
मुंबई (अनिल बेदाग) : ओम तमसो मा ज्योतिर्गमय-“मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।” दिवाली केवल दीपक जलाने का पर्व नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर के प्रकाश को जगाने का अवसर है। इस दिन बाहरी नहीं, आंतरिक प्रकाश को प्राप्त करने का प्रयास करें। वह ज्ञान जो अस्तित्व को प्रकाशित करता है।
ध्यान आश्रम से जुड़े योगी अश्विनी का कहना है कि हम अक्सर लक्ष्मी पूजन को धन प्राप्ति का माध्यम मानते हैं, परंतु वास्तविक दिवाली तब होती है जब हम कहते हैं, “मुझे धन दो और उससे विरक्त कर दो।” क्योंकि जो भौतिक है, वह नश्वर है, और उसके जाने पर पीड़ा अनिवार्य है। सुख देने वाली वस्तुएँ ही अंततः दुख का कारण बनती हैं। यही माया का जाल है जो हमें बांधती है और सच्चे आनंद से दूर रखती है।
दिवाली की रात ऊर्जा का अद्भुत संगम होती है। यही वह समय है जब साधना का फल हजार गुना बढ़ जाता है। सनातन क्रिया में बताए गए देवी मंत्र का जप, गुरु के मार्गदर्शन में, न केवल समृद्धि देता है बल्कि माया से मुक्ति का मार्ग भी खोलता है।
इस दिवाली, केवल दीप जलाएं नहीं, स्वयं को भी प्रज्वलित करें। मांगे, पर देने की भावना के साथ। आनंद लें, पर विरक्ति की प्रार्थना के साथ। तभी आप सच में अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ पाएंगे। आप सभी इस दिवाली शक्ति की पूरी क्षमता को महसूस करें… आशीर्वाद।ध्यान फाउंडेशन एक विश्वव्यापी दिवाली यज्ञ का आयोजन भी कर रहा है।