जैसे पहले ही निवाले में मक्खी मिली हो

Like a fly has been found in the first bite

मनोज कुमार मिश्र

27 साल के लंबे वनवास के बाद दिल्ली की सत्ता में आई भाजपा की सरकार ने अपने दो फैसले वापस लेकर गलत संकेत दे दिए। करीब पांच महीने पहले शालीमार बाग सीट से विधायक बनी रेखा गुप्ता की अगुवाई में बनी दिल्ली सरकार ने अपने चुनावी वायदों पर काम करना शुरू को कर दिया लेकिन पेट्रोल के 15 साल और डीजल के 10 साल पुराने वाहनों को ईंधन न देने के फैसले को तीन दिन में और मुख्यमंत्री की सरकारी कोठी के सजावट पर 60 लाख रुपए खर्च करने के प्रस्ताव को वापस लेकर सही संकेत नहीं दिए। बड़ा सवाल तो यह है कि शुरुवात में ही ऐसे फैसले क्यों लिए जिसे आनन-फानन में वापस लेने पड़े। इस चक्कर में इस सरकार ने एक लाख करोड़ का बजट पास करके जो ठोस काम शुरू किए हैं, उसका असर भी कम दिख रहा है। फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने चुनाव में वायदों की झड़ी लगा दी थी। उनमें से कुछ तो कठिन और लंबे समय में पूरे होने वाले है। जो पैसे से और कम समय में होने वाले हैं, उनपर काम होता दिखना चाहिए।

कायदे में दिल्ली की भाजपा सरकार को चुनावी जीत के जश्न से बाहर निकलकर ठोस काम दिखाने का समय आ गया है। पहले की सरकारों पर दोषारोपण करने के बजाए आम लोगों को इस सरकार से ज्यादा उम्मीदें है। बिजली, पानी, अनधिकृत कालोनी, यमुना का सफाई, प्रदूषण, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, साफ-सफाई, अस्पताल, सड़कें और आम लोगों के जीवन स्तर को सुधारने इत्यादि के ठोस प्रयास का सभी को इस सरकार से उम्मीदें हैं। केवल मोहल्ला क्लीनिक और मोहल्ला में चल रही बसों का नाम बदलने से कुछ नहीं बदलने वाला नहीं है। नगर निगम से केन्द्र की सरकार तक यानि ट्रीपल इंजन की सरकार अगर सोच-समझ तक फैसला नहीं ले पा रही है, तो कहीं समझ या अनुभव की कमी है। अगर उसे शुरूवात में ही अपने फैसले बदलने पड़ रहे हैं तो सरकार के कामकाज पर न केवल विपक्ष हमलावर होगा बल्कि कमजोर होते विपक्षी दलों को मजबूत होने का अवसर मिल जाएगा। दस साल से दिल्ली पर राज कर रही आम आदमी पार्टी(आप) को भ्रष्टाचार के आरोप में कटघरे में खड़ा करके ही भाजपा केवल दो फीसदी नोट के अंतर से दिल्ली की सत्ता में आ पाई थी। आप और उसके नेता अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत(यूएसपी) ईमानदारी थी। शराब घोटाले में उनके और उनके कई बड़े नेताओं के जेल जाने और अपनी सरकारी कोठी को सजाने में 55 करोड़ रुपये खर्च करने के आरोप लगने के बाद तो उन पर और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लग गई और आखिरकार उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री और मंत्री आदि आम तौर से नई दिल्ली यानि लूटियन दिल्ली और दिल्ली के दूसरे महंगे इलाके सिविल लाइन्स में रहते आए हैं। अब तक किसी मुख्यमंत्री या मंत्री ने एक साथ रहने के लिए दो कोठी आवंटित नहीं करवाई। मुख्यमंत्री बनने के चार महीने वाद रेखा गुप्ता ने सिविल लाइंस में राज निवास के पास दो कोठी आवंटित करवाई। एक आवास के लिए और दूसरा आवासीय दफ्तर के लिए। इतना ही नहीं उसके सजावट के लिए 60 लाख रुपए का टेंडर पास हुआ जो हाथ के हाथ सार्वजनिक हो गया। उसका ब्यौरा सार्वजनिक होते ही हंगामा खड़ा हो गया। 14 सीसीटीवी कैमरे,14 एसी, पांच बड़े टीवी, झूमर, दो यूपीएस और बिजली के उपकरण आदि न जाने क्या-क्या। एक तो यह समझ से परे है कि कुछ ही दूरी पर दिल्ली सचिवालय और दिल्ली विधानसभा होने के बावजूद उन्हें पहले के मुख्यमंत्रियों से अलग दो कोठी क्यों चाहिए। दोनों जगह मुख्यमंत्री का भव्य दफ्तर है। अगर आवास की साज सज्जा होनी थी तो उसे बनने से पहले सार्वजनिक क्यों किया गया। खुद अपने मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास पर 55 करोड़ रुपए खर्च करवाने वाले आप की सरकार के नेता 60 लाख के खर्च पर सवाल उठा कर आप के मुख्यमंत्री के शीशमहल के जबाब में भाजपा के मुख्यमंत्री का माया महल मुद्दा बनाने की कोशिश की। सरकार को कुछ ही दिन में काम शुरू होने से पहले ही उस टेंडर को रद्द करना पड़ा। शीशमहल और माया महल के चक्कर में दिल्ली सचिवालय में पिछली सरकार ने मुख्यमंत्री के दफ्तर पर फूहड़ तरीके से करोड़ों खर्च किए, वह मुद्दा चर्चा में ही नहीं आ पाया। 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी शीला दीक्षित ने पूरे दिल्ली सचिवालय और खास करके तीसरी मंजिल के अपने दफ्तर को सुरुचिपूर्ण तरीके से आकर्षक बनवाया था।

इससे भी अजूबा अदालती आदेश से दिल्ली की सड़कों से दस साल पुराने डीजल वाहनों और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़क से हटाने का अभियान के साथ हुआ। यह अदालती फैसला काफी पुराना है। आप की केजरीवाल सरकार ने इस पर अमल करने के लिए समय-सीमा पूरा करने वाले वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए उन्हें ईंधन न देने की कवायत शुरु की। पायलट प्रोजेक्ट के तहत चार सौ पेट्रोल पंपों पर कैमरे लगवाए जिनपर ए आई के माध्यम से सीधे परिवहन विभाग निगरानी रखने वाला था। यह अजीब संयोग है कि जो काम आप सरकार नहीं करवा पाई वह भाजपा करवाने लगी। भाजपा सरकार के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ऐसे उत्साह से लगे कि लगा कि कोई जंग जीतने वाले हैं। इस पर अमल होते ही विरोध शुरू हो गया। लागू करवाने की कवायत करवाने वाली आप ही सबसे ज्यादा इसके खिलाफ अभियान चलाया। भाजपा के नेता यह कह भी नहीं पाए कि यह तो आप सरकार ने शुरू किया था। भारी विरोध और किरकिरी होने के बाद इसे नवंबर तक के लिए टाल दिया गया।

चुनाव प्रचार में भाजपा के नेताओं ने बड़े-बड़े वायदे किए थे। उन वायदों में एक यह भी वायदा था कि बिना वैकल्पित मकान दिए कोई झुग्गी तोड़ी नहीं जाएगी। यह वायदा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि दिल्ली का राजनीतिक समीकरण काफी बदल गया है। बगैर अपना वोट बैंक बढाए न तो भाजपा की दिल्ली में लंबे समय तक सरकार चल पाएगी और न ही आप जैसे केवल नारों और आधारहीन वायदों पर चुनाव जीतने वाले दलों की स्थाई विदाई हो पाएगी। इस चुनाव में भले ही भाजपा को 70 में से 48 सीटें मिली लेकिन वोट का अंतर तो दो ही फीसद का रहा। अभी तक झुग्गियों के मामले में इसके ठीक विपरित हो रहा है। बड़े पैमाने पर बिना वैकल्पिक प्लाट या मकान दिए झुग्गी तोड़ी जा रही है।

यह सही है कि अपने वायदे के मुताबिक दिल्ली की नई सरकार की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में दिल्ली में भी आयुष्मान योजना लागू करने का फैसला लिया गया। बताया गया कि अब तक तीन लाख दस हजार पात्र लोगों का इस योजना में पंजीकरण कर दिया गया है। महिलाओं को पेंशन देना यानि महिला समृधि योजना के लिए 5100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, पात्र लोगों को चिह्नित करने का काम शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री ने यह संख्या बढ़ाने का वायदा किया। काफी सड़कों के मरम्मत का काम पूरा हो गया। दिल्ली की सड़कों को पूरी तरह से गढ्ढा मुक्त करने में अभी समय लगेगा। दिल्ली को वायु प्रदूषण से मुक्त करने के लिए वायु प्रदूषण शमन योजना बनाई गई है। सरकार का फोकस दिल्ली की साफ सफाई पर है। अभी तक यह धरातल पर नहीं उतरा है। इसी 22 जुलाई को मंत्रिमंडल ने कई फैसले लिए। मेधावी छात्र-छात्राओं को सरकार लैपटाप देगी। ओलंपिक आदि जीतने वाले खिलाड़ियों की पुरस्कार राशि बढ़ाई गई। कई और फैसले हुए हैं और हर रोज हो भी रहे हैं। जरुरत उस पर अमल करने की है। वैसे अभी भी यह कहा जा सकता है कि अभी बजट पास होने और उसके आवंटन के बाद समय कम मिला है।

आम आदमी पार्टी(आप) के हारने के कई कारणों में एक काम यह माना जाता है कि उसकी सरकार ने दिल्ली की मूल ढांचे की बेहतरी के लिए ठोस काम नहीं किए। लेकिन उसके कुछ अच्छे कामों में से एक काम निजी स्कूलों के फीस पर नियंत्रण रखना था। आप सरकार जाते ही निजी स्कूलों ने बेहिसाब फीस बढ़ा दिए। भाजपा सरकार को इसके विरोध में सड़कों पर उतरे लोगों को शांत करने के लिए मजबूरन कठोर कदम उठाने पड़े। सरकार फीस रेगुलेटरी बिल लेकर आई। तब जाकर कुछ माहौल बदला। यह सरकार को सोचना भी होगा कि सरकार बनते ही ऐसा क्यों हुआ और आगे किसी और मामले में ऐसा न हो। कुछ काम निश्चित रूप से दिल्ली की ठोस बुनियाद के लिए शुरू हुए हैं। सीएम श्री योजना के तहत 70 विश्वस्तरीय स्कूल खोला जाएगा और आप सरकार के 500 मोहल्ला क्लीनिक के बदले 1100 से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जाएंगे। इसकी शुरुवात भी हो गई है। लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती तो दिल्ली में अपने काम से बड़ी लकीर खींचने की है। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानि 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चलते पांच साल में भाजपा को तीन मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 1998 में दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद इस बार वह सत्ता में लौट पाई है। इस बार भाजपा बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ी और 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 45.86 फीसद वोट और 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। दल साल से दिल्ली में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी(आप) का वैसे तो वोट औसत काफी(करीब दस फीसद) घटा लेकिन भाजपा के मुकाबले दो फीसद कम यानि 43.57 फीसद पर रह गई। उसकी सीटें केवल 22 रह गई।

अभी आप की सरकार पंजाब में है और उसके विधायक गुजरात में भी हैं। इसी के चलते आप अपने स्थापना के पांच साल में ही राष्ट्रीय पार्टी बन गई थी। चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल काफी संभलकर बोल रहे थे। हाल ही उप चुनाव में गुजरात में एक और पंजाब में एक सीट जितने के बाद तो वे पहले वाले रंग में दिखने लगे हैं। अब ले वापसी का दावा करने लगे हैं। केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेता शराब घोटाले समेत कई मामले चल रहे हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली है। यानि आने वाले समय में उनको या मनीष सिसोदिया आदि को जेल जाना पड़ सकता है। बावजूद इसके अगर भाजपा सरकार ठोस काम करने के बजाए आत्म मुग्ध रही तो भाजपा के लिए लंबी पारी खेलना कठिन होगा। दिल्ली के लोगों को इस सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं और देश भर की निगाहें भाजपा की इकलौती महिला मुख्यमंत्री पर टिकी हुई है।