय शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना ही नहीं है। प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की नारी सम्मान योजना भी है। जिसको लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष एक कदम आगे बढ़कर कह रहे है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर प्रदेश की महिलाओं को 1500 रु की आर्थिक सहायता दी जाएगी। 500 रु की आर्थिक सहायता गैस सिलेंडर के लिए भी दी जाएगी। कमलनाथ ने 9 मई को छिंदवाड़ा के परासिया से नारी सम्मान योजना की शुरुवात करते हुए इसे नारी सशक्तिकरण हेतु महत्वपूर्ण बताया। कमलनाथ ने प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नारी सम्मान योजना का रजिस्ट्रीकरण करवाने हेतु निर्देश दिए है। एमपी में कांग्रेस कार्यकर्ता नारी सम्मान योजना का प्रचार एवं रजिस्ट्रीकरण हेतु द्वार-द्वार जा रहे है। एक और प्रदेश की सत्ता पर काबिज शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रदेश के सरकारी अमले को लाडली बहना योजना के क्रियान्वयन में लगाया हुआ है। 10 जून से महिलाओं के खातें में 1000 रु जमा करवाए जाने का लक्ष्य है। सरकारी मशीनरी और भाजपा संगठन मिलकर योजना को अमली जामा पहिनाने और यह साबित करने में लगे है की लाडली बहना योजना महिलाओं के कल्याण की दिशा में सरकार का महत्वपूर्ण कदम है। दूसरी और सरकार आने पर महिलाओं के खातें में 2000 रु जमा कराने का संकल्प लेने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है की नारी सम्मान योजना से प्रदेश की नारियां आर्थिक रूप से मजबूत होगी। अब सवाल यह उठता है कि लाडली बहना के खातें में एक हजार रु जमा होने, या नारी सम्मान की राशि दो हजार रु जमा होने से प्रदेश की महिलाओं का वास्तविक रूप से सशक्तिकरण होगा या यह चुनावी विजयी प्राप्त करने के लिए मुफ्त की रेवड़ी बाटने की प्रक्रिया मात्र हैं। देश मे जब मुफ्त की सुविधाओं के वितरण पर बहस चल रहीं हो तब यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि नारियों का सम्मान सरकार से प्राप्त नाममात्र राशि से होगा या महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने से होगा। दरअसल राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सच्चाई अलग होती हैं। उनकी सच्चाई इस बात पर निर्भर होती है कि वह किधर खड़े है। भाजपा के किसी सदस्य से पूछो की लाडली लक्ष्मी योजना मुफ्त की रेवड़ियों को वितरण है तब उसका साफ कहना होगा कि यह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मध्यप्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण योजना है, जिससे महिलाओं के जीवन मे परिवर्तन होगा वह आर्थिक रूप से सक्षम बनेगी। इस सदस्य से जब कांग्रेस की नारी सम्मान योजना के बारे में सवाल किया जाए तब उसका दृष्टिकोण बदल जाता है। वह इसे कोरा चुनावी वादा बताते हुए मुफ्त की रेवड़ी का वितरण बताता है। इसी प्रकार कांग्रेस विचारधारा से जुड़ा सदस्य भी नारी सम्मान योजनाओं की खासियत गिनाते नही थकता ओर लाडली लक्ष्मी को शिवराज सरकार की चुनाव में विजयी प्राप्ति की कोशिश बताता है। असल मे राजनीतिक विचारधारा में बंटे नागरिकों को अपने पक्ष द्वारा वितरित मुफ्त की सुविधाएं तो जनकल्याणकारी नजर आती है। विपक्षी दलों द्वारा वितरित ऐसी ही उपलब्ध सुविधा चुनाव जीतने की कोशिश दिखाई देती है। मुफ्त की सुविधाओं का वितरण सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं। इसमे केंद्र की भाजपा सरकार सहित राज्यों में काबिज कांग्रेस और अन्य दलों की सरकार का दृष्टिकोण एक सा है। हाल में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को महिलाओं के थोकबंद वोट मिले, जिसका कारण कांग्रेस की चुनावी घोषणा में गृहलक्ष्मी योजना अंतर्गत 2000 रु खातों में जमा करने की घोषणा शामिल है। यह घोषणा कमलनाथ की एमपी में कई गयी नारी सम्मान योजना के समान है। कर्नाटक में चुनाव पूर्व राज्य परिवहन की बसों में मुफ्त यात्रा का लालीपाप भी दिया गया। परिणामस्वरूप कर्नाटक में कांग्रेस की झोली महिलाओं ने वोटों से भर दी। असल मे हमारा नागरिक समाज मुफ्त की सुविधाओं का आदि हो चुका है। नागरिक समाज के चरित्र में मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति के शामिल होने के पीछे राजनतिक दलों द्वारा चुनाव-दर-चुनाव इस प्रकार की घोषणाओं का करना है। जबकि केंद्र सहित राज्यों में काबिज तमाम दलों का राजनतिक और संवैधानिक दायित्व यह बनता है कि वें देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऐसे कदम उठाए जो महिलाओं सहित राष्ट्र के नागरिकों को रोजगार उपलब्ध करा सकें। कर्मठता की दो रोटी मुफ्त में मिले हलवे से अधिक पाचक और गुणकारी साबित होगी। मुफ्त की सुविधाओं का यह वितरण नागरिक समाज को पंगु , आलसी ओर कामचोर बनाने का प्रयास भर है। इन मुफ्त की सुविधाओं को दलीय नजरिए से देखने के बजाए राष्ट्रीय नजरिए से देखने की आवश्यकता है। नागरिकों या महिलाओं के कल्याण का यह कार्य सरकारी योजनाओं के माध्यम से भी होता है। इस संबंध में राष्ट्रीय आजीविका मिशन में बेहतर काम किया है। महिलाओं के कल्याण की बात करें तो इस मिशन के तहत स्व सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराए गए है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रो में आजीविका मिशन के तहत हजारों महिलाओं को काम मिला है। सिवनी की रजनी की कहानी कुछ दिनों पूर्व खबरों की सुर्खियां बनी थी। रजनी ने विवाह के बाद स्वरोजगार योजना से अपनी रुचि ब्यूटी पार्लर का काम आरम्भ किया और आत्मनिर्भर बन गयी। इस बारे में बड़वानी जिले की सेंधवा तहसील में महिलाओं को समूह बनाकर रोजगार प्रदत्त किये गए। इस सबन्ध में तात्कालीन एसडीएम सुश्री तपस्या परिहार एवं आजीविका मिशन के जिला अधिकारी योगेश तिवारी के प्रयासों से ग्रामीण आजीविका मिशन के अंर्तगत महिलाओं के समूह को चाय-नास्ते का स्टाल खोलने की प्रेरणा दी, शहर में चार-पांच स्थानों पर इस प्रकार के स्टाल खोले गए। इन चाय और नास्ते के स्टालों से सरकारी कार्यालयों और सामूहिक संस्थानों को चाय-नास्ता लेनें हेतु एसडीएम सुश्री तपस्या परिहार ने प्रयास किये अब जबकि इन प्रयासों को दो वर्ष हो चुके है। इन महिलाओं के जीवन मे परिवर्तन आ गया है। सेंधवा मंडी शेड में चाय स्टाल का संचालन कर रही समूह की सदस्य ग्राम गोई की लीलाबाई ने बताया कि दो साल में जीवन बदल गया। घर-घर जाकर काम करने की जगह अब अपनी मेहनत से आत्मनिर्भर बनने का एहसास होता है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले में स्वरोजगार योजना और समूहों के माध्यम से महिलाओं में आत्मनिर्भरता का भाव जन्मा है। मुक्त की सुविधाओं के स्थान पर इस तरह के प्रयासों से महिलाओं और नागरिकों को सक्षम बनाने का विचार मुफ्त सुविधाओ से सशक्त करने के विचार से श्रेष्ठ है। बेरोजगारों को पैसा, महिलाओं को धनराशि, मुफ्त की सुविधाओं की घोषणाओं के बिना राजनीतिक दलों को अपनी जीत पर भरोसा ही नहीं होता। भारत के पूर्व चीफ जस्टिज एन वी रमना ने एक टिप्पणी में कहा था। मुफ्त चुनावी वादे और वेलफेयर स्किम में फर्क है। चुनाव में घोषणा के वक्त राजनीतिक दल ये नहीं सोचते कि पैसा कहा से आएगा। भारत जैसे गरीब देश में इस तरह का रवैया सही नहीं है। किंतु राजनीतिक दलों को चुनाव में विजय प्राप्त करने से मतलब है। मुफ्त की सुविधाओं के वितरण के स्थान पर नागरिकों को सक्षम बनाने के विचार को प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लुकलुभावन वादों से बचने की सलाह दी है। मुफ्त की रेवड़ियों से आत्मनिर्भर नहीं एक कमजोर नागरिक का निर्माण होता है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए आत्मनिर्भर नागरिक का होना आवश्यक है। ऐसे नागरिक मेहनत परिश्रम और काम से ही सम्भव है। मुक्त की सुविधाओं से तो कतई नहीं।