डॉ. सुधीर सक्सेना
सर्वाधिक सीटों के मान से वृहत्तर राष्ट्र में दूसरी पायदान पर खड़े महाराष्ट्र में अड़तालीस मोर्चे खुले हुए है और कोई भी मोर्चा ऐसा नहीं है, जहां जंग आसां हो। नागपुर औरगाबाद, पुणे, मुंबई- सब दूर चुनावी घमासान देखने को मिला रहा है। वाकओवर कहीं नहीं है, यहाँ तक कि नागपुर में भी नहीं, जहां रेशीमबाग में आरएसएस का मुख्यालय है और जहां से आरएसएस की आँख के तारे और विकास पुरुष की संज्ञा से मंडित नितिन गडकरी चुनाव लड़ रहे हैं।
ऐतिहासिक नगर औरंगाबाद अब संभाजीनगर है। नाम बदलने से शहर का मिजाज नहीं बदलता, अलबत्ता संभाजीनगर की फिजां संप्रति बदली हुई है। सन 2019 के चुनाव में यहां से ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस- ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के इम्तियाज जलील जीते थे। जलील फिर मैदान-ए-जंग में है, लेकिन इस दफा उन्हें गत बार की तरह प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी का समर्थन प्राप्त नहीं है। दूसरे इसमें शक है कि उन्हें मूसलमानों के थोक बंद वोट मिलेंगे। वजह यह कि अल्पसंख्यक मतदाताओं का एक बड़ा तबका इंडिया-गठबंधन की घटक शिवसेना (उद्धव) की ओर सरक गया है, जिसका लाभ उसके उम्मीदवार चन्द्रकांत खैरे को मिलेगा। खैरे औरंगाबाद से सांसद रह चुके हैं। मुकाबला त्रिकोणीय है, क्योंकि शिवसेना (शिंदे) ने यहां सांदीपन भुमरे को मैदान में उतारा है।
पेशवाओं की राजधानी रही पुणे में द्वंंद्व रोचक और रोमांचक है। सन 1957 के बाद यहाँ कई दशक काँग्रेस और समाजवादियों का वर्चस्व रहा। एनजी गोरे, मोहन धारिया, विट्ठल राव गाडगिल और सुरेश कलमाडी यहीं से चुने जाकर राष्ट्रीय परिदृश्य में उभरे। सन 1991 में बीजेपी पहली बार यहां से जीती, जब अण्णा जोशी चुने गये। सन 1914 में यहां से अनिल शिरोले जीते। और सन 2019 में गिरीश बापट। यक्ष प्रश्न है कि क्या बीजेपी की हैट्रिक पूरी हो सकेंगी?
पुणे से सटी हुई दो अन्य ऐसी सीटें हैं; जिनके बारे में बाहरी लोग ज्यादा नहीं जानते, लेकिन शिवसेना और एनसीपी के धड़ों के लिये ये दोनों सीटें – शिरूर और मावल मायने रखती हैं। शिरूर में भी चाचा-भतीजे की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहाँ शरद पवार के नजदीकी और प्रिय- पात्र डा. अमोल कोल्हे का मुकाबला अजीत पवार कैंप के कारोबारी- प्रत्याशी शिवाजीराव अढलराव पाटिल से है। सन 2019 चुनाव में पाटिल अविभक्त शिवसेना के उमीदवार थे और सनसनीखेज मुकाबले में डॉ. कोल्हे ने उन्हें शिकस्त दी थी। उधर मावल में शिवसेना के श्रीरंग अप्पा चंदू बारने ने एनसीपी के पार्थ अजित पवार को दो लाख से अधिक वोटों से हराया था। यहां वंचित बहुजन आघाड़ी के राजाराम को करीब 75 हजार वोट मिले थे। यहां मुकाबला सेना बनाम सेना है। शिंदे गुट के श्रीरंग के सम्मुख उद्धव गुट ने संजोग वाघारे को उतारा है। इस लोस-क्षेत्र में पिंपरी, चिंचवड, कर्जत, उरन आदि का समावेश है और शिवसेना की यहां तगड़ी पैठ है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि मावल के मतदाता शिंदे कैम्प को चुनते हैं अथवा उद्धव-शिविर को? विदर्भ में पांचों सीटों नागपुर, रामटेक, चंद्रपुर, भंडारा – गोंदिया और गढ़चिरोली – चिमूर के लिये अप्रैल में ही मतदान हो चुका है। इनमें रामटेक अनुसूचित जाति और गढ़चिरोली- चिमूर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इनमें चंद्रपुर की सीट गत चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी, अन्यथा शेष सभी में बीजेपी-सेना ने परचम लहराया था। रामटेक सीट से पूर्व प्रधानमंत्री पामुलपर्ती वेंकट नरसिंहाराव को दो बार निर्वाचित होने का श्रेय प्राप्त है।
नागपुर को विदर्भ का नर्व सेंटर माना जाता है। आरएसएस की गुंजलक के बावजूद नागपुर बरसों बरस कांग्रेस का सुदृढ़ किला बना रहा, मगर अब यह नितिन गडकरी के दुर्ग के तौर पर जाना जाता है। गडकरी के सम्मुख इस बार विकास ठाकरे ने तगड़ी चुनौती पेश की है। ठाकरे के संपर्कों दायरा सघन और व्यापक है। इसी प्रकार इसी प्रकार चंद्रपुर में बीजेपी के सुधीर मनगुटीवार और कांग्रेस की प्रतिभा धारोरकर के बीच गजब की कश्मकश है। विकास और प्रतिभा जमीनी नेता हैं और उस कुनबी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं, जिसका इन उलाकों में खासा दबदबा है। सुश्री प्रतिभा को अन्य बातों के अलावा सहानुभूति फैक्टर का भी आसरा है। यहां से निर्वाचित उनके पति सुरेश धानोरकर की गत वर्ष असामयिक मृत्यु हो गयी थी।
नागपुर की पड़ोसी रामटेक सीट पर कांग्रेस और सेना (शिंदे) में ठनी हुई है। यहाँ कांग्रेस के श्यामसुंदर बर्वे और सेना के राजू पारवे में मुकाबला है। प्रत्याशी चयन से क्षुब्ध होकर पारवे चुनाव की पूर्व वेला में कांग्रेस से रुष्ट होकर शिंदे कैंप में चले गये। बर्वे बनाम पारवे द्वंद्व में बीजेपी के मुखिया चंद्रशेखर बावनकुले और कांग्रेस विधायक सुनील केदार की प्रतिष्ठा दांव पर है। तो भंडारा-गोंदिया में कांग्रेस के मुखिया नाना पटोले और एनसीपी-नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल अपने-अपने प्रत्याशियों-प्रशांत पटोले और सुमीत मेंढे के लिए जोर- आजमाइश कर रहे हैं। विदुर्भ की अन्य दो सीट गढ़चिरोली – चिमूर आदिवासीबहुल और नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। यहां बीजेपी ने अपने निवर्तमान संसद अशोक नेते को मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने सर्वथा नये चेहरे नामदेव कृसन पर दांव लगाया है।
विदर्भ की एक अन्य सीट अमरावती में चुनाव अन्य कारणों के अलावा ग्लैमर के प्रवेश से भी रोचक हो गया है। यहां सिने-अभिनेत्री नवनीत कौर राणा लोकसभा में पुन: प्रवेश के लिए भाग्य आजमा रही है। पिछला चुनाव उन्होंने निर्दलीय की हैसियत से जीता था। लेकिन इस बार वह बीजेपी की उम्मीदवार है। उनकी उम्मीदवारी से बीजेपी के टिकट के दावेदारों में असंतोष है और कइयों की भूकुटि में बल भी। नवनीत कहती हैं कि उन्हें वोट देने का अर्थ है पीएम मोदी को वोट। नवनीत का सामना यूँ तो कांग्रेस-प्रत्याशी बलवंत वानखेडे से है। किन्तु सत्तारूढ़ महायुति के घटक प्रहार जनशक्ति पार्टी के मुखिया बच्चू कडू ने दिनेश गणेशदास बूब को चनाव मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक टर्न दे दिया है। वैसे अमरावती संसदीय क्षेत्र के साथ यह दिलचस्प टैग जुड़ा हुआ है कि चुनाव मैदान में मौजूदगी की स्थिति में वह नेताओं पर नेत्रियों को तरजीह देता है।