अखिलेश का सियासी शिगूफा बन गया है हर बात का बतंगड़ बनाना

Making trouble out of everything has become Akhilesh's political trap

अजय कुमार

ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हर बात पर विवाद खड़ा करना अपना सियासी शिगूफा बना लिया है। वह उन मुद्दों पर तो बोलते ही हैं जिस पर उनका बोलना उचित लगता है। परंतु कुछ ऐसे मसलों पर भी वह विवादित खड़ा कर देते हैं,जिस पर उनको प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए। अखिलेश न जाने यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि इससे उनको और उनकी पार्टी को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। दरअसल, अबकी से आम चुनाव में सपा को उम्मीद से अधिक सफलता मिलने के बाद अखिलेश यादव अपने गिरेबां में झांकने की बजाये विरोधियों को गिरेबां में झांकने में ज्यादा समय लगा रहे हैं। अखिलेश के बड़बोलेपन के चलते उनकी पार्टी के अन्य नेता भी अनाप-शनाप बोलने लगे हैं।हालात यह है कि अखिलेश के बड़बोलेपन के कारण कांग्रेस ने भी अखिलेश से दूरी बनाना शुरू कर दी है। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक साथ होने का दावा कर रहे हैं,लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव जहां उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पटकनी देने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे है,वहीं इसी के चलते कांग्रेस ने पहले हरियाणा में सपा को कोई तवज्जो नहीं दी और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस अखिलेश यादव को आईना दिखाने में लगे हैं।
खैर, बात अखिलेश के द्वारा हर मुद्दे को विवादित रूप दिये जाने की कि जाये तो अयोध्या में प्रभु श्री राम का मंदिर बनता है तो वह उस तक पर विवाद खड़ा कर देते हैं। ऐसे ही एनकांउटर,चुनाव की तारीख बदलने,मठाधीश को माफिया बताना साधू संतों के बार में उनका यह कहना कि ‘भाषा से पहचानिए असली सन्त महन्त, साधु वेष में घूमते जग में धूर्त अनन्त। ’ जननायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर हंगामा खड़ा करना काफी लम्बी लिस्ट है। अब अखिलेश ने डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को मिलने पर विवाद खड़ा कर दिया है।

दरअसल, 04 नवंबर को योगी कैबिनेट बैठक में डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को देने को लेकर मंजूरी दी गई थी। इसके बाद यूपी में डीजीपी की नियुक्ति राज्य सरकार के स्तर से ही हो सकेगी। इस पर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सरकार पर तंज कसा है। कहा कि कहीं दिल्ली से अपने हाथ में लगाम लेने की कोशिश तो नहीं है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा कि, सुना है, किसी बड़े अधिकारी को स्थाई पद देने और उसका कार्यकाल दो वर्ष तक बढ़ाने की व्यवस्था बनाई जा रही है। अब सवाल यह है कि व्यवस्था बनाने वाले खुद दो वर्ष रहेंगे या नहीं ? इसके बाद उन्होंने तंज कसते हुए लिखा कि कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है? दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0।

बता दें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने इस बाबत पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश के पुलिस बल प्रमुख) चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 को मंजूरी प्रदान की गई थी। इसमें हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में मनोनयन समिति गठित करने का प्राविधान किया गया है। वहीं डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया है। मनोनयन समिति में मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नामित अधिकारी, उप्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या नामित अधिकारी, अपर मुख्य सचिव गृह, बतौर डीजीपी कार्य कर चुके एक सेवानिवृत्त डीजीपी सदस्य होंगे। इस नियमावली का उद्देश्य डीजीपी के पद पर उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति के चयन के लिए स्वतंत्र एवं पारदर्शी तंत्र स्थापित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसका चयन राजनीतिक या कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त है।

लब्बोलुआब यह है कि अखिलेश भले ही विकास की राजनीति की बात करते हों,लेकिन उनकी सियासत का ताना बाना जातिवाद के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है। वह प्रदेश में फिर से अपनी जड़े जमाने के लिये पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक(पीडीए) वोटरों का गठजोड़ बनाने में लगे हैं,वहीं बीजेपी अखिलेश के इस गठजोड़ को
पूरी तरह से हासिये पर ढकेल देना चाहती है।बीजेपी की पूरी नजर पिछड़ा और दलित वोटरों पर है। सवर्ण मतदाता तो उसके साथ पहले से ही हैं।पिछड़ो और दलितों को अगड़े समाज के साथ खड़ा करने के लिये ही योगी ने बटोगे तो कटोगे वाला बयान दिया था।यही नहीं बीजेपी लगातार समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाती रहती है कि समाजवादी पार्टी तुष्टिकरण की सियासत करती है। पार्टी का कोई मुस्लिम नेता किसी पिछड़ा या दलित समाज के साथ घिनौने से घिनौना अपराध भी करता है तो अखिलेश चुप रहते हैं।