
अशोक भाटिया
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बड़ा राजनीतिक फैसला लिया है। पार्टी ने ऐलान किया है कि वह इस बार बिहार में छह विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। इनमें चकाई, धमदाहा, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती सीट शामिल हैं। इस कदम को महागठबंधन के लिए झटका माना जा रहा है, क्योंकि अब तक उम्मीद थी कि झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन के तहत ही चुनाव मैदान में उतरेगी।
बताया जाता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी ने महागठबंधन के घटक दलों, खासकर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस से कई दौर की बातचीत की थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन सीटों पर दावेदारी जताई थी जहां उसके कार्यकर्ता लंबे समय से सक्रिय हैं और जे डी यू – भाजपा गठबंधन के खिलाफ लगातार काम करते आ रहे हैं। लेकिन बातचीत के बावजूद सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई। सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आर जे डी और कांग्रेस के लिए कई सीटें छोड़ी थीं, फिर भी अब तक उन्हें पर्याप्त सम्मान नहीं मिला। उन्होंने कहा, “हमने हमेशा गठबंधन की भावना से काम किया, लेकिन जब हमारे सहयोगी ही संवाद से बचने लगें, तो हमें अपने रास्ते खुद तय करने पड़ते हैं।
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राष्ट्रीय जनता दल को छह सीटें दी थीं और वर्तमान मंत्रिमंडल में राजद के एक विजयी उम्मीदवार के लिए एक महत्वपूर्ण पद सुरक्षित किया था। उन्होंने पुष्टि की कि झारखंड मुक्ति मोर्चा बिहार में धमदाहा, चकाई, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती सीटों से अपने उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी ने उन इलाकों को चुना है जो झारखंड की सीमा से सटे और आदिवासी बहुल हैं। इन इलाकों में झारखंड मुक्ति मोर्चा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा का मानना है कि इन क्षेत्रों में उसका संगठन मजबूत है और वह स्वतंत्र रूप से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने बताया था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहले ही तेजस्वी यादव से बातचीत की थी और सीटों के लिए प्रस्ताव भी भेजा था, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। इसलिए पार्टी ने अब स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा का अलग होकर लड़ना महागठबंधन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है, खासकर सीमावर्ती और आदिवासी बहुल इलाकों में। इन इलाकों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की सक्रियता वोटों के बंटवारे का कारण बन सकती है, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हो सकता है।
आश्चर्य तो इस बात का भी है पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा था और घमासान शुरू हो गया ।घटक दलों के बीच तनाव इस कदर है कि टूट की आशंका जाहिर की जा रही है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी गठबंधन से अलग हो चुकी है और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने छह सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।अगर झामुमो अपने दावे पर कायम रहा तो 20 से अधिक सीटों पर एनडीए के बदले महागठबंधन के घटक दलों के बीच ही हो जाएगी। इधर कांग्रेस का आंतरिक असंतोष भी बाहर हो रहा है। पार्टी के दो पूर्व विधायकों-गजानन शाही और बंटी चौधरी ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी के अल्लाबारू पर आलाकमान को अंधेरे में रख कर पैरवी वालों को उम्मीदवार बनाने का आरोप लगाया है।
महागठबंधन में विवाद की शुरुआत बेगूसराय के बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा के बाद हुई। 2024 के चुनाव में भाकपा यहां दूसरे स्थान पर थी। कांग्रेस ने उस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे गरीब दास को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। भाकपा की त्वरित प्रतिक्रिया हुई।उसने कांग्रेस की सिटिंग सीट राजापाकर पर अपना उम्मीदवार उतार दिया। रोसड़ा में कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी। भाकपा ने रोसड़ा के साथ बिहारशरीफ में भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी।इसके बाद राजद ने भी कांग्रेस के दावे वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारना शुरू कर दिया। राजद ने कांग्रेस के कोटे की वारसलीगंज, वैशाली और लालगंज पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है।राजद कांग्रेस की अंदरूनी विवाद में फंसी सिंकदरा विधानसभा क्षेत्र पर भी दावा कर रहा है। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी सिकंदरा से राजद उम्मीदवार हो सकते हैं।विवाद का असर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार की विधानसभा सीट कुटुंबा पर भी पड़ रहा है। पूर्व मंत्री सुरेश पासवान यहां से राजद उम्मीदवार हो सकते हैं।
इधर कांग्रेस का आंतरिक असंतोष भी बाहर हो रहा है। पार्टी के दो पूर्व विधायकों-गजानन शाही और बंटी चौधरी ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी के अल्लाबारू पर आलाकमान को अंधेरे में रख कर पैरवी वालों को उम्मीदवार बनाने का आरोप लगाया है।महागठबंधन में विवाद की शुरुआत बेगूसराय के बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा के बाद हुई। 2024 के चुनाव में भाकपा यहां दूसरे स्थान पर थी। कांग्रेस ने उस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे गरीब दास को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
भाकपा की त्वरित प्रतिक्रिया हुई। उसने कांग्रेस की सिटिंग सीट राजापाकर पर अपना उम्मीदवार उतार दिया। रोसड़ा में कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी। भाकपा ने रोसड़ा के साथ बिहारशरीफ में भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी।इसके बाद राजद ने भी कांग्रेस के दावे वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारना शुरू कर दिया। राजद ने कांग्रेस के कोटे की वारसलीगंज, वैशाली और लालगंज पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है।राजद कांग्रेस की अंदरूनी विवाद में फंसी सिंकदरा विधानसभा क्षेत्र पर भी दावा कर रहा है। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी सिकंदरा से राजद उम्मीदवार हो सकते हैं।
असल में कांग्रेस दोहरे संकट की शिकार हो गई है। इसके कारण उसे उम्मीदवार भी बदलना पड़ रहा है। जाले से पहले के लिए घोषित उम्मीदवार को बदल कर राजद से आए ऋृषि मिश्रा को सिंबल दिया गया है।नरकटियागंज के लिए घोषित राजन तिवारी के बदले कांग्रेस ने शाश्वत केदार पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने जमालपुर की अपनी जीती हुई सीट पर उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की और वहां शुक्रवार को नामांकन भी समाप्त हो गया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने गठबंधन के प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस पर बिहार विधानसभा चुनाव में धोखा देने का गंभीर आरोप लगाया है। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने पार्टी कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि राजद ने बार-बार आश्वासन देकर झामुमो को ठगा, जिसके चलते पार्टी ने बिहार में छह सीटों—चकाई, धमदाहा, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती—पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।सुप्रियो ने कहा कि झारखंड में झामुमो ने हमेशा राजद को सम्मान दिया। 2019 के विधानसभा चुनाव में राजद को सात सीटें दी गईं, जिनमें से एकमात्र विजयी उम्मीदवार सत्यानंद भोक्ता को पांच साल तक कैबिनेट मंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से सम्मान दिया और हर कार्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया।2024 के चुनाव में राजद को छह सीटें दी गईं, जिनमें चार उम्मीदवार जीते और एक को महत्वपूर्ण विभाग के साथ कैबिनेट मंत्री बनाया गया। सुप्रियो ने कहा, ‘हमने राजद को झारखंड में पूरा सम्मान दिया, लेकिन बिहार में हमें बार-बार इंतजार करने की नसीहतें मिलीं। झामुमो सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन सम्मान से समझौता नहीं।
अब तक महागठबंधन जिसे दोस्ताना संघर्ष का नाम दे रहा था, वो आपसी सिर-फुटव्वल साबित हुआ। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के साथ जो हुआ और जो प्रतिक्रिया आई, वो तो साफ संकेत है। इस सिर फुटौव्वल को दोस्ताना संघर्ष कहकर महागठबंधन के नेता जो डैमेज कंट्रोल करना चाहते थे, उनकी हद कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने खींच दी। ये और बात है कि महागठबंधन की तरफ से इस नाम पर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश हो रही है कि नामांकन वापस हो जाएगा। लेकिन, बात तो अभी बिगड़ी हुई है। आप भी जानिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के साथ क्या हुआ और उन्होंने क्या कहा?
ये तो कई सीटों को लेकर चल रहा था, मगर अब महागठबंधन के साथी दल आमने-सामने हो गए है। इसकी पराकाष्ठा तब सामने आई जब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की कुटुंबा विधानसभा सीट पर भी राजद ने अपना कैंडिडेट उतार दिया। कुटुंबा से पूर्व मंत्री सुरेश पासवान ने लालटेन के सिंबल पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। वहीं, राजेश राम भी यहां से नामांकन करने जा रहे हैं।
तो ये मान लिया नहीं जाए कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने मोर्चा खोल दिया! इसे राजेश राम के पोस्ट से समझिए। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, ‘दलित दबेगा नहीं – झुकेगा नहीं अब इंकलाब होगा। जय बापू, जय भीम, जय संविधान, जय कांग्रेस। महागठबंधन की इस कलह ने एनडीए के नेताओं को भी हमले का नया हथियार दे दिया है। चिराग पासवान ने कहा कि “जो लोग बिहार को स्थिर सरकार देने की बात करते हैं, वे खुद अपने घर को नहीं संभाल पा रहे।” भाजपा के प्रवक्ताओं ने भी इसे नेतृत्व संकट और अवसरवाद की पराकाष्ठा बताया है। कुटुंबा की यह लड़ाई सिर्फ एक सीट का झगड़ा नहीं, बल्कि महागठबंधन की एकजुटता की परीक्षा बन गई है।
बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में होने हैं, 6 नवंबर और 11 नवंबर को मतदान होगा, जबकि गिनती 14 नवंबर को की जाएगी। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा का यह फैसला आने वाले दिनों में महागठबंधन की रणनीति और सीट समीकरण पर बड़ा असर डाल सकता है।