विनोद तकियावाला
विश्व में भारत की पहचान विभिन्ता में एकता के रूप में होती है।यहाँ पर विभिन्न धर्म सम्प्रदाय मतो को मानने वाले लोग एक साथ रहते है।जिनकी मिन्न भिन्न भाषा,संस्कृति व पर्व – त्योहार होते है।अभी कुछ ही दिन बीते है।हम सभी नें बडी घुम धाम से नवरात्रि अथार्त दुर्गा पूजा व रामलीला मनाया है।आज हम अपने इस आलेख में दुर्गा पूजा व रामलीला पर चर्चा कर रहें है।इस अवशर पर कही पर शक्ति स्वरूणी देवी माँ दुर्गा के दसों रूप की वैदिक रूप से पुजा अर्चना की है। यह त्योहार खास कर पं०बंगाल,बिहार,झारखंड में दसों दिनों तक आकर्षक पुजा पंडाल में देवी की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है।वही देश राजधानी दिल्ली/एन सी आर में रामलीला का भव्य आयोजन किया गया है।इन दिनों दिल्ली व आप पास का इलाका जहाँ राममय है।वही रावण दहन की प्रतिक्षा की जा रही है।
विभिन्न रामलीला मंचन के आयोजक विशालकाय रावण,मेघनाद,कुम्भकरण के साथ नव सृजन के रूप लोकतंत्र के राम-रावण,जनता के पास रावण वध का सबसे बड़ा हथियार वोट मतदान के हथियार से कभी रावण मरता है और कभी झांसा देकर बच निकलता है।जब बच निकलता है तो कुछ ज्यादा आक्रामक हो जाता है।लंकापति रावण कभी नहीं मरते।मरते तो फिर आज हजारों साल बाद भी उनके पुतले न फूंके जाते?मर्यादा पुरषोत्तम राम ने जिस रावण को मारा था,वो त्रेता का रावण था।त्रेता युग के रावण को कलियुग के इस रावण के बारे में शायद उन्हें पता भी न होगा।कलियुग में राम अपने पिता के आज्ञा पालन करने के लिए जंगलों में14वर्षो का कारवास कटाने गए थें।परिणाम आज वे भव्य मंदिरों प्रतिमा में प्रतिष्ठित हैं।यहाँ सबाल उठाना स्वाभाविक है कि मंदिर वाले राम कलियुग के वर्तमान रावण को आखिर कैसे मार सकते हैं?अगर कलियुग के रावण को मारना है तो कलियुग के रामवाण व अस्त्र -शस्त्रों से मारा जा सकता है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से राम-रावण युद्ध पिछले कई दशकों से जारी है।आप के मन में प्रशन उठना स्वाभाविक है कि आज राम-रावण की पहचान कैसी कि जा सकती है।इस संदर्भ में मैने राजनीति के मर्मज्ञ व विशेषज्ञों की राय है कि कलियुग में राम और रावण की पहचान करना बहुत हीआसान है।रामलीलाओं का मंचन समाप्त हो गए।विजया दशमी के दिन जगह रावण के पुतले का दहन किया गया।दुसरे ही दिन रावण हमारे समाज पुनः जीवित हो कर अट्हास कर रहा है।रावण पुछ रहा है अभी दो दिन भी नही हुए जब समाज के स्फेदपोश समाज के ठेकेदारों द्वारा डोल नगाढे से मुझे जलाने के लिए एकत्रित हुए थें।क्या इनमें सें कोई राम था क्या।जिन्होने अपने पिता श्री आज्ञा पालन करते हुए 14 वर्षो के लिए वनवास चले गए थें।
राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद अपनी प्राणों से प्यारी सीता जी का त्याग कर दिया था।राज्य के प्रजा के कल्याण हेतु लगे रहते थें ।मै पुछना चाहता हुँ कि इनमें कौन राम है।आज के राम कहाँ है।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम कौन है। जो वर्तमान के रावण को मारकर कर स्वस्थ्य परम्परा व राम राज्य स्थापित करेगा।आप में मन अनेकों ज्वलत प्रशन होगें।जिसका जबाव मै आज अपने लेखनी के माध्यम से प्रयास कर रहा हुँ।त्रेतायुग के राम रावण वर्तमान के कलियुग के राम रावण में बहुत परिवर्तन देखने को मिलता है।आज हम भारतीय लोकतंत्र के शासनकाल में सतापक्ष के भुमिका पर नजर डालते है। सत्ता के सिंघासन पर रावण और विपक्ष में राम की भूमिका में रहता है।ये भूमिकाएं बदलती रहतीं हैं।कभी राम के हाथ में सत्ता होती है तो कभी रावण के हाथ में होती है।जनता जनार्दन हमेशा निहत्था होती होती है।पाँच बर्ष जनता के पास रावण वध का सबसे बड़ा हथियार मतदान का होता है,जिसे जनता प्रत्येक पांच साल में लोकतंत्र के महापर्व चुनाव में आजमाती रहती है।जिससे कभी रावण मरता है और कभी झांसा देकर बच निकलता है।जब बच जाता है तो ज्यादा आक्रामक हो जाता है।आधुनिक युग में राम-रावण को आप अपनी दृष्टि व विवेक से स्वतंत्र हैं।ये कटु सत्य है कि आधी जनता जिसे अपना रावण समझती है,शेष जनता उसे ही राम मानती है।दोनों में एक ही फर्क होता है कि रावण हमेशा ही आधुनिक यंत्र से सुसज्जित रथ पर सवार होता है और राम साधन विहीन रहते हुए अपने जनता के अधिकारों के जमीन पर संघर्ष करता रहता है।
त्रेतायुग के मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कलियुग के स्फेदपोस इस आधुनिक रावण में ले-देकर कुछ ही समानताएँ देखने को भी मिलती हैं।उदाहरण स्वरूप रावण जन्मजात मिथ्यावादी व षंढयत्र कारी होता हैं,गांधीवादी नहीं सत्य,न्याय व अंहिसा से उसका कोई दुर -दुर तक कोई सबन्ध में नही है।शाम दंड भेद से वह अपने सता सुख भोगना चाहता है।इसके लिए वह कभी वो साधू के वेश में होता हैं तो कभी मायावी के वेश में।दोनों युगों में उनके अंध भक्त रावण के पास होते हैं।वे सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी दांव पर लगाने में नहीं हिचकते।लोकतंत्र तो बहुत छोटी चीज है। आकनिक रावण केवल अपनी महिमा मंडित व जय-जयकार सुनना पसंद करता है।
हालाकि राम और रावण की पहचान करने के लिए राम की अनुपस्थिति में लगातार रामलीलाएं होतीं हैं,बावजूद लोग राम और रावण की पहचान करने में करते हैं।क्योकि रावण की माया अक्सर जनता की आँखों में धुल झोंकती रहती है।लोकतंत्र के इस रावण के विविध रूप हैं।वह साम्प्रदायिक ,भ्रष्टाचार,महंगाई,भाई-भतीजावाद,परिवारवाद है।कलयुगी रावण का कुनवा त्रेता के न रहनरावण के मुकाबले आज ज्यादा बढ़ गया है वही राम पहले भी चार भाई थे और आज भी चार ही हैं।इन चारों में भी अनेक रावण के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।अब किस,किसका नाम लिया जाये ? सब तो आज के रावण की गोदी में बैठे हैं।रावण के इशारे पर नाच रहे हैं।सबको इस मायावी व कलयुगी रावण से तरह-तरह की उम्मीदें हैं रावण की माया हैं ही अपरम्पार।उस समय केवल लंका में रावण था, लेकिन इस कलियुग में जगह-जगह विशालकाय रावण हैं।इसीलिए देश के अमूमन हर शहर में रामलीला मैदान हैं।इन्हीं मैदानों में लेकर रावण को हर साल मारा जाता हैं लेकिन वो केवल एक दिन के लिए मरता है। बाक़ी 364 दिन अट्टहास करता है।अब राम जी 364 दिन तो रावण का वध करने के लिए आने वाले नहीं हैं।ये काम तो जनता को ही करना चाहिए।जनता ये काम कर सकती हैं लेकिन बेचारी रावण से लड़े या मंहगाई से कभी खाने का तेल मंहगा,तो कभी जलाने का तेल मंहगा।कभी आटा मंहगा तो कभी दाल मंहगी।कब क्या मंहगा हो जाये,पता ही नहीं चलता ?कलियुग में रावण रूपी मंहगाई पर बात ही नहीं करता।भ्र्ष्टाचार के मुद्दे से दूर भागता हैं।वह जनता को मीठी मीठी-प्रत्येक माह में अपनी मन की करता है।वह दुसरे के मन बात या उनसे कोई सवाल पूछे उन्हे मंजुर नही है।वह वेचारी व वेवस अपनी जनता को‘अच्छे दिन आएंगे,जल्द आएंगे,कहता रहता हैं,लेकिन अच्छे दिन हैं कि आते ही नहीं और बुरे दिन हैं की अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं।हिलने का नाम ही नहीं लेते।जाने की बात तो छोड़ ही दीजिये।कलियुग का रावण मसखरी में सिद्धस्त हैं। कभी अपने विरोधी लोगों के जूतों पर हँसता हैं तो कभी टीशर्ट पर कभी कुछ कहता हैं,तो कभी कुछ।
ताली पीटना रावण का प्रिय शगल है।रावण का ताली पीटना ऐसा कलात्मक हैं कि देखकर किन्नर भी लजा जाते हैं।रावण की ताली ललित कलाओं में शामिल करने योग्य है।यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि मै सिर्फ अपनी तीरक्षी नजर से काल्पनिक राम-रावण प्रतीकात्मक बात कर रहा हूँ।मै किसी राजनीतिक दल के नेताओं की चाल चरित्र पर सबाल नहीं उठा रहा हुँ। हालाकि हमारे मीडिया मित्र मंडली व मेरे शुभचिन्तक व हितेषी हमेशा ही समझाते रहते है कि खबरीलाल जी आप हमेशा ही अपनी कलम से तीखा प्रहार क्यों करते रहते है।आप भी किसी का झंडा क्यूं नही थाम लेते हो।इसलिए किसी नेताओं की बात करने में मुझे डर लगता है।अब मै भी सोचने को मजबुर है कि राज नेताओं से कौन पंगा ले ?वे जैसे हैं अच्छे हैं।चाहे वे रथ पर हों चाहे सड़क पर।हम दोनों को दूर से सलाम करते हैं।हमें पता हैं कि दोनों रामलीला मिलजुलकर खेलते हैं और दर्शकों को मूर्ख बनाते हैं।नेताओं ने ही अब तक रावण को ज़िंदा रखा हैं अन्यथा असली रावण को तो हमारे रामजी कभी का निबटा चुके थे।उन्होंने तो रावण को मोक्ष भी दे दिया था,ये जो कागज का बारूद भरा रावण है,ये नेताओं का ही बनाया हुआ है।ये हर साल जलता हैं,लेकिन फिर जन्म ले लेता है।जनता को चाहिए कि वो कलियुग के राम-रावण की इस नूरा कुश्ती को पहचाने।इसमें लिप्त न हो। रावण यदि राम की भूमिका में हो तो भी रहम न करे और राम को भी नाटक करते देखे तो वनवास दे दे।अपने आप अक्ल ठिकाने आ जाएगी।इस वर्ष ही पाँच राज्यों में विधान सभा के सभा की घोषणा हो चुकी है तथा अगले वर्ष 24 में लोक सभा के आम चुनाव होने वाली है।लोकतंत्र में चुनाव महायुज्ञ होता है।चुनावी महायज्ञ में जनता जनार्दन मतदान रूप आहति अवशय ही डालें।जहाँ तक रावण के वध का प्रशन है।जनता अपने मतदान रुपी वाण से भ्रष्टाचार,महँगाई,बेरोजगारी रूपी राक्षण का अन्त करें।जनता के हाथ में वोट का तीर हैं,लेकिन वो हमेशा रावण की नाभि पर नहीं लगता।अक्सर निशाना चूक जाता हैं।बहरहाल राम,रावण और रामलीला ही हैं जो लोकतंत्र के लिए पहेली हैं।लोकतंत्र को परलोक में जाने से रोकने के लिए अपने-अपने मोर्चे पर सजग रहिये। कुछ दिन शेष जब राम की घर वापसी के सांकेतिक दिवस पर हम सभी ज्योति पर्व ‘ दिवाली मनाने वाले है।