भाषा एवं संस्कृति विभाग ने पहाड़ी सप्ताह के अंतर्गत साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का करवाया आयोजन

Language and Culture Department organized literary and cultural program under Pahari Week

रविवार दिल्ली नेटवर्क

बिलासपुर : भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर द्वारा दिनांक 05 नवम्बर 2024 को संस्कृति भवन बिलासपुर के बैठक कक्ष में पहाड़ी सप्ताह के अंतर्गत साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करवाया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य शिरोमणि डॉ. लेखराम शर्मा ने की ।

प्रथम सत्र में जिला स्तरीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें जिलाभर से 25 कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की और दूसरे सत्र में लोकगीतों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मंच संचालन की भूमिका रवींद्र कुमार शर्मा ने निभाई ।

काव्य समेलं में जीत राम सुमन ने “ किती सुनाइये दुखड़े अपणे” शीर्षक से रचना प्रस्तुत की जिसकी पंक्तियाँ थी – “कणका री फसलां से सुरवां रा हसणा”। रवीन्द्र कुमार शर्मा ने – “निक्के रिया मुन्नियां रा आया ब्याह”। एस.आर. आजाद ने –“न रहे से घर-बार तीज- त्योहार”। रविन्द्र कुमार ठाकुर ने-“ सच बोलो ताँ गल्ल कऊड़ी लगदी” । डॉ. अनीता शर्मा ने :- “अर्धनारीश्वर” शीर्षक से रचना प्रस्तुत की, पंक्तियाँ थी – “ मैंने अब ये – जरूर जाना है दुख में मर्द भी रोते है”। प्रकाश शर्मा ने लोक गीत- “तेरा मेरा लगन हो सबणा शिवे बनाया है”।

कौशल्या कुमारी ने – “मैं आज के युग की नारी हूँ”। सुरेन्द्र मिन्हास ने – “शराबी जो जे चांगा सुनी जान्दी ताँ तिसरी जीभ लपाखी जान्दी”। बन्दना कुमारी ने लोकगीत–“जली जाँदा सौरेयां दा देश”। संदेश शर्मा ने-“मींजो पता हुँदा तेरे नावारा”। कौशल्या देवी ने–“चन्ने त्यामबली अम्मा ओ अंगाण सरु दा बुट्टा”। सचिन कश्यप ने-“चल मेरी ज़िंदे नवीं दुनिया बसाणी” लोक गीत प्रस्तुत किया । कुलदीप चंदेल ने–“रात जान्दी रही याद ओन्दी रही” गजल सुनाई । फूला चंदेल ने –“चंगरा तलाईया अम्मा नो कौल फूल फुबया” सुहाग गीत गाया ।

रविंदर भट्टा ने-“ये गल्ला सुपने ही हुई गइया”। सुशील पुंडीर ने-“तुह बाज्जी ज्यू नीं लगदा”। शिव पाल गर्ग ने- “ते जे जमाने री सुनणा सुनाणा था”। कर्ण चंदेल ने-“काले बदला च रल फिरदी”। अनीश ठाकुर ने –“लुखाई लेंदा मैं अपने गम सारे”। अरुण डोगरा रीतु ने- “हर साले साही इस बरी भी रखया करवाचौथ ”। तृप्ता कौर मुसाफिर ने- “कितो चलुरे मुइऐ कित्तों जाणा”। वीना वर्धन ने –“रोई पिहरी खसम कित्ता, सह भी गिदड़े कौए नितया”। रविंदर चंदेल कमल ने – “जिंद मुक जाणी ऐनी मुकणे ऐ कमसाण”। आनंद सोहड़ व्याकुल ने – “पैरा ते पताणी जिन्दडी किया कटणी नमाणी जिन्दडी”। चिंता देवी ने लोक भजन प्रस्तुत किया।

इसके अतिरिक्त प्यारी देवी, लेख राम शर्मा, कर्मबीर कंडेरा इत्यादि ने भी अपनी रचनायें प्रस्तुत की। इस अवसर पर श्री हिमांशु शर्मा, मुनीश कुमार, इलियास, राकेश कुमार, अखिलेश कुमार, अंकित कुमार भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे ।

डॉ. लेख राम शर्मा ने पहाड़ी भाषा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहाड़ी भाषा के शब्दों पर वैदिक संस्कृत का प्रभाव है। वैदिक संस्कृत के अनेक शब्द पहाड़ी भाषा में बोले जाते हैं जिनके उच्चारण में क्षेत्रीय परिवर्तन देखने को मिलता है । पहाड़ी भाषा बहुत समृद्ध है जो सभी भाषाओं को समेटे हुये हुए हैं। जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने पहाड़ी दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि 1 नवम्बर 1966 को पंजाब की पहाड़ी रियासतों को हिमाचल प्रदेश में सम्मिलित कर विशाल हिमाचल की स्थापना की गई थी तब से 1 नवम्बर को पहाड़ी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं