विनोद तकियावाला
भारतीय राजनीति में इन दिनों काफी उथल पुथल हो रहा है। खास कर महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर जो तुफान आया था वह फिलहाल थम सा गया है।लेकिन भारतीय राजनीति पर पैनी नजर बनाये रखने वाले इस बात से सहमत नही दिख रहे है।उनका मानना है कि भले महाराष्ट्र की राजनीति में जिस तरह से भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व में सफल नाटक की पृष्टभुमि तैयार कर सफल नाटकीय रूप से एकनाथ शिंदे को मुख्य मंत्री के पद पर आसिन कर एक तीर से कई निशाने लगाये है।इसके दुरगामी परिणाम अगामी दो राज्यो के विधान सभा चुनाव व 2024 में होने वाले लोक सभा के आम चुनाव पर पड़ेगा|फिलहाल एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री व डिफ्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के रूप में पद की सपथ ले ली है ।शांत सागर को देख कर तट पर रहने मछुआरे भयंकर ज्वार भाटा आने का अंदाज लगा लेते है ठीक इसी प्रकार महाराष्ट्र की राजनीति पर यह कहावत बहुत ही हद तक सटीक बैठता है।
विगत पखवाड़े में महाराष्ट्र के राजनीति महामंच मे एम वी ए के गठबन्धन की सरकार को सता के सिंघासन से बेदखल करने में नायक के रूप एकनाथ शिंदे की जितनी भुमिका रही उससे कही अधिक भुमिका पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस की रही। करीब ढाई साल पूर्व की घटना आप सभी को याद होगी जब महाराष्ट्र के विधान सभा के चुनाव 120 सीटो पर जीत हासिल कर भाजपा सबसे बडी पार्टी बन कर ना आई ब्लकि अंकगणित के गठबंधन को ध्यान मे रख कर रातों रात अपनी सरकार बन बना ली।हालाकि यह सरकार मात्र तीन दिन में चल पाई ।ठीक उसी तरह का दृश्य इन दिनो देखने को मिला।महाराष्ट्र के सिंधासन परिवर्तन में पूर्व मुख्यमंत्री का विशेष योगदान रहा है।जिस नाटकीय ढंग उद्धव ठाकरे का मुख्य मंत्री से इस्तीफा देने के पहले मुख्य आवास खाली कर दिया अपने पैतृक आवास में लौटना ‘ शिव सैनिक से भावुक अपील करना ‘ शिंदे को स्वयं ठाकरे व महा विकास अंगाड़ी के नेताओ द्वारा मुख्य मंत्री पद आफर करना आदि।भारतीय राजनीति जिस दौर से गुजर रही है वह काफी ही सोचनीय है।
शिंदे ने महाराष्ट्र की जनता के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हमने अपने मन में कोई स्वार्थ नहीं है।हमारा बीजेपी के साथ नैचुरल गठबंधन था। नाराज विधायकों के द्वारा आगे भी मिलेगा।एकनाथ शिंदे ने कहा,मैं भी सरकार में काम कर रहा था , लेकिन राज्य के हित मे कुछ नहीं हो रहा था।हालाकि महाविकास आघाड़ी के लिये गये कुछ ऐसे फैसले हुए।उसका स्वागत है परन्तु आपसी वैचारिक मतभेद से हम कुछ मामलों पर आगे नही बढ़ सकते थे।उन्होंने कहा कि राज्य के हित और महाराष्ट्र की जनता केभविष्य को दृष्टि से जो कुछ हो रहा था,एम वी ए की वजह से हम कुछ फैसले नहीं ले पा रहें थे।देवेंद्र फडणवीस ने बड़ा दिल दिखाया ।शिंदे ने कहा कि हम 39 और निर्दलीय 11 विधायक जब अलग फैसला लेते हैं तो समझना चाहिए था।बड़े पैमाने पर 50 लोग साथ आते,वो लोग मुझे अपनी समस्याएं बताते।हमने ये निर्णय राज्य के हित में जनता की उम्मीदें पूरी करने के लिए लिया है।उन्होंने कहा कि फडणवीस साहब ने जो फैसला लिया उसका स्वागत हो रहा है।पार्टी के 120 विधायकों की ताकत उनके पास थी,चाहते तो फडणवीस सीएम पद ले सकतें थे लेकिन उन्होंने बाल ठाकरे के शिवसैनिक को इस पद के लिए चुना,इसके लिए उनका दिल से शुक्रिया।
इसके लिए मैं मोदीजी,अमित शाह देवेंद्र जी धन्यवाद व्यक्त करता हूं।मुख्य मंत्री का पद मैने किसी लालच में नहीं लिया और ना मैंने भी कोई पद नही मांगा था।हम महाराष्ट्र को विकास की तरफ ले जाएंगे।देवेंद्र बडे दिल के व्यक्ति हैं।शिंदे ने आगे कहा कि 50 विधायकों ने बालासाहेब और धर्मवीर दिघे की भूमिका को आगे ले जाने का काम किया।उन्होंने विश्वास जताया,उनका शुक्रिया। हमारे पास 120 और 50, आज 170 की ताक़त है,आगे और भी विधायक हमसे जुड़ेंगे।केंद्र की मोदी सरकार की ताकत भी हमारे शाथ खड़ी रहेगी तो हमारी राह में कोई अड़चन नहीं आएगी।पहले जिस तरह फडणवीस के द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा की गई कि- मैं सरकार से बाहर रहूंगा । लेकिन पार्टी केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष उन्हे अपने फैसले को वापस लेने को बाध्य होकर उप मुख्यमंत्री का पद का सपथ लेना पड़ा।इसके लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की घंटी ही नही बजाई गई ब्लकि पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष को कैमरे के समाने आ कर पार्टी का फरमान सुनाना पड़ा।हालांकि इस तरह घटना पहली बार नही बल्कि बाबु लाल गौर,अशोक चौहान के साथ हो ये प्रकरण हो चुकी है।ये पहले मुख्य मंत्री रहने के बाद मंत्रीमंडल में जगह दी गई।लैकिन देवेन्द्र फड़नवीस के संदर्भ में राजनीति के मर्मज्ञ का मानना है कि फड़नवीस को अपनो की ही बुरी नजर लग गई।
विगत दिनों की फड़णवीस की राजनीतिज्ञ सफर पर गौर करें तो सन 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के एक सफल मुख्य मंत्री व तीन दिन के नाटकीय मुख्य मंत्री रहे।उन्हें पार्टी केन्द्रीय के नेतृत्व द्वारा कई महत्वपूर्ण दायित्व सौंपे गए,जिसका उन्होनें सफल निर्वाहन किया ,चाहे वह विहार विधान सभा का चुनाव हो या गोवा का हो।फड़नवीस की बढ़ती लोकप्रियता के कारण इनका केन्द्रीय राजनीति व दिल्ली दरबार में भी दबे जुबान से चर्चा होने लगी कि फडणवीस धमाकेदार केन्द्र की राजनीति में इन्ट्री होने वाली है।उनकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के कान भरें गये।ऐसे तो राजनीतिक पार्टी में अर्न्त कलह आम बात होती है लेकिन संघ के संरक्षण में चलने वाली भारतीय जनता पार्टी के अन्दर इस तरह घटना पहली बार देखने को मिली।जिसकी चर्चा व चिन्तन चारों ओर है।इसका पुख्ता सबूत तब देखने को मिला जब एकनाथ शिंदे के नाम की चर्चा पर फड़नवीस स्वयं दिल्ली पहुँच कर पार्टी अध्यक्ष जे पी नट्टा से मुलाकात की तथा बाद में महाराष्ट्र जा कर एक नाथ शिंदे के लिए अनुकूल वातावरण किया ।खैर राजनीति में यह सब चलता रहता है।फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में एकनाथ शिंदे के लिए सत्ता का सिंधासन की राह काँटे से सजी ताज है।अभी विधान सभा के दो दिन विशेष सत्र बुलाया गया।सर्व प्रथम विधान सभा अध्यक्ष का चुनाव व अगले दिन फ्लोर टेस्ट होगा।इसके लिए रणनीति तैयार करने में व्यस्त हो गए लेकिन महाराष्ट्र की जनता के एक ज्वलंत प्रशन उठ रहा है कि असली शिव सेना किस की है।राज ठाकरे या एकनाथ शिंदे ‘ धनुष वाण का असली हकदार कौन है।शिव सैनिक किसके नेतृत्व में हिन्दुत्व की लड़ाई लड़ेगी।वाला साहेब के अधुरे सपने को साकार करेगा।
यह आने वाले वक्त ही बताएगा।
फिलहाल आप से यह कहते विदा लेते है कि ना ही काहूँ से दोस्ती ,ना ही काहूँ से बैर।खबरी लाल तो माँगे सबकी खैर॥
फिर मिलेगें तीरक्षी नज़र से तीखी खबर के संग।तब तक के लिए अलविदा