सीता राम शर्मा ” चेतन “
शीर्षक पढ़ने, कहने, सुनने में बुरा लग सकता है । लगना भी चाहिए, क्योंकि जो बात लिखने में ही बुरी लग रही है उसे चाहे जिस रुप में उपयोग की जाए बूरी ही लगेगी । यूं तो भ्रष्टाचार पूरे भारत में है । पिछले कुछ वर्षों में इसमें थोड़ा सुधार अवश्य आया है पर सच्चाई यही है कि भ्रष्टाचार आज भी लगभग पूरे भारत में निरंकुश स्थिति में है । सुधार सिर्फ वहीं है, जहां सरकार के द्वारा गरीब और जरूरतमंद आबादी को सहयोग राशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजी जाती है या फिर पूूरी ईमानदारी से कमाई करने वाले लोगों से कर या अन्य व्यय के रूपों में वसूली जाती हो । बाकी बात विकास योजनाओं में खर्च की हो, देश के आम नागरिक की जरूरत से जुड़े उधोग धंधों और उत्पादों के निर्माण व्यापार की हो, या फिर देश के प्राकृतिक संसाधन रुपी खदानों और खजानों की, गुप्त और सुक्ष्म सुराखों से बेतहाशा राजनीतिक प्रशासनिक भ्रष्टाचार आज भी जारी है । रही बात जनता के सरकारी कार्यालयों से जुड़े कार्यों की, तो डिजिटल होने के बावजूद आधुनिक डिजिटल तकनीकी संसाधनों को चलाने वाले लोग आज भी हर स्तर पर बेखौफ होकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और आम आदमी उससे हैरान परेशान है । उसमें तिल-तिल कर मर रहे हैं । परेशान हो रहे हैं । हां, जहां सत्ता थोड़ी ईमानदार है वहां परेशानी कम है और जहां सत्ता पूरी तरह खुद को बचाने, चलाने के साथ अपने प्रत्यक्ष दिखाई देते अंधकारमय भविष्य से जूझने, जूझते रहने की आशंकाओं से भरी है, वह अभी नहीं तो कभी नहीं के अज्ञात भय का शिकार होकर बेतहाशा भ्रष्टाचार करने और जी भर कर लूटने की अनीति पर अंधी, बहरी हुई भागी चली जा रही है ! हां, घोर अनैतिकता की नैतिकता वाले इस दौर में हर थोड़ी या बहुत, छोटी या बड़ी भ्रष्टाचारी ताकत के हाथ में मानसिक और षड्यंत्रकारी क्षमतानुसार विकास का छोटा-बड़ा झंडा और मुंह में नकली ईमानदारी का असली लाउडस्पीकर जरूर लगा है ।
फिलहाल बात झारखंड के वर्तमान की, तो यह राज्य पक्ष में विपक्ष और विपक्ष के पक्ष की चक्की में कुछ इस तरह पीस रहा है कि आम जनता के लिए यह सोचना समझना मुश्किल है कि हर कदम पर छाई भ्रष्टाचार की गहराई और नौकरशाही की तानाशाही की शिकायत करें तो किससे करें ? सत्य और न्याय के लिए संवैधानिक रुप से जो सुनने, समझने और कुछ करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार है वह खुद भ्रष्टाचार और अस्थिरता के भय से उतना ही ज्यादा भयभीत है ! फिर ऐसी विषम परिस्थितियों में जनता की जो स्वाभाविक दुर्गति होती है, वह आज झारखंड की जनता प्रति दिन झेल रही है । मैंने एक बात कई बार कही है कि ज्यादा भ्रष्टाचार के लिए ज्यादा योजनाओं का होना या लाना जरुरी होता है । झारखंड में योजनाओं और घोषणाओं का यह कुत्सित खेल रघुवर सरकार में भी खूब हुआ और अब भी जारी है । अंतर सिर्फ इतना है कि रघुवर राज में यह जन में जीवन सुरक्षा के भाव के साथ हो रहा था और अब वह उसके अभाव में जारी है । रघुवर राज में सत्ता और शासन का शीर्ष हावी था अब सब प्रभावी हैं । झारखंड की दुर्दिन भ्रष्ट व्यवस्था का एक ताजा उदाहरण देते हुए बता दूं कि राजधानी से लेकर गांवों के अंचलों तक में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है । अर्थात यदि आपको भूमि संबंधित किसी आवश्यक कार्य का निष्पादन कराना है तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री में तैरना और जीना आपको आना चाहिए वर्ना आपको उसमें डूबाने का पूरा प्रयास होगा । हालांकि इन दिनों राज्य में आए दिन कुछ अंचलाधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने के समाचार आपको अकसर सुनने पढ़ने को मिलते होंगे । पर सच मानिए, इनसे खुश होने की जरूरत बिल्कुल नहीं है । ये तो उन बेचारों का चारित्रिक दोष है कि वे भ्रष्टाचार की जिस गंगौत्री में स्नान कर रहे होते हैं, उसमें रहने वाले बड़े मगरमच्छों की अनदेखी करने या फिर उनकी आवश्यक सेवा ना करने की बड़ी भूल का घोर अपराध करते हैं । वर्ना उनको उनके भ्रष्टाचार के लिए सजा पाने या लज्जित होने की बजाय प्रमोशन और सम्मान से सुसज्जित होने का अवसर अवश्य मिलता । अंत में बताता चलूं एक ताजा घटनाक्रम जिसमें झारखंड के लातेहार के बारियातु अंचल में एक व्यक्ति ने अपने बुजुर्ग माता पिता से ली गई जमीन के नामांतरण का ऑनलाइन आवेदन दिया था । चुकि जमीन उनके माता-पिता की निजी खरीद और दखल वाली जमीन थी इसलिए उसमें वैधानिक रूप से उस जमीन को किसी को भी बेचने या देने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं थी और ना ही वैधानिक रूप से इसके लिए उनके किसी पुत्र या पुत्री को भी कोई आपत्ति दर्ज करने का अधिकार दिया जा सकता था ।
बावजूद इसके उस आवेदन पर उस बुजुर्ग माता-पिता के नालायक और दुष्ट पुत्रों ने, जो उन्हें पिछले कई महिनों से निरंतर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दे रहे हैं, आपत्ति दर्ज की और उसे उस अंचल के अंचलाधिकारी और कर्मचारी ने स्वीकार भी कर लिया । कई बार आग्रह करने के बाद अंचलाधिकारी महोदया ने त्रुटिपूर्ण नोटिस भेजकर दोनों को सुनवाई के लिए भी बुलाया । आश्चर्य की बात यह कि उन नालायक पुत्रों ने अंचलाधिकारी महोदया के समक्ष भी अपने माता-पिता को अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । सुनवाई के दौरान उस महोदया ने उन्हें उनके उस दुर्व्यवहार के लिए कई बार रोका-टोका और डांटा भी और अंततः उनके पक्ष में ही दिखाई दी पर घोर आश्चर्य यह कि उनके जाने के बाद कई दिन कई बार फोन करने पर अग्रेतर कार्रवाई करते हुए उन्होंने आवेदन से आपत्ति तो हटाई पर एक दिन बाद ही फिर से आपत्ति दर्ज कर दी ! आवेदक को सूचना मिली कि उसका भाई निरंतर अंचल कार्यालय जाकर और फिर उस क्षेत्र के विधायक प्रतिनिधि से मिलकर ऐसा कराने में सफल हुआ है ! अफसोस यह कि आवेदक ने जब अंचलाधिकारी के इस संदेहास्पद क्रियाकलाप का मैसेज उन्हें किया तो प्रथम दृष्टया पूर्ण रुपेण गलत सिद्ध हो चुकी अंचलाधिकारी महोदया ने ताव खाते हुए आवेदन को ही रिजेक्ट कर दिया ! अब आवेदक निरंतर अपनी शिकायत जिले के उच्च अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक को कर रहा है पर ट्विटर पर शिकायत करने पर भी जनता के लिए काम करने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया तक चुप हैं ! आवेदक चीख-चीख कर बता रहा है कि मुख्यमंत्री महोदय उक्त अंचल के कर्मचारी से वहां की जनता बहुत पहले से त्रस्त है । वह भ्रष्ट है और अपनी गलत कार्यशैली के कारण ही पहले लगभग दो साल तक सस्पेंड भी हो चुका है । उसके खिलाफ मेरे पास भी कई शिकायतें रिकार्ड में है, सुनिए और सख्त कार्रवाई कीजिए पर मुख्यमंत्रीजी चुप हैं । यह तो खैरियत है कि उन्होंने अंचलाधिकारी महोदया की तरह खुद और अपनी सरकार के उपर उठाए जाने वाले सवालों से क्रोधित होकर आवेदक तथा दया और न्याय के याचक पर कोई कार्रवाई नहीं करवाई है । निकट भविष्य में हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात भी नहीं । वर्तमान राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से सच्चाई और विरोध के साथ न्याय की बात करना वैधानिक ना सही व्यक्तिगत अपराध तो है ही । फिर अभी तो स्थिति भी यही है कि – झारखंड में भ्रष्टाचार जिंदाबाद ।