महाकुंभ भारतीय अध्यात्म और सांस्कृतिक विशिष्टता का समग्र दर्शन

Maha Kumbh is a holistic vision of Indian spirituality and cultural uniqueness

नरेंद्र तिवारी

प्रयागराज महाकुंभ की तिथियों का निकट आना भारतीय अध्यात्म एवं सांस्कृतिक विशेषताओं के समग्र दर्शन की कामना पूर्ति के समय के निकट आने के समान है, यानी सनातनी सांस्कृतिक विरासत की गूढ़ परंपराओं के महादर्शन का शुभ अवसर, जिसकी श्रेष्ठता का गुणगान भारतीय ऋषि मुनियों ने ही नहीं, बल्कि विदेश यात्रियों ने भी किए है। कुंभ आयोजन एक प्राचीन और सांस्कृतिक हिन्दू पर्व है, जो हर 12 बरस में आयोजित किया जाता है। महाकुंभ का आयोजन पवित्र नदियों के किनारे आयोजित किया जाता है, जहां लाखों, करोड़ो श्रद्धालु स्नान और पूजा–अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते है। भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सम्पन्नता वैश्विक समुदाय के लिए दर्शन और आस्था का केंद्र सदियों से रही है। कुंभ का इतिहास और उससे जुड़ी कहानी भी शताब्दियों से प्रचलित है। कुंभ आयोजन का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है, जब भगवान विष्णु द्वारा समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश की प्राप्ति हुई। इस कलश को लेकर देवताओं और असुरों के मध्य हुए संग्राम में कलश की कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई थी। इन बूंदों के गिरने के स्थानों पर कुंभ आयोजन किया जाता है। कुंभ आयोजन के चार प्रमुख स्थान है, हरिद्वार गंगा नदी के किनारे, प्रयागराज गंगा, यमुना, और सरस्वती का संगम स्थल, उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे, नाशिक गोदावरी नदी के किनारे हर बारह वर्ष में आयोजित होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के वर्ष 2025 के माह जनवरी की 13 तारीख से हिन्दू कैलेंडर की पौष सुदी 15 विक्रम संवत 2081भारत के महातीर्थ गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम स्थल प्रयागराज में भव्य महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। जिसकी व्यापक तैयारियां की जा चुकी है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्रथम कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्यकाल में 664 ईसा पूर्व में हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री हैनसांग ने अपनी भारत यात्रा पर लिखी पुस्तक में कुंभ मेले का उल्लेख करते हुए राजा हर्षवर्धन की दानवीरता का जिक्र भी किया। हेनसांग के मुताबिक राजा हर्षवर्धन हर पांच वर्ष में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थै, जिसमें वह अपना पूरा राजकोष गरीबों, साधु, संतों, ऋषि, मुनियों धार्मिक लोगो को दान करते थै। ग्रंथों के अनुसार इसी संयोग में कुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ का यह आयोजन दुनियाँ के सबसे बड़े उत्सव में शुमार है। यह हिंदू समाज के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। इस महाकुंभ में भारत वर्ष से करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज संगम स्थल पर पवित्र स्नान करते है। इस सांस्कृतिक उत्सव के दर्शन करने विदेशी नागरिक भी बड़ी संख्या में आते है। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज के महाकुंभ में भारत के सभी हिस्सों से साधु, सन्यासी, योगी, तपस्वी, साध्वियां, कथावाचक, कल्पवासी धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस महाकुंभ का विशेष आकर्षण नागा साधुओं के अखाड़े होते है। नागा साधुओं के अखाड़ों में जुना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आनंद अखाड़ा प्रमुख है। यह नागा साधु अपने शरीर पर कपड़े धारण नहीं करते अपने शरीर पर राख लपटते है। लंबे केश धारक नागा साधुओं के शरीर पर तेज ठंड और गर्मी का असर नहीं होता। साधुओं की अनेकों शाखाओं में उर्ध्व बाबा जो अपने शरीर को विशेष रूप से तपस्या और ध्यान के माध्यम से विकसित करते है। वे अपने शरीर को साधने के लिए विभिन्न प्रकार का तप और ध्यान का अभ्यास करते है। नागा साधुओं के बारे में कहा जाता है कि वह हिमालय के पहाड़ों और नदियों के किनारे रह कर तपस्या करते है। कुंभ के दौरान वह अपने अखाड़ों के साथ इसमें शामिल होते है। महाकुंभ में नजर आने वाले नागा साधुओं को आमदिनो खुले रूप से नहीं देखा जाता है। महाकुंभ के दौरान पेशवाई एक आकर्षक और रंगारंग समारोह है। इसमें नागा साधुओं के अखाड़े अपने ध्वज और प्रतीकों के साथ विशिष्ट वस्त्रों और आभूषणों के साथ भव्य जुलूस के रूप में निकलते है। पेशवाई एक धार्मिक और पारंपरिक समारोह है। जो कुंभ मेले के दौरान आयोजित किया जाता है। इसमें अखाड़ों के प्रमुख साधु या महंत घोड़े, हाथी या रथ पर सवार होते है। इस समारोह को पेशवाई इस लिए कहा जाता था कि साधु संतों के इस जुलूस की आगवानी कुंभ के दौरान पेशवा करते थै। प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नानों के दौरान पेशवाई अपने पूरे रंग के साथ दुनियां में भारत की आध्यात्मिक ताकत का प्रदर्शन करेंगी। प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित होगा। 45 दिवस के इस महाकुंभ सात शाही स्नान होगें, महाकुंभ में शाही स्नान आयोजन की प्रमुख गतिविधियों में शामिल है। शाही स्नान की शुभ तिथि पर विभिन्न साधु संतों के अखाड़ों के बाद आम लोगों का स्नान होगा। महाकुंभ में प्रथम शाही स्नान 13 जनवरी पौष पूर्णिमा, द्वितीय 14 जनवरी मकर संक्रांति, तृतीय 29 जनवरी मौनी अमावस्या, चतुर्थ 3 फरवरी बसंत पंचमी, पंचम 4 फरवरी अचला सप्तमी, षष्ठ 12 फरवरी माघ पूर्णिमा, सप्तम 26 फरवरी महाशिवरात्रि को होगा। उप्र सरकार महाकुंभ की तैयारियों में बरसो से जुटी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ तैयारियों की समीक्षा बैठक में कहा हर तीर्थयात्री और पर्यटक की सुरक्षा और सुविधा सरकार की प्राथमिकता है।

महाकुंभ मेला क्षेत्र में आपदा प्रबंधन, साइबर सुरक्षा, अग्निशमन, घाट सुरक्षा और आपातकालीन चिकित्सा तंत्र को पुख्ता रखना जरूरी है। सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियां 24 घंटे सतर्क रहेगी। एंटी ड्रोन सिस्टम के प्रभावी इस्तेमाल के निर्देश भी दिए। प्रयागराज महाकुंभ में 45 दिनों के इस आयोजन में देश विदेश से 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।

दुनियाँ के सबसे बड़े धार्मिक पर्व महाकुंभ 2025 प्रयागराज में सनातन संस्कृति के विविध रंग नजर आएंगे। भारत की आध्यात्मिक चेतना, सांस्कृतिक विशिष्टता के समग्र दर्शन महाकुंभ में शामिल होकर किए जा सकते है। भारत देश की महान सांस्कृतिक परंपराओं में कुंभ मेले का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। प्रयागराज संगम स्थल हिंदू धर्म का पवित्र तीर्थ क्षेत्र है। रामायण के अनुसार यह संपूर्ण विश्व का एकमात्र स्थान है, जहां गंगा, जमुना, सरस्वती मिलती है। यहां से अन्य नदियों का अस्तित्व खत्म होकर एकमात्र गंगा नदी का महत्व शेष रहता है। इस भूमि पर ब्रह्मा जी ने यज्ञ कार्य संपादित कराएं थै, ऋषि, मुनियों और देवताओं ने संगम में स्नान कर अपने आप को धन्य माना। प्रयागराज की पवित्र धरा पर महाकुंभ का आयोजन संपूर्ण विश्व को भारत और सनातन धर्म की आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विशिष्टताओं से अवगत कराने का माध्यम बनेगा। सदियों से आयोजित होने वाले कुंभ मेले भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक आदान–प्रदान और आध्यात्मिक चेतना के मुख्य केंद्र है।