निर्मलकुमार वर्मा
विशुद्ध भारतीय खेल हाकी को मेजर ध्यानचंद इतनी ऊंचाई पर ले गए थे और हाकी के खेल में भारत को पूरे विश्व में इतना सम्मान दिलवाया कि उन्हें सारी दुनिया के लोग प्यार से ‘हाकी के जादूगर ‘ के नाम से पुकारने लगे थे ! किसी खिलाड़ी को सम्मानित करने के मामले में आम जनता की ओर दिया गया यह सम्मान और इज्ज़त विरलतम् है ! ऐसा ही या इसी के समकक्ष सम्मान फुटबॉल के विश्वप्रसिद्ध ब्राजिलियन खिलाड़ी एडसन अरांटीस डो नैसीमेंटो,जो दुनिया में पेले के नाम से विश्वविख्यात थे और क्रिकेट जगत के कालातीत आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी सर डोनाल्ड जॉर्ज ब्रैडमैन को भी आम जनता ने वैसे ही सम्मान दिया था !
कड़ी मेहनत,लगन और प्रतिबद्धता !
भारतीय हॉकी के इस कालजयी महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद जी का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। बालक ध्यानचंद जी अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद केवल 16वर्ष की उम्र में ही भारतीय सेना में एक साधारण सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए थे। आश्चर्यजनक बात है कि जब वे सेना में भर्ती हुए थे,उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रुचि ही नहीं थी ! इसलिए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उनमें हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, अपितु उन्होंने अपने सतत साधना,अभ्यास, लगन,संघर्ष और संकल्प के सहारे ही इतनी बेहतरीन खेलने की क्षमता विकसित किए थे ! मेजर ध्यानचंद जी हाकी के खेल के लिए बहुत ही मेहनत और प्रैक्टिस किया करते थे। वे देर रात तक प्रैक्टिस किया करते थे,उनके प्रैक्टिस सेशन को चांद निकलने से जोड़कर देखा जाने लगा ! इसीलिए उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें ‘चांद ‘ का सम्मानजनक नाम दे दिया था ! इसी कड़ी मेहनत और कठोर साधना से वे दुनिया में इतनी शोहरत और प्रतिष्ठा अर्जित किए थे !
अद्भुत,अद्वितीय,अतुलनीय उपलब्धियां !
हाकी के जादूगर कहे जाने वाले इस प्रतिभा संपन्न खिलाड़ी ने लगातार 3ओलिम्पिक प्रतिस्पर्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार अपने देश भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया ! भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए,जिसमें 133 गोल अकेले मेजर ध्यानचंद जी ने किए थे। दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने वर्ष 1928 में नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम,वर्ष 1932 में अमेरिकी शहर लॉस एंजिल्स और वर्ष 1936 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हुए तीन ओलिंपिक खेल के महाकुंभ में भारत को लगातार हॉकी खेल में गोल्ड मेडल दिलवाए।
शताब्दी का सबसे महानतम् खिलाड़ी !
केवल हॉकी के खेल में अपनी प्रतिभा के बल पर अपने देश भारत का नाम दुनिया भर में रौशन करने के कारण सेना में उनकी पदोन्नति होती चली गई ! वर्ष 1938 में उन्हें ‘वायसराय का कमीशन ‘ मिला और वे जमादार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे पदों पर पदोन्नत होते चले गए, यथा सूबेदार,लेफ्टीनेंट और कैप्टन के बाद अंततः उन्हें मेजर बना दिया गया ! वर्ष 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इसके अलावा भारतीय ओलम्पिक संघ ने मेजर ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित करके उन्हें सम्मानित किया था !
खेल विशेषज्ञों के अनुसार अगर दूसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ होता तो वे निश्चित रूप से छ: ओलिंपिक में भाग लेने वाले दुनिया के संभवत : पहले खिलाड़ी होते और इस बात में शक की कोई संभावना नहीं है कि इन सभी ओलिंपिक खेलों में हाकी का गोल्ड मेडल भी भारत के ही नाम होता !
चार हाथ और चार हाकी स्टिक वाली मूर्ति !
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के विश्व विख्यात खिलाड़ी सर डॉन ब्रैडमैन ने वर्ष 1935में एडिलेड में मेजर ध्यानचंद से मुलाकात की थी। मेजर ध्यानचंद को खेलते देख सर डॉन ब्रैडमैन ने कहा था कि ध्यानचंद ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं ! इससे यह खुश होकर आस्ट्रिया के खेलप्रेमी लोग अपने देश की राजधानी वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगवाए हैं,यह मूर्ति यह दिखाने का परिचायक है कि उनकी हॉकी में कितना जादू था !
हाकी स्टिक को भी तोड़कर जांचा गया था !
मेजर ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दूसरे खिलाड़ियों की अपेक्षा इतने गोल कैसे कर लेते हैं ? इसकी जांच करने के लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़ कर जांचा गया था ! नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर यह चेक किया गया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी है !
राष्ट्रीय स्वाभिमान से कभी भी समझौता नहीं !
दुनिया में हाकी के इस महानतम् हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने अतंरराष्ट्रीय हॉकी मैचों में कुल 400गोल दागे ! अपने 22 वर्ष के हॉकी करियर में उन्होंने अपने खेल से पूरी दुनिया को हैरान और स्तब्ध कर दिया ! भारत ने 1936 के ओलंपिक हॉकी फ़ाइनल में जर्मनी को 8-1 से हरा दिया था। जिसमें ध्यानचंद ने अकेले 3 गोल किए थे। भारत की इस जीत के बाद हिटलर तुंरत स्टेडियम छोड़ कर चला गया था,लेकिन बर्लिन ओलिंपिक में मेजर ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर जर्मनी का तत्कालीन तानाशाह शासक एडोल्फ हिटलर ने उनके सम्मान में उन्हें अपने साथ डिनर करने के लिए आमंत्रित किया था ! जर्मन तानाशाह ने उन्हें जर्मनी की फौज में बड़े पद का लालच दिया और जर्मनी की ओर से हॉकी खेलने को कहा। लेकिन ध्यानचंद ने एडोल्फ हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए एडोल्फ हिटलर को दो टूक शब्दों में जवाब दे दिया था कि, ‘हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं उसी के लिए आजीवन हॉकी खेलता रहूंगा !’
सुप्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर भी मेजश्र ध्यानचंद के जबर्दस्त फैन थे ! एक बार मुंबई में हो रहे एक हाकी मैच में वे अपने साथ लब्धप्रतिष्ठित अमर गायक कुंदन लाल सहगल को भी ले आए थे। जब हाफ़ टाइम तक कोई गोल नहीं हो पाया तो सहगल ने कहा कि हमने दोनों भाइयों का बहुत नाम सुना है,मुझे ताज्जुब है कि आप में से कोई आधे समय तक एक भी गोल नहीं कर पाया। मेजर ध्यानचंद ने तब सहगल से पूछा कि क्या हम जितने गोल मारेंगे उतने गाने हमें आप सुनाएंगे,उन्होंने स्वीकृति में अपना सिर हिलाया,तब दूसरे हाफ़ में मेजर ध्यानचंद जी और उनके भाई दोनों ने मिल कर 12 गोल दागे ! हॉकी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद में गोल करने की अद्भुत और अद्वितीय कला थी,हाकी के खेल के मैदान में जब इनकी हाकी स्टिक को गेंद स्पर्श करती थी,तो विपक्षी टीम हतोत्साहित होकर लगभग बिखर सी जाती थी !..और यह लगभग मान लिया जाता था कि अब गोल होना निश्चित है !
ऐसे कुलदीपक खिलाड़ी को सर्वोच्च पुरस्कार क्यों नहीं !
लेकिन बड़े दु:ख और अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि ऐसे देशभक्त,स्वाभिमानी, जर्मनी के खूंख्वार तानाशाह एडोल्फ हिटलर को अपने देश के स्वाभिमान की खातिर दो-टूक करारा जवाब दे देने वाले कुलदीपक,देश के गौरव को बढ़ाने वाले अमर सपूत,हाकी के महान जादूगर खिलाड़ी को वर्ष 2014में इस देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने की चर्चा जोरों पर थी,लेकिन तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने अपने वोटों की लालच और कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के लाबिंग के दबाव में आकर आनन-फानन में एक ऐसे शख्स को भारत रत्न के पुरस्कार से नवाज दिया गया,जो देश के स्वाभिमान की लाज रखने उसके माथे को विश्व में ऊंचा रखने में अपना अप्रतिम सहयोग देने वाले मेजर ध्यानचंद के समकक्ष कहीं नहीं ठहरता ! ऐसे कुलदीप मेजर ध्यानचंद की पूर्णतया उपेक्षा करके, क्रिकेट की दुनिया के एक ऐसे शख्स को जो अपने जीवन भर क्रिकेट के खेल में अपना एक -एक रन का का पौने तीन-तीन लाख रूपये वसूली करता रहा,जिसके पास आज नौ अरब छिहत्तर करोड़ रूपये का यानी 9760000000 रूपये स्वामी है,जिसके पास लगभग दो -दो करोड़ की पाँच विदेशी मंहगी गाड़ियां हैं। इसके अतिरिक्त केरल के सुन्दर समुद्र तट पर,लंदन में और बैंकाक में अत्याधुनिक सुविधाओं से पूर्ण आलीशान विला हैं ! को भारत रत्न दे दिया गया !
भारत को हाकी में वह गौरव फिर कभी नहीं मिला !
ये भी बहुत उल्लेखनीय बात है कि हाकी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद के हाकी से संन्यास लेने के बाद भारत हाकी के खेल में कभी भी वह गौरवमयी स्थान पुनः हासिल नहीं कर पाया,जो मेजर ध्यानचंद के जीवन काल में सम्मान अर्जित किया था ! पूरे एक चौथाई सदी तक विश्व हॉकी जगत के शिखर पर रहनेवाले हाकी के जादूगर की तरह छाए रहने वाले भारत के इस महान और कालजयी कुलदीपक और दुनिया भर में भारत के आन-बान और शान को रौशन करनेवाले हाकी के स्वर्ण युग के महानायक मेजर ध्यानचंद का 3 दिसंबर वर्ष 1979 को नई दिल्ली में देहांत हो गया। उनके सम्मान में झांसी मेंं उनका अंतिम संस्कार परंपरागत् रूप से किसी नदी के घाट पर न करके उस मैदान पर किया गया,जहां वे हॉकी खेला करते थे !