शिशिर शुक्ला
हाल ही में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के द्वारा जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में सलाल हेमना ब्लॉक में 59 लाख टन लिथियम के अनुमानित भंडार का पता लगाया गया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में कर्नाटक के मंड्या जिले के मार्लागाला-अल्लापटना क्षेत्र में 1600 टन लिथियम अयस्क की खोज की गई थी, यद्यपि मात्रा के हिसाब से इसका आकार अपेक्षाकृत बहुत कम था। भारत में प्रथम बार जम्मू कश्मीर में ही इतनी बड़ी मात्रा में लिथियम का भंडार प्राप्त हुआ है। आंकड़ों के अनुसार चिली व ऑस्ट्रेलिया के बाद यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा भंडार हो सकता है। लिथियम धातु जोकि अपने विशिष्ट गुणों, लक्षणों एवं उपयोगों के कारण सभी तत्वों में एक अद्वितीय स्थान रखती है, भविष्य के लिए आशा की एक दीप्तिमान किरण साबित हो सकती है। वर्तमान में वैश्विक स्थिति का यदि अवलोकन किया जाए तो 93 लाख टन क्षमता के साथ चिली लिथियम भंडार के मामले में पूरे संसार में अव्वल है। इसके बाद 63 लाख टन, 27 लाख टन एवं 20 लाख टन के भंडारों के साथ ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना एवं चीन क्रमशः दूसरे, तीसरे एवं चौथे स्थानों पर काबिज हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत अपनी कुल आवश्यकता का 96 प्रतिशत लिथियम आयात करता है। लिथियम के आयात पर 2020-21 में 8984 करोड़ एवं 2021-22 में 13838 करोड रुपए का व्यय हुआ है। एक टन लिथियम की कीमत 57.36 लाख रुपए है। इस दृष्टि से देखा जाए तो 3384 अरब रुपये की कीमत का लिथियम भंडार भारत के जम्मू कश्मीर में पाया गया है।
आखिरकार लिथियम क्यों इतना महत्वपूर्ण है, इसके लिए हमें लिथियम की विशेषताओं पर एक नजर अवश्य डालनी चाहिए। लिथियम अब तक ज्ञात धातुओं में सबसे हल्की धातु है। बहुत नरम एवं चांदी जैसे सफेद रंग वाली इस धातु को इसके महत्वपूर्ण उपयोगों के कारण “व्हाइट गोल्ड” की संज्ञा भी दी जाती है। लिथियम का सर्वाधिक उपयोग रिचार्जेबल बैटरी के निर्माण में किया जाता है। लिथियम आयन बैटरी, लेड-एसिड बैटरी अथवा निकल मेटल हाइड्राइड युक्त बैटरी की तुलना में सस्ती, दक्ष एवं लंबी आयु वाली होती है। इन बैटरियों का उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप एवं इलेक्ट्रिक वाहनों में किया जाता है। इलेक्ट्रिक कारों की कुल कीमत का 45 प्रतिशत हिस्सेदारी बैटरी पैक की ही होती है। वर्तमान में तेजी से बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं के कारण पेट्रोल व डीजल जैसे ईंधनों पर निर्भरता को कम करना नितांत आवश्यक हो गया है। यह निर्भरता केवल तभी कम हो सकती है जबकि संपूर्ण विश्व में हरित ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक से अधिक हो। एक आंकड़े के अनुसार दुनिया के कुल लिथियम उत्पादन का 74 प्रतिशत बैटरी में ही इस्तेमाल किया जाता है। यदि हमें अपने भविष्य को प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन के गम्भीर संकट से बचाना है तो हर हालत में हमें ग्रीन एनर्जी अर्थात विद्युत चालित वाहनों पर निर्भरता बढ़ानी होगी। बैटरी के अतिरिक्त लिथियम का उपयोग विशिष्ट प्रकार के कांच के उत्पादन में, स्नेहकों एवं विभिन्न प्रकार के बहुलकों के उत्पादन में भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त हृदय में प्रयुक्त पेसमेकर हेतु नॉन-रिचार्जेबल बैटरी के निर्माण में, नाभिकीय रिएक्टर में शीतलक के रूप में, विभिन्न उपयोगी मिश्र धातुओं के निर्माण में, मैग्नीशियम के साथ मिश्रित करके कवच बनाने में, चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने में, औद्योगिक स्तर पर सुखाने वाली प्रणाली में, कृत्रिम रबर के निर्माण में तथा मूड स्विंग एवं बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियों के इलाज में भी लिथियम का महत्वपूर्ण योगदान है।
बेशक जम्मू-कश्मीर में लिथियम का भंडार मिलने से उभरती हुई प्रौद्योगिकी के विकास हेतु उम्मीद की एक नवीन किरण जगी है। इकोफ्रेंडली इंडिया के स्वप्न को साकार करने के प्रयत्नों एवं देश की अर्थव्यवस्था के विकास को इससे एक नवीन गति प्राप्त होगी। अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ-साथ लिथियम भंडार वाले क्षेत्रों में प्रत्येक स्तर के कारीगरों एवं श्रमिकों को रोजगार के नवीन अवसर भी प्राप्त होंगे। किंतु केवल भंडार का अनुमान लग जाना, ठीक उसी तरह है जैसे मंजिल तक जाने वाले मार्ग का पता लगना। मंजिल तक पहुंचने में अभी अनेक चुनौतियों का सामना करके उन पर विजय पाना शेष है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 6.3 मिलियन टन लिथियम भंडार वाले ऑस्ट्रेलिया में लिथियम का उत्पादन केवल 0.6 मिलियन टन होता है। इसी प्रकार 9.3 मिलियन टन लिथियम के भंडार से युक्त चिली में इसका उत्पादन महज 0.39 मिलियन टन होता है। इसका कारण यह है कि लिथियम का खनन बहुत ही कठिन व दुष्कर है। इसमें अत्यधिक लागत एवं नवीनतम तकनीकी के साथ साथ अनेक व्यवस्थाओं की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही साथ इस प्रक्रिया के अनेक पार्श्व प्रभाव हमारे विभिन्न महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों, जैसे-जल पर पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त लिथियम आयन बैटरी के द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव एवं खराब बैटरी की रिसाइकिलिंग इत्यादि के बारे में समुचित रणनीति बनाने की आवश्यकता है। सरकार का यह लक्ष्य है कि 2030 तक भारत में 30 प्रतिशत निजी वाहन, 70 प्रतिशत कामर्शियल वाहन एवं 80 प्रतिशत दोपहिया वाहन इलेक्ट्रिक हों। इतना अवश्य है कि यदि एक कुशल रणनीति के तहत काम किया जाए तो सभी चुनौतियों का निस्तारण करते हुए 2070 तक एनवायरमेंट फ्रेंडली उत्सर्जन अथवा नेटजीरो के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। निस्संदेह लिथियम के भंडार के मिलने से दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता कम होगी एवं वैश्विक मानचित्र पर भारत अपनी “इकोफ्रेंडली” छवि को निर्मित करने में सफल हो सकेगा।