नृपेन्द्र अभिषेक नृप
प्रेम की कोई एक परिभाषा नहीं होती है, हर एक व्यक्ति के सोच, विचार और स्वभाव के अनुसार प्रेम के अनेक अर्थ होते हैं। प्रेम एक भाव है जो कल भी था आज भी है और हमेशा रहेगा क्योंकि प्रेम से हीं समस्त दुनिया सुगंधित है। संसार में प्रेम एक ऐसा शब्द है जो सृष्टि को जीवंत रखने में सहायक होता है। प्यार की ताकत ही दुनिया की सबसे बड़ी ताकत माना गया है। ख़ासकर उस दौर में जब नफ़रत ने पूरी दुनिया को जकड़ना शुरू कर दिया है, उस दौर में दुनिया में प्रेम का प्रसार अत्यधिक आवश्यक हो गया।
वर्तमान दौर को देखें तो यूरोप में नफ़रत बढ़ने के बाद युद्ध होने लगे हैं और विभिन्न देशों में धार्मिक कट्टरता इतनी बढ़ रही है जो कि इंसान को नफ़रत की आग में झुलसाती जा रही है। इन सभी विपदा का समाधान प्रेम से किया जा सकता हैं। क्योंकि प्रेम बलिदान सिखाता है, हिंसा करना नहीं सिखाता। प्रेम की शक्ति नफ़रत की ताक़त से हज़ारों गुना प्रभावशाली होती है। प्रेम एक ऐसा रास्ता है जो कि मस्तिष्क को नहीं, हृदय को छूता है। मार्टिन लूथर किंग कहते हैं-” अंधकार से अंधकार नहीं मिटाया जा सकता, यह कार्य प्रकाश ही कर सकता है। इसी तरह नफ़रत से नफ़रत को ख़त्म नहीं किया जा सकता, प्यार से किया जा सकता है। प्यार ही एक ऐसी ताकत है जो दुश्मन को दोस्त बनाने में सक्षम है।”
प्रेम एक अलौकिक अहसास है , जिसे जितना भी शब्दों में बाँधा जाये कम ही है। प्रेम वह शब्द है जिसकी व्याख्या असंभव है पर इसमे जीवन छुपा है । प्रेम एक शाश्वत भाव है, जो कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा। प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। जो प्रेम में है या किसी के साथ प्रेम में होता है तो निश्चित ही वह कुछ भी कर सकता है, क्योंकि प्रेम में वह उर्जा होती है जो किसी भी जीव को सक्रिय और सजग बना देती है। यह प्रेम की ऊर्जा हमें सतत नवीन करने हेतु अग्रसर करते चली जाती है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पल्लवित, पुष्पित और फलित होती है। हर रिश्ते में प्यार होना बेहद जरूरी है, क्योंकि बिना प्यार और सम्मान के रिश्ते नहीं चल सकते हैं। मोनिका राज प्रेम को अपनी पंक्तियों में लिखती है –
“इश्क़ हवाओं में कुछ यूँ घुल जाए
कि साथ अपना मुक़म्मल हो जाए
जब थोड़ा-थोड़ा तुम ‘मैं’ हो जाओ
जब थोड़ा-थोड़ा मैं ‘तुम’ हो जाऊं।”
हमारी जिंदगी में प्यार की बहुत महत्ता है। लेकिन प्यार क्या है? इसका अर्थ क्या है? इस बारे में हम लोगों की अपनी-अपनी विचारधारा है। जिस व्यक्ति के जैसे विचार होते हैं उसे प्यार का वैसा ही अर्थ मिलता है। माता-पिता, दोस्त, भाई-बहन, अध्यापक आदि सबसे हमें प्यार मिलता है। ये हमारी सोच ही है कि हम इसे किस नजरिए से देखते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर कहते है -“प्रेम केवल एक भावना नहीं, एकमात्र वास्तविकता है। यह सृष्टि के हृदय में रहने वाला अंतिम सत्य है।”
वास्तव में प्यार एक ऐसा शब्द है, जिसमें कुदरत की कोमल भावनाएं छिपी है। प्रेम एक ऐसी नदी है जो कभी समाप्त नहीं होती और इसमें लाखों लोग अपने रास्तों की तलाश करते हैं । झझमुक्ति को प्राप्त करते हैं और यह कभी थकती नहीं। प्रेम तो परमात्मा की समीपता का आभास कराता है। प्रेम की डोर पकड़कर हम ईश्वर तक पहुंच सकते हैं। जिसने प्रेम का मर्म जान लिया फिर उसे और कुछ जानने की आवश्यकता नहीं। एरिक फ्रॉम कहते हैं- “मानव अस्तित्व की समस्या का संतोषजनक और समझदारी भरा जवाब सिर्फ प्रेम है।”
आकर्षण का अपना फ़लसफ़ा है। प्रेम के इसी जज़्बे को त्यौहार पर्व या उत्सव रूप में वेलेंटाइन डे के रूप में भी मनाया जाते रहा है। हालांकि प्रेम का न कोई दिवस होता है और न ही समय। हमारे बीच प्रेम सदैव बने रहना चाहिए। अब वसंतोत्सव से 21 वीं सदी तक प्रेम के इलाके में भारी तब्दीलियां हुई हैं। मोहब्बत के इजहार करने का रूप भी बदला है। आजकल आधुनिकता के चकाचौंध में प्रेम इज़हार का न ही जगह देखा जा रहा है और न ही उम्र। आज अकल्पनीय तकनीकी विकास के साथ जिंदगी की रफ्तार 100 गुनी बढ़ गई और हम चाहते हैं कि प्यार संस्कृत युगीन ही रहे । पुराकाल की लजीली, सजीली अवगुंठिताएं अब कहां! जिनके पदाघात से अशोक फूलता था। लोग ठहरकर जिंदगी का रस लेते थे। एक रमणीय दृष्टिकोण था।
ओशो ने कहा है कि ”प्रेम शाश्वत है लेकिन उसे स्थायी बनाने की कोशिश में तुम उसे मार डालते हो। ” शाश्वत का अर्थ है जो निरंतर हो जो निरंतर होगा वह स्थायी नहीं हो सकता क्योंकि स्थायी में निरन्तरता नहीं होती। शाश्वत अर्थात नित नूतन, नित नवीन प्रेम अस्थायी है। प्रेम शाश्वत है। वह रोज नए कलेवर में है। उसे स्थायित्व में बंधने कि कोशिश मत करो, नहीं तो वह मर जायेगा, सड़ जायेगा।
साहित्यकारों का मानना है कि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है। प्यार में कोई जोरजबरदस्ती नहीं चलती। प्यार में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं। जिस तरह एक लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते को बनाने के लिए प्यार जरूरी है, उसी तरह स्नेह भी। बिना प्यार के प्यार किसी भी रिश्ते को नीरस और बेजान बना सकता है। दूसरे व्यक्ति के प्रति स्नेह दिखाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह हर रिश्ते के लिए सच है। यह एक खुशहाल रिश्ते की कुंजी है। उदाहरण के लिए, माता-पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं। वे बलिदान करते हैं और अपने बच्चों के प्रति निस्वार्थ भाव से उनके प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
प्यार किसी भी रिश्ते का आधार बनता है, एक खुशहाल रिश्ते के लिए प्यार की भावना ही काफी नहीं है। एक रिश्ते को पोषित करने के लिए कई अन्य चीजों की आवश्यकता होती है। मिसाल के तौर पर,माता-पिता को अपने बच्चों से प्यार करने के अलावा उनके बच्चों को सुरक्षा और सुरक्षा की भावना प्रदान करनी चाहिए।
प्यार बहुत सुकोमल और गुलाबी रिश्ता है, छुई-मुई की नाजुक पत्तियों की तरह। अंगुली उठाने पर कुम्हला जाता है यह रिश्ता। इसलिए प्यार करने से पहले अंतर्मन की चेतावनी व परामर्श सुनना, समझना और स्वीकार करना नितांत जरूरी है। अटूट प्यार के लिए उसकी बुनियाद में कुछ विशिष्ट भावों का होना आवश्यक है। सच्चाई, ईमानदारी, परस्पर समझदारी, अमिट विश्वास, पारदर्शिता, समर्पण भावना और एक-दूजे के प्रति सम्मान जैसे श्रेष्ठ तत्व प्यार की पहली जरूरत है।
यह तभी प्राप्त किया जा सकता है जब वे अपनी सभी जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा करें। दूसरी ओर बच्चों को न केवल अपने माता-पिता से प्यार करना चाहिए, बल्कि एक स्वस्थ संबंध बनाने के लिए उनका सम्मान करना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। प्यार लोगों को करीब लाता है और किसी भी रिश्ते को खूबसूरत बनाने की ताकत रखता है। हमें प्यार के महत्व को पहचानना चाहिए और रिश्तों में इसे व्यक्त करने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए।
भोगवादी संस्कृति में पल रहा युवा भावों की गहराई को समझ ही नहीं पाता। प्रेम के लिए इस तरह की सोच कितनी सही और कितनी गलत है, इसका फैसला भी खुद युवाओं को ही करना होगा। अक्सर देखते है कि भारत में प्रेम युगल को हीन भावना से देखा जाता है। प्रेम या प्रणय को हमेशा टैबू या वर्जना बनाकर पेश किया गया है।
एक समाज या समुदाय तब अच्छी तरह से कार्य करता है जब उनमें एकजुटता और प्रेम की भावना होती है। जिस समाज में हर कोई एक-दूसरे से नफरत करता हो और दूसरों का विकास न देख पाता हो, वह कभी तरक्की नहीं कर सकता। अत: किसी भी समाज या राष्ट्र की प्रगति के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि लोग एक-दूसरे से प्रेम करें। प्रेम विभिन्न जाति, नस्ल, लिंग, समुदाय, धर्म, क्षेत्र आदि के लोगों को एकता के सूत्र में बांधेगा। प्रेम सभी भावनाओं में सबसे गहरा और सबसे सार्थक है।
प्रणय बिना न सृष्टि का अस्तित्व है न कलाओं का प्रेम करने से कोई पापी नहीं हो जाता। विदेशों की तर्ज पर बेशक लवर्स जोन न हों पर संयमित तौर पर इजहारे मोहब्बत की इजाजत मिलनी चाहिए। फूल की अस्मिता भावना के रंगों से मिलकर मन के आसमान में निश्चय ही इंद्रधनुष खिला सकती है। प्रेम के प्राकृतिक प्रवाह को निर्बाध रूप से बह जाने दे प्रेम की गंगा को निश्चय ही महक उठेगा आपका जीवन। प्रेम जीवन का स्नेहक है, और प्रेम के बिना, जीवन की मशीनरी घर्षण से गर्म हो जाएगी और ‘जब्त’ हो जाएगी; लेकिन प्रेम उन अन्य गुणों का विकल्प नहीं है जो संपूर्ण मानव अस्तित्व के निर्माण के लिए जाते हैं।
“समस्त सृष्टि का आधार हैं प्रेम
सहज, स्वस्फूर्त, निर्विकार है प्रेम
देता है ह्रदय को अद्भुत प्रेरणा
मन से अंधकार मिटाता है प्रेम।”