हिंदुत्व को बचाने में भगवान झुलेलाल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है

Lord Jhulelal has played an important role in saving Hinduism

अशोक भाटिया

झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें ‘इष्ट देव’ कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे। “चेट्रीचंडु” जिसे झूलेलाल जयंती के नाम से भी जाना जाता है, यह सिंधी नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह तिथि हिंदू पंचांग पर आधारित है और चैत्र शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाई जाती है। (सिंधी भाषा में चैत्र को चेट्र कहते हैं) चेट्रीचंडु साईं उडेरोलाल का जन्मदिन भी है, जिन्हें झूलेलाल के नाम से जाना जाता है जो भगवान विष्णु के वरुणवतार माने जाते हैं।

इन्ही झूलेलाल जी के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध में मुग़ल शासकों द्वारा अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगे थे जिसके कारण सिंधी समाज ने कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 8 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि सिंध में डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबलेनमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है।

सिंध प्रान्त से भारत में आकर शहर – शहर में बसे सिंधी समुदाय के लोगों द्वारा झूलेलाल जी की पूजा की जाती हैं। ये उनके इष्ट देव हैं। सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि के महापुरुष के रूप में इन्हें मान्यता दी गुई हैं। ताहिरी, छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत आदि इस दिन बनाते हैं तथा चेटीचंड की शाम को गणेश विसर्जन की तरह बहिराणा साहिब का विसर्जन किया जाता हैं। भगवान झूलेलाल जी का जन्म चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को हुआ था, इनके जन्म के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

मगर इन सभी में बहुत सी समानताएं भी हैं यहां आपकों भगवान झूलेलाल जी की सर्वमान्य कथा बता रहे हैं जिन पर अधि कतर लोगों का विश्वास हैं। बात सिंध इलाके की हैं 11 वीं सदी में वहां मिरक शाह नाम का शासक हुआ करता था। वह प्रजा का शासक कम अपनी मनमानी करने वाला जनता को तरह तरह की शारीरिक यातनाएं देने में आनन्द खोजने वाला अप्रिय एवं अत्याचारी था। उसके लिए मानवीय मूल्य तथा व्यक्ति जीवन गरिमा व धर्म कुछ भी मायने नहीं रखते थे।

दिन ब दिन बढ़ते शाह के जुल्मों से सिंध की प्रजा तंग आ चुकी थी। राजतन्त्र में वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। उनके पास पुकार का एक ही जरिया था वह था ईश्वर से मदद की गुहार। राज्य की जनता सिन्धु के तट पर एकत्रित होकर भगवान से इस मुश्किल से निकालने के लिए प्रार्थना करने लगे। वरुणदेव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मछली पर सवार होकर लोगों को दर्शन दिया। तथा आकाशवाणी हुई कि हे भक्तों तुम्हारे दुखों का हरण करने के लिए मैं ठाकुर रतनराय के घर माँ देवकी के घर जन्म लूंगा तथा आपके जुल्मों को खत्म करूंगा ।

चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 के दिन नसरपुर में मां देवकी पिता रतनराय के घर चमत्कारी बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उदयचंद रखा गया। जब मुस्लिम शासक को यह खबर मिली तो उसने अपने सेनापति को इस बालक का वध करने के लिए भेजा। सेनापति अपनी पूरी सेना के साथ नसरपुर के रतनराय जी के यहां पहुचकर बालक उदयचंद तक पहुचने का प्रयास किया तो झूलेलाल जी ने अपनी दैवीय शक्ति से मुस्लिम शासक के राजमहल में आग लगा दी तथा उसकी फौज को पंगु बना दिया।

जब मुस्लिम शासक को किसी ईश्वरीय शक्ति के ताकत का अंदाजा हुआ तो वह माँ देवकी के घर गया तथा झूलेलाल जी के कदमों में गिरकर अपने पापों की क्षमा मांगने लगा। इस तरह अल्पायु में ही झूले लाल जी ने आमजन में सुरक्षा का भरोसा दिलाया तथा उन्हें निडर होकर अपना कर्म करने के लिए प्रेरित किया। इस पर मुस्लिम शासक के द्वारा हाथ जोड़कर के यह कहा गया कि है पीरों के पीर आपके चरणों में मेरा बारंबार नमस्कार है और इस प्रकार से भगवान झूलेलाल के चमत्कार से हिंदू जनता को मुस्लिम शासक के अत्याचार से आजादी मिली।

गौरतलब है कि बालक उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) चमत्कार कर रहा था। नसरपुर के लोग पूर्णतः आश्वस्त थे कि उन्हें बचाने साक्षात ईश्वर ने जन्म लिया है। उदेरोलाल ने गोरखनाथ से “अलख निरंजन” का गुरु मंत्र भी प्राप्त किया था ।उदेरोलाल की सौतेली माँ उन्हें फल देकर बेचने भेजती थी। उदेरोलाल बाजार जाने के बजाय सिंधु तट पर जाकर उन्हें बुजुर्गों, बच्चों, भिक्षा मांगने वालों और गरीबों को दे देते थे। वहीं उसी खाली बक्से को लेकर वह सिंधु में डुबकी लगाते और जब निकलते तो वह बक्सा उन्नत किस्म के चावल से भरा होता जिसे ले जाकर वह अपनी माँ को दे देते।रोज-रोज उन्नत किस्म के चाँवल को देखकर एक दिन उनकी मां ने उनके पिता को भी साथ भेजा। जब रतनचंद ने छुपकर उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) का यह चमत्कार देखा तो उन्होंने झुककर उन्हें प्रणाम किया और उन्हें साक्षात ईश्वर के रूप में स्वीकार किया।

:दूसरी तरफ मुस्लिम शासक मिरखशाह के ऊपर मौलवियों द्वारा लगातार हिंदुओं को इस्लाम में लाने का दबाव डाला जा रहा था। उन्होंने उसे अल्टीमेटम दिया। “काफिरों को इस्लाम में बदलने का आदेश दिया।” मौलवियों की बात और अपने इस्लामिक अहंकार में मिरखशाह ने उदेरोलाल से खुद मिलने का फैसला किया। उसने अहिरियो को मिलने की व्यवस्था करने को कहा।अहिरियो, जो इस बीच में जलदेवता का भक्त बन गया था, सिंधु के तट पर गया और जल देवता से अपने बचाव में आने की विनती की। अहीरियो ने एक बूढ़े आदमी को देखा, जिसमें एक सफेद दाढ़ी थी, जो एक मछली पर तैर रहा था। अहिरियो का सिर आराधना में झुका और उन्होंने समझा कि जल देवता उदेरोलाल हैं। फिर अहिरियो ने एक घोड़े पर उदेरोलाल को छलांग लगाते हुए देखा और और उदेरोलाल एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक झंडा लिए हुए निकल गए।

मिरखशाह जब उदेरोलाल जी के सामने आया तो उन्हें भगवान झूलेलाल (उदेरोलाल) ने ईश्वर का मतलब समझाया। लेकिन कट्टरपंथी मौलवियों की बातें और इस्लामिक कट्टरपंथ लिए बैठा मिरखशाह उन सभी बातों को अनदेखा कर अपने सैनिकों को झूलेलाल जी गिरफ्तार करने का आदेश देता है।जैसे ही सैनिक आगे बढ़े वैसे ही पानी की बड़ी बड़ी लहरें आंगन को चीरती हुई आगे आ गई। आग ने पूरे महल को घेर लिया और सब कुछ जलना शुरू हो गया। सभी भागने के मार्ग बंद हो गए। उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) ने फिर कहा कि “मिरखशाह इसे खत्म करो! आखिर तुम्हारे और मेरे भगवान एक हैं तो फिर मेरे लोगों को तुमने क्यों परेशान किया ?”मिरखशाह घबरा गया और उसने झूलेलाल जी से विनती की, “मेरे भगवान, मुझे अपनी मूर्खता का एहसास है। कृपया मुझे और मेरे दरबारियों को बचा लो।”

इसके बाद सारी जगह पानी की बौछार आई और आग बुझ गई। मिरखशाह ने सम्मानपूर्वक नमन किया और हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए सहमत हुआ।इससे पहले कि वे तितर-बितर होते, उडेरोलाल ने हिंदुओं से कहा कि वे उन्हें प्रकाश और पानी का अवतार समझें। उन्होंने एक मंदिर बनाने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा “मंदिर में एक मोमबत्ती जलाओ और हमेशा पवित्र घूंट के लिए पानी उपलब्ध रखो।”यहीं उदेरोलाल ने अपने चचेरे भाई पगड़ को मंदिर का पहला ठाकुर (पुजारी) नियुक्त किया। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को सात सिंबॉलिक चीजें दी। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को मंदिरों के निर्माण और पवित्र कार्य को जारी रखने का संदेश दिया।

भगवान झूलेलाल ने अपने चमत्कारिक जन्म और जीवन से ना सिर्फ सिंधी हिंदुओं के जान की रक्षा की बल्कि हिन्दू धर्म को भी बचाये रखा। मिरखशाह जैसे ना जाने कितने इस्लामिक कट्टरपंथी आये और धर्मांतरण का खूनी खेल खेला लेकिन भगवान झूलेलाल की वजह से सिंध में एक दौर में यह नहीं हो पाया। भगवान झूलेलाल आज भी सिंधी समाज के एकजुटता, ताकत और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र हैं।भगवान झूलेलाल ने अपने भक्तों से कहा कि मेरा वास्तविक रूप जल एवं ज्योति ही है। इसके बिना संसार जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने समभाव से सभी को गले लगाया तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हुए दरियाही पंथ की स्थापना की।सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसी प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं।

वरुण देव का अवतार माने जाने वाले झूलेलाल जी की जयंती का पर्व सिंधियों का सबसे बड़ा पर्व हैं। वर्ष 2025 में यह 30 मार्च के दिन मनाया जा रहा है। इस दिन भारत में गुड़ी पड़वा तथा उगदी को भी मनाते हैं, इस दिन जगह जगह पर मन्दिरों में पूजा अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम व जुलुस निकाले जाते हैं। इस अवसर पर दिन प्रसाद के तौर पर उबले काले चने व मीठा भात सबको बांटा जाता हैं। चलिओ उर्फ़ चालिहो को चालिहो साहिब भी एक सिंधी पर्व हैं जिन्हें अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार अगस्त या जुलाई माह में सिंधी समुदाय मनाता हैं।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार