सीमाओं की शेरनियाँ

Lionesses of the Borders

वे उठीं जब घने अंधेरों से,
ध्वंस की छाया से, मरुस्थल की लहरों से,
हर कण में थी बिजली की चमक,
हर सांस में था गर्जन का तड़प।

सरहदों की सलाखों पर बसी,
उनकी आँखों में बसी थी ध्रुव तारा की रोशनी,
उनके कदमों में बंधी थी,
धरती की धड़कन, पर्वतों की अटलता।

वे बसीं उस कोहरे में,
जहाँ दुश्मन की सांसें कांपें,
जहाँ बारूदी सुरंगें भी बिछ जाएं,
उनके हौसलों के आगे।

रक्त से सींचा है जिन्होंने इतिहास,
वो लहरें बनीं अभेद्य दुर्ग,
नरम दिलों में फौलाद उगा कर,
हर बार खड़ी हैं वे, एक नई परिभाषा।

सीमाओं की शेरनियाँ हैं वे,
धरती की हिम्मत, आसमान की ऊंचाई,
हर बार लिखेंगी वे नया इतिहास,
जब तक सांस है, जब तक तिरंगा है।

  • प्रियंका सौरभ