गोपेन्द्र नाथ भट्ट
भारत ही दुनिया भर में एक अर्थ शास्त्री के रूप मशहूर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह सदैव के लिए मौन हो गए। गुरुवार की रात दिल्ली के एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। 92 वर्षीय डॉ मनमोहन सिंह ढलती उम्र से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित थे।
डॉ मनमोहन सिंह, अपने राजनीतिक जीवन की अंतिम पारी में राजस्थान से राज्यसभा सदस्य थे। वे बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले ऐसे महापुरुष थे जिन्हें देश में आर्थिक उदारीकरण का श्रेय जाता है।
डॉ मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरुशरण कौर की सादगी एवं शालीन व्यवहार की बानगी का स्वयं गवाह रहा हूँ। अशोक गहलोत राजस्थान के पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। वे दिल्ली दौरे पर थे और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भेंट कर रहे थे। इसी कड़ी में वे तुगलक रोड स्थित डॉ मनमोहन सिंह के निवास पर पहुंचे। उन दिनों वे राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
नेताओं के घरों की तरह की भव्यता से दूर सादे से बंगले में कोई चहल पहल नहीं थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ जब हम उनके निवास पहुंचे तो डॉ मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरुशरण कौर ने स्वयं गहलोत की अगवानी की और अपने हाथों से चाय बना कर सभी को आवभगत की।
मई 2004 में जब सोनिया गाँधी ने अपनी जगह डॉ मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बनाने का निर्णय लिया तब भी तुगलक रोड वाला बंगला शांत ही था लेकिन जब एस पी जी और दिल्ली पुलिस के अधिकारी और जवान वहां पहुंचें तो यह वीरान बंगला रौनक से भर गया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ एक बार फिर उनके निवास पर बधाई देने जाने का अवसर मिला लेकिन डॉ मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरुशरण कौर की सादगी एवं शालीन व्यवहार में रत्तीभर भी बदलाव नहीं देख मन आदर से भर गया।
राजस्थान के डॉ धर्मेन्द्र भंडारी से उनके परिवार के निजी संबंध थे। वे उनकी पुस्तकों के लोकार्पण समारोह में भाग लेते थे और उनके द्वारा मुंबई से लाए जाने वाले हापुस आमों को बहुत खुश होकर खाने के शौकीन थे।
उनकी तीन बेटियों में से एक बेटी चाणक्यपुरी में हमारी पड़ोसी थी लेकिन उनमें भी अपने परिवार के वही संस्कार थे जिसकी वजह से वे प्रधानमंत्री की बेटी होने के कारण पूरे समय छोटे से सरकारी क्वाटर में ही रही। अलबत्ता एसपीजी वालों की उनकी सुरक्षा को लेकर अलग व्यवस्थाएं अवश्य करनी पड़ी।
उल्लेखनीय है कि मनमोहन सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत के बाद वे पण्डित जवाहर लाल नेहरु के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बने, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था। इन्हें पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में केन्द्रीय वित्त मंत्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों का श्रेय भी दिया जाता हैं।
1985 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि 1990 में वह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया।
डॉ मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को एक उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा। मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
डॉ सिंह पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स में प्रोफेसर के पद पर थे। 1971 में मनमोहन सिंह भारत सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए थे। 1972 में मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष। मनमोहन सिंह 1991 में राज्यसभा के सदस्य बने। 1998 से 2004 में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। मनमोहन सिंह ने प्रथम बार 72 वर्ष की उम्र में 22 मई 2004 से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके पश्चात् लोकसभा के चुनाव हुए और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हुई है। दूसरी बार फ़रवरी 2009 में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनकी शल्य-चिकित्सा की। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। लेकिन 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। परन्तु भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उसे उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा है। 26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया। दिल दहला देने वाले उस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था।तब सिंह ने शिवराज पाटिल को हटाकर पी. चिदम्बरम को गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी और प्रणव मुखर्जी को नया वित्त मंत्री बनाया।
डॉ मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब में 26 सितम्बर,1932 को हुआ था।उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। यहाँ पंजाब विश्व विद्यालय से उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे आगे की पढ़ाई के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पीएच. डी. की। तत्पश्चात् उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय विश्विद्यालय से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ॰ सिंह ने अर्थ शास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्व विद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन और सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डॉ॰ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी के अध्यक्ष भी रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ॰ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरुशरण कौर और तीन बेटियाँ हैं।