
अजय कुमार
बिहार की राजनीति एक बार फिर से उस मोड़ पर आ गई है जहां निजी रिश्ते, पारिवारिक कलह और सत्ता की लड़ाई एक-दूसरे में उलझती नज़र आ रही हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुखिया और बिहार के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। यह फैसला जितना चौंकाने वाला है, उतना ही बिहार की राजनीति में दूरगामी प्रभाव डालने वाला भी साबित हो सकता है। तेजप्रताप का राजनीतिक जीवन हमेशा से विवादों में रहा है, लेकिन इस बार मामला निजी रिश्तों से शुरू होकर सार्वजनिक शर्मिंदगी, पार्टी अनुशासन और संवैधानिक संकट तक जा पहुंचा है।
तेज प्रताप यादव ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने अनुष्का यादव नाम की एक युवती के साथ अपनी कथित शादी की तस्वीरें साझा कीं। इन तस्वीरों में दोनों शादी के जोड़े में नजर आ रहे थे, और इसके साथ ही उन्होंने एक भावुक पोस्ट में लिखा कि यह प्रेम कहानी 12 साल पुरानी है और अब उन्होंने इसे शादी के बंधन में बदल दिया है। इस खुलासे के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया, राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई और मीडिया में तेज प्रताप की ‘गुप्त शादी’ की चर्चा हर ओर होने लगी। लेकिन कुछ ही घंटों बाद तेज प्रताप ने एक वीडियो जारी कर सफाई दी कि उनका इंस्टाग्राम अकाउंट हैक हो गया था और ये तस्वीरें फर्जी थीं, एडिट की गई थीं। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि तस्वीरें कहां से आई, किसने बनाई, और उनका अनुष्का यादव से क्या संबंध है।
तेजप्रताप की सफाई ने विवाद को थमाया नहीं, बल्कि उसे और गहरा कर दिया। सोशल मीडिया पर पहले ही उनके अनुष्का यादव के साथ पुराने वीडियो और तस्वीरें वायरल हो चुकी थीं। इनकी पुष्टि करने वाली कई खबरें आने लगीं। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि दोनों ने कुछ साल पहले आर्य समाज मंदिर में शादी की थी और अनुष्का अब कानूनी रूप से उनकी पत्नी होने का दावा कर सकती हैं। दूसरी ओर, तेज प्रताप का अपनी पहली पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक का मामला अब तक अदालत में लंबित है। ऐश्वर्या, पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय की पोती और वरिष्ठ कांग्रेस नेता चंद्रिका राय की बेटी हैं। ऐसे में तेज प्रताप की दूसरी शादी वैध नहीं मानी जा सकती। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जब तक पहली पत्नी से तलाक नहीं हो जाता, तब तक दूसरी शादी अपराध मानी जाती है, जो तेज प्रताप की विधायकी को भी संकट में डाल सकती है।
लालू प्रसाद यादव ने इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लिया और तेज प्रताप को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। इस फैसले को उन्होंने पार्टी और परिवार की गरिमा के लिए जरूरी बताया। लालू यादव ने कहा कि तेज प्रताप की गतिविधियों से न सिर्फ पार्टी की साख पर असर पड़ा है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की राजनीति के मूल्यों के भी खिलाफ है, जिसके लिए आरजेडी दशकों से लड़ती रही है। लालू प्रसाद यादव के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि वह अपनी राजनीतिक विरासत को तेज प्रताप के बजाय तेजस्वी यादव को सौंपना चाहते हैं और तेज प्रताप के अनियंत्रित बयानों, व्यवहार और विवादों से अब वे पूरी तरह तंग आ चुके हैं।
इस फैसले ने राजनीतिक रूप से भी कई नई संभावनाओं को जन्म दिया है। बीजेपी और जेडीयू जैसे विरोधी दलों ने इस मौके को हाथों-हाथ लिया और लालू परिवार की कलह पर तीखी टिप्पणियां कीं। जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि यह पूरा मामला जनता को भ्रमित करने और सहानुभूति बटोरने की कोशिश है। उन्होंने लालू परिवार पर सत्ता के लिए ड्रामा रचने का आरोप लगाया। बीजेपी के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि तेज प्रताप का आचरण ‘जंगलराज’ की याद दिलाता है, जो बिहार में लालू राज का प्रतीक रहा है। इन बयानों से स्पष्ट है कि विपक्ष इस मुद्दे को 2025 के विधानसभा चुनावों तक जिंदा रखना चाहता है।
तेज प्रताप के पार्टी से निष्कासन ने उनके भाई और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की भूमिका को भी केंद्र में ला दिया है। तेजस्वी यादव इस समय आरजेडी के सबसे मजबूत और सर्वस्वीकार्य नेता माने जाते हैं। वे विपक्ष के नेता हैं और अगली बार मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार भी। तेजस्वी ने इस मामले में साफ कहा कि पार्टी किसी भी तरह की अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करेगी। उनका यह रुख न केवल उनके नेतृत्व कौशल को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि वह पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप को तेजस्वी की बढ़ती लोकप्रियता और संगठनात्मक पकड़ से असुरक्षा महसूस होने लगी थी, और यही कारण था कि वे बार-बार मीडिया और सोशल मीडिया पर ऐसे बयान और हरकतें कर रहे थे जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा।
तेज प्रताप की राजनीतिक यात्रा शुरू से ही अजीबो-गरीब रही है। 2015 में जब आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस का महागठबंधन बना और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। लेकिन उनके विभागीय कार्यशैली, अपरिपक्व बयानों और विवादित पहनावे की वजह से वे लगातार सुर्खियों में रहे। उन्होंने खुद को ‘कृष्ण’ कहा, तो कभी गाय चराने और जंगलों में योग करने की तस्वीरें शेयर कीं। उन्होंने अपनी ही सरकार के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और बार-बार अपने भाई तेजस्वी से भी टकराव की स्थिति बना ली। 2020 में उन्होंने हसनपुर से चुनाव लड़ा और जीते, लेकिन पार्टी के भीतर उनकी भूमिका गौण होती चली गई।
तेजप्रताप की यह ताज़ा हरकत उनके राजनीतिक करियर के लिए शायद सबसे बड़ा संकट बनकर सामने आई है। पार्टी से निष्कासन के बाद न तो वे चुनाव लड़ सकते हैं, न ही किसी पद की उम्मीद कर सकते हैं। उनके समर्थन में अभी तक पार्टी के किसी बड़े नेता ने कोई बयान नहीं दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे संगठन में पूरी तरह अकेले पड़ चुके हैं। दूसरी ओर, यह विवाद अगर कानूनी मोड़ लेता है, तो उन्हें अपनी विधायकी से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
बिहार की राजनीति में यह पहला मौका नहीं है जब किसी पिता ने अपने ही बेटे को पार्टी से बाहर निकाला हो। इससे पहले समाजवादी पार्टी में भी ऐसा ही दृश्य देखने को मिला था, जब मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को पार्टी से बाहर करने की घोषणा की थी। लेकिन कुछ ही महीनों में अखिलेश ने पार्टी की कमान संभाल ली और अब वे सपा के निर्विवाद नेता हैं। हालांकि तेज प्रताप की स्थिति अखिलेश जैसी नहीं है, क्योंकि न तो उनके पास संगठन पर नियंत्रण है और न ही जनाधार। लालू परिवार में भी यह स्पष्ट हो चुका है कि अब राजनीतिक उत्तराधिकार तेजस्वी को ही मिलेगा।
यह पूरा विवाद उस समय सामने आया है जब बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता, जातिगत जनगणना, रोजगार, शिक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेरने की रणनीति बनाई जा रही है। ऐसे में तेज प्रताप का यह प्रकरण आरजेडी की रणनीति को कमजोर कर सकता है। तेजस्वी यादव को अब न सिर्फ जनता, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं और सहयोगी दलों को यह भरोसा दिलाना होगा कि पार्टी पूरी तरह अनुशासित है और उसका नेतृत्व स्थिर और जिम्मेदार हाथों में है।
तेज प्रताप यादव की कथित प्रेम कहानी और उस पर फैला विवाद एक व्यक्ति की निजी जिंदगी से निकलकर पूरे राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रहा है। यह दिखाता है कि किस तरह एक नेता का निजी आचरण और सार्वजनिक छवि आपस में जुड़ी होती है और किस तरह राजनीति में पारिवारिक कलह एक पूरी पार्टी की साख को प्रभावित कर सकती है। लालू प्रसाद यादव ने इस बार सख्ती दिखाकर यह संकेत दे दिया है कि अब वे पार्टी को एक नया रूप देना चाहते हैं, जिसमें अनुशासन, नैतिकता और नेतृत्व क्षमता को प्राथमिकता दी जाएगी। तेज प्रताप के लिए यह न केवल एक चेतावनी है, बल्कि उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती भी। अब यह देखना बाकी है कि वे इस संकट से उबरने की कोई कोशिश करते हैं या खुद को हाशिए पर धकेलते चले जाते हैं। बिहार की जनता, राजनीतिक पर्यवेक्षक और विरोधी दल सभी इस घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं, क्योंकि इसका असर आने वाले चुनावों और राज्य की राजनीति पर पड़ना तय है।