सीता राम शर्मा ” चेतन “
होइहि सो॓इ जो राम रचि राखा l को करि तर्क बढ़ावै शाखा ।। तुलसीदास जी की इस चौपाई को समझिए देवर जी ! ये चौपाई नई संसद को लेकर कुछ कलमुंहे, कपटी, देश के विपक्षी बने नेताओं की भ्रष्ट हुई बुद्धि पर भी पूरी तरह सत्य सिद्ध हो रही है !
रामदुलारी की बात सुन करण सिंह और लक्ष्मण चौंकते हुए एक-दूसरे का मुंह देखने लगे थे ! लक्ष्मण आदतन सिर खुजलाते हुए मन ही मन बुदबुदाने लगा था – बाप रे, इ खतरनाक औरत अब पूछेगी, समझे । बताइए तो कैसे ? फिर क्या जवाब देगा रे बेटा लक्ष्मण तू – – –
वह बुदबुदा ही रहा था कि जोर से ठहाका लगाती रामदुलारी बोल पड़ी थी – बिल्कुल सही सोच और बुदबुदा रहे हैं दुलरवा देवर जी आप, पूछुंगी तो सही कि इस चौपाई का अर्थ नई संसद को लेकर विपक्षी गतिविधियों से कैसे है ? आप दोनों सोचिए, तब तक मैं चाय छानकर लाई आपलोगों के लिए ।
रामदुलारी के जाते ही लक्ष्मण तेजी से कुर्सी से उठा ही था कि करण सिंह ने उसका हाथ पकड़ उसे खींच कर धम्म से वापस कुर्सी पर बैठाते हुए कहा था – अरे भाग काहे रहा है ऐसे ! चाय तो पीते जा । भाभी है तुम्हारी कोई बाघ थोड़े ही है कि खा जाएगी तुमको !
लक्ष्मण हाथ छुड़ाते हुए खा जाने वाली नजरों से घूरता हुआ दहाड़ा था उस पर – अरे भाड़ में जाए ऐसी चाय तुम्हारी, एक तो सुबह-सुबह घर में उसने मूड खराब कर दिया मुझे बैल बुद्धि और मूर्ख कह कर और यहां आया तो यहां भी अब ये भौजी बुझवल बुझा रही है ! अरे भाड़ में जाएं विपक्षी यार, कौन नहीं जानता है अब इन बेहाल और भ्रष्ट विपक्षियों का सच, जो ये भौजी आए दिन घुमा फिराकर बार-बार बताती रहती है हमको ये बात कि देश के सारे विपक्षी दल अब सरकार के नहीं देश के भी विपक्षी बन चुके हैं – – –
अरे-अरे का हो गया भाई ! काहे ऊ बेवकूफवा की तरह बेवजह भौजी का गुस्सा अपने इ निर्दोष दोस्त पर निकाल रहें हैं लक्ष्मण आप ! रामदुलारी की बात सुन दोनों दीनहीन बने कुछ बोलने के लिए मुंह खोले ही थे कि वह गरज उठी – दोनों अपने मुंह को बिल्कुल बंद रखिएगा । जब तक हम कुछ पूछें नहीं तब तक गुंगे की तरह सिर्फ चाय पीने के लिए ही अपना मुंह खोलिएगा । और हां लक्ष्मण, आप अभी चाय पिते हुए भी बिना मांगे, वाह भौजी क्या चाय बनाई हैं आपने, कसम से मूड फ्रेश हो गया, वाली तारीफ मत दीजिएगा । मूड बहुत खराब हो गया है मेरा आपकी आखिरी लाइन सुनकर । इ तो ऊ काली कुतिया नहीं दिख रही है यहां पर, वर्ना इ चाय भी आप दोनों की बजाय उसे ही दे देती ठंडी कर । सचमुच, जैसे ऊ बेवकूफवा को समझाना मुश्किल है वैसे ही बहुत मुश्किल है आपको – – –
रामदुलारी की भी आखिरी लाइन सुन कर अब तक डरे सहमे बैठे लक्ष्मण के तेवर सातवें आसमान पर चढ़ गए थे । वह सिर झुका दांत भींचता गुस्से में गुर्राया था – प्लीज भौजी, मैंने भी हजार बार कहा है आपसे कि चाहे जो कह लिया कीजिए मुझे पर उस महामूर्ख, महाधूर्त, राजनीति के कलंक बेवकूफवा के साथ मेरी तुलना कभी मत किया कीजिए । उस देश के दुश्मन – – –
सॉरी-सॉरी, अब मुंह बंद कीजिए । स्वाभिमान और जमीर की एक यही बात अच्छी लगती है मुझे आपकी, वर्ना आपके जैसे दिमाग वाले लोग से मेरा आज तक निभाव होना मुश्किल था । अच्छा, चलिए अब चाय पीजिए पहले ।
बैठते हुए रामदुलारी ने देखा, दोनों आज्ञाकारी बालकों की तरह चाय के कप उठा रहे थे ।
थोड़ी देर शांत रहने के बाद रामदुलारी बोली थी – हां तो अब बताइए हमारे होशियार दुलरवा देवर जी, क्या अर्थ था मेरे उस चौपाई के वर्तमान वर्णन का ?
चाय की चुस्की लेता लक्ष्मण हकलाता हुआ बोला था – भौजी, सच कह रहे हैं आज मेरा दिमाग बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा और मेरे इस समझदार दोस्त की बुद्धि तो उस पलटू राम की तरह आजकल छुट्टी पर चली गई है सो प्लीज आप ही बता दीजिए ! कहां मानस की यह चौपाई और कहां इ सपने में भी जेल से भयभीत दिखाई देते सारे मतिहीन चोर-चोर मौसेरे भाई ! कनेक्शन हम दोनों के ही समझ में ना आई !
बोलते हुए लक्ष्मण ने ऐसी रोनी सूरत बनाई कि रामदुलारी खिलखिला कर हंसती हुई बोल पड़ी – अरे दुलरवा देवर जी, धन्य हैं आप दोनों भाई ! अरे इन धूर्त, पाखंडी और भ्रष्ट विपक्षियों ने नई संसद के उद्घाटन के गौरवशाली अवसर पर संसद से जो अपनी दूरी बनाई है, आप ही बताइए क्या आप चाहेंगे उस राष्ट्र मंदिर के उद्घाटन के पावन पवित्र अवसर पर ऐसे अपवित्र, पाखंडी और भ्रष्ट लोगों की उपस्थिति हो ? सच मानिए ईश्वर भी नहीं चाहता है ऐसा, इसलिए तो इनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है उसने और इसलिए ही कहा मैंने कि होइहि सो॓इ जो राम रचि राखा ।
आगे की पंक्ति पूरी की थी लक्ष्मण ने – को करि तर्क बढ़ावै शाखा ! अरे वाह भौजी, कसम से क्या बात कही है आपने ! पर, इतनी सरल बात आखिर हमारे समझ में क्यों नहीं आई ! सचमुच बहुत भाग्यशाली है नई संसद !!