भ्रष्टाचार के समर्थन में है चिट्ठीबाजी और इंसाफ मोर्चा

सुशील दीक्षित विचित्र

वर्तमान राजनीति में यह देख कर जनता को आश्चर्य होता है कि भ्रष्टाचार के समर्थन और भ्रष्टाचारी के बचाव के लिए विपक्षी नेता किए कैसे हथकंडे अपना रहे हैं वह भी पूरी बेशर्मी से झूठ बोल कर | कहीं इंसाफ मोर्चा बना कर मोदी सरकार को चुनौती देने की कोशिश की तैयारी की जा रही है तो कहीं नौ नेता प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर शराब घोटाले के मुख्य आरोपी मनीष सिसोदिया को छोड़ देने की मांग कर रहे हैं | भ्रष्टाचार का इतना नंगा समर्थन तभी से देखने को मिल रहा है जब से मोदी सरकार ने जीरो टालरेंस के साथ भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया | लगभग हर नेता को खतरा महसूस होने लगा है क्यूंकि अभी तक वे यह सोंच कर निश्चिंत भाव से भ्रष्टाचार में लिप्त थे कि उन पर हाथ डालने की किस माई के लाल में हिम्मत है |

भ्रष्टाचार का नंगा समर्थन तो दबे छिपे ढंग से नेता करते ही रहते रहे | इंदिरा गांधी ने भ्रष्टाचार को वैश्विक समस्या बताया था लेकिन फिर भी अभी नेताओं में आईटीआई शर्म बांकी थी कि भ्रष्टाचारी के पक्ष में खड़े नहीं होते थे लेकिन 2019 में जब पश्चिम बंगाल में पुलिस कमिश्नर राजीव सिंह से सारदा चिट फंड घोटाले में सीबीआई ने कार्यवाही की तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इशारे पर पश्चिम बंगाल पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों को ही हिरासत में ले लिया | बाद में ममता बनर्जी ने इस कार्यवाही के खिलाफ और राजीव सिंह के समर्थन में धरना दिया था | इस धरने को कांग्रेस , सपा , राजद , नेशनल कांफ्रेंस ने समर्थन दिया था | कट्टर ईमानदार पार्टी आम आदमी पार्टी के कट्टर ईमानदार अरविन्द केजरीवाल जो आरोप लगते ही इस्तीफ़ा देने की सीख भाजपा को देते थे उन्होंने तमाम आरोप लगने के बाद भी ममता बनर्जी को समर्थन ही दिया | कभी इस्तीफ़ा नहीं माँगा | शिक्षक भर्ती घोटाले में ममता के करीबी नेताओं के यहां कमरे भर भर रुपया बरामद हुआ था | तब भी वे निर्दोष है और राहुल गांधी ममता के साथ कंधे से कन्धा मिला कर खड़े थे | मजेदार बात यह कि ममता काफी समय से राहुल गांधी का कंधा झटकती आ रही हैं| आगे चल कर तो भ्रष्टाचार को खुलेआम समर्थन देने का प्रचलन चल पड़ा मानों यह कोई नया फैशन हो | जैसे ही किसी बड़े नेता के खिलाफ जांच होती तो ईडी और सीबीआई के दुरूपयोग का शोर मचाया जाने लगता है | बिहार के लालू प्रसाद यादव पर तो आरोप सिद्ध होने पर चारा घोटाले में सजा भी हो चुकी है और वे जेल भी काट आये लेकिन विपक्षी नेताओं का मानना है कि मोदी सरकार उनसे बदला ले रही है | इसके बावजूद कहा जा रहा है कि जब चारा घोटाले में कार्यवाही शुरू हुयी थी तब बिहार में लालू प्रसाद यादव की और केंद्र में उनके समर्थन वाली सरकार थी और तब मोदी का राजनीति में कोई बड़ा कद नहीं था | राहुल गांधी भी लालू को जेल तक में समर्थन दे आये थे |

जैसे-जैसे बड़े नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लग उनसे विपक्ष में एक डर बैठ गया है | यह डर इसलिए और बढ़ता जा रहा है कि शायद ही कोई नेता बचा हो जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों | मनीष सिसोदिया के समर्थन में जिन नौ नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर निर्दोष बताया है वे खुद भ्रष्टाचार के आरोपी हैं | उनके खिलाफ या तो जांच चल रही है या मामला अदालत में विचाराधीन है | चिट्ठी पर अखिलेश यादव , अरविन्द केजरीवाल , चंद्रशेखर राव , ममता बनर्जी , शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला , भगवंत सिंह मान , तेजस्वी यादव , उद्धव ठाकरे आदि नौ नेताओ के हस्ताक्षर हैं | इनमें से तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव समेत पूरा कुनबा भ्रष्टाचार में आरोपी है और मुकदमें का सामना का रहा है | अखिलेश यादव भी भ्रष्टाचार के मामले में बाहर नहीं माने जाते जबकि फारुख अब्दुल्ला पर जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में 45 करोड़ के घोटाले का आरोप है | इस मामले में उनकी बारह करोड़ की सम्पत्ति भी कुर्क की जा चुकी है | शराब घोटाले की आंच तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के घर तक पहुँच चुकी है | उनकी पुत्री कविता का नाम भी इस मामले में सामने आया है| शरद पवार पर तो भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप हैं जिनकी जांच जारी है | यह आरोप भाजपा शासन में नहीं लगे बल्कि यूपीए शासन में लगे लेकिन बड़े नेता होने के कारण बचे रहे | अब वे भी अपने को फंसता पा रहे हैं | अरविन्द केजरी पर भी शराब घोटाले की आंच आने वाली है इस्सलिये वे बेचैन हैं अनर्गल आरोप लगा कर खुद को और अपने भ्रष्ट सिपहसालारों के सीने पर कट्टर ईमानदार का सर्टिफिकेट चिपकाने में जी जान से लगे हैं | ममता बैनर्जी तो अपने भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए धरना भी दे चुकी हैं | यह जिक्र ऊपर किया ही जा चुका है | उद्धव ठाकरे के सिपहसालार संजय राउत भी घोटालों के मामले में जमानत पर छूटे हुए हैं |

यह सभी नेता बड़े पदों पर या तो रहे या अभी भी हैं | इनकी धारणा थी कि भ्रष्टाचार उनका जन्मसिद्ध अधिकार है और कोई जांच एजेंसी उन पर हाथ नहीं डाल सकती | उनकी यह भी धारणा रही कि सत्ता तो आखिर जैसों की है जो कभी जानी ही नहीं है इसलिए डर कैसा | जातीय गोलबंदी , एम बाई जैसे साम्रदायिक फैक्टर बना कर , मुस्लिमों को संघ और भाजपा का भय दिखला कर वे ही सत्ता पाते रहेंगे इसलिए किसी कार्यवाही का कोई डर नहीं| यही निडरता कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कपिल सिब्बल में थी जो एक जमाने में अपनी सरकार के घोटालों पर घोटाले खुलने पर दलील दिया करते थे कि इन घोटालों से जीरो प्रतिशत लास हुआ है | आज वे इन्साफ मंच बना कर विपक्ष के भ्रष्टाचार के समर्थन में गोलबंदी करने निकल पड़े हैं | इस सारी कवायद पर यदि भाजपा कहती है कि आरोप लगाने वाली वे पार्टियां है जिन्होंने संवैधानिक पद पर बैठ आकर भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मान लिया था तो जनता में यदि विश्वास नहीं उपजता तो अविश्वास भी नहीं होता | यह देखना कितना दयनीय है कि अपनी राजनीतिक जमीन तलाशते कपिल सिब्बल इन्साफ मोर्चा बना कर वैसे ही भ्रष्टाचारियों की वकालत करने निकले हैं जैसे कि अदालत में किया करते हैं | बहाना वही है जो कांग्रेस का है कि लोकतंत्र पर हमला हो रहा है | जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है | तमाम दलों के नेताओं को उनके इंसाफ मंच से आशा की किरण नजर आने लगी है | उन्हें लगने लगा है कि जिसके सपने वे लम्बे समय से देखते आ रहे हैं वह तीसरा मोर्चा इन्साफ मंच के बैनर तले बन सकता है | वैसे राजनीति में होने को कुछ भी हो सकता है | जब वाम और कांग्रेस एक साथ आ गए हैं तो वर्तमान राजनीति में असंभव शब्द के कोई अर्थ नहीं रहे लेकिन ऐसा कोई मोर्चा सीढ़ी चुनौती देने में सक्षम होगा , फिलवक्त यह अभी लम्बी बहस का विषय है |

तर्क के तौर पर कहा जा सकता है कि तीसरा मोर्चा यदि बन गया तो भाजपा गठबंधन को भारी मुश्किल हो सकती है | लेकिन यह तर्क ही है क्यूंकि अभी तीन राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ने जो गठबंधन बनाया था उसको जनता ने नकार दिया | इसे देखते हुए गठबंधन की सफलता भी संदिग्ध मानी जा रही है | इस कारण यह और भी संदिग्ध हो जाती है कि विपक्ष के तमाम चेहरों के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो चुके हैं | जो पैसा कमाया गया है वह भी जनता का ही है इसलिए जनता से सहयोग की आकांक्षा उससे एक और विश्वासघात करना होगा | इससे विपक्ष को बाज आना चाहिए क्यूंकि जनता की नाराजगी ने ही उन्हें अर्श से फर्श पर ला पटका है | इससे अधिक नाराजगी उनके अस्तित्व पर भी संकट पैदा कर सकती है |