सरकार हिंसा का राजनितिक हल निकालने के चक्कर में फिर सुलगता मणिपुर

प्रदीप शर्मा

मणिपुर में मई से शुरू हुआ हिंसा-आगजनी का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले कुछ दिनों की स्थिति देखकर लग रहा था कि राज्य शांति की तरफ बढ़ेगा, लेकिन हाल में दो लापता छात्रों के शव बरामद होने के बाद इंफाल में नये सिरे से हिंसा बढ़ गई है। आगजनी व हिंसक झड़पों के बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा है और कई थाना क्षेत्रों में फिर कर्फ्यू लगाना पड़ा है। पड़ोसी देश म्यांमार से मणिपुर में सक्रिय अतिवादियों को हथियार व अन्य मदद मिलने की खबरों के बाद राज्य के 19 पुलिस थाना क्षेत्रों को छोड़कर शेष राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम अफस्पा छह महीने के लिये बढ़ा दिया गया है। लेकिन लगता नहीं है कि यह कदम हिंसा को थामने में मददगार होगा।

मैतेई समुदाय के दो छात्रों के अपहरण व हत्या के बाद नये सिरे से भड़की हिंसा में पुलिस से टकराव में डेढ़ सौ के करीब छात्र घायल हुए हैं। इस घटना के प्रकाश में आने के बाद सीबीआई के एक स्पेशल डायरेक्टर को एक टीम के साथ अपहरण व हत्या मामले की जांच के लिये इंफाल भेजा गया है। हालांकि, कूकी बहुल पहाड़ी इलाकों में अफस्पा लगाने और मैतेई बहुल इलाकों को अफस्पा से मुक्त रखने को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। दरअसल, इस स्पेशल पावर एक्ट के तहत सेना को अशांत इलाकों में कार्रवाई के लिये विशेष अधिकार मिल जाते हैं।

विपक्षी दलों का कहना है कि कानून व्यवस्था में तभी सुधार संभव है जब पूरे राज्य में अफस्पा लागू हो। उनका मानना है कि यह फैसला रणनीतिक कम व राजनीतिक ज्यादा है। दरअसल, स्थानीय सुरक्षा तंत्र द्वारा गृह मंत्रालय को अवगत कराया गया है कि राज्य में सक्रिय कई प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन कैडर, हथियार व गोला-बारूद जुटा रहे हैं। यहां तक कि ये संगठन म्यांमार से अपने मददगारों के संपर्क में हैं और राज्य में अपना आधार मजबूत कर रहे हैं। जिनके तार चीन तक जुड़ते हैं।

निश्चित रूप से फिलहाल मणिपुर में विभिन्न संगठनों द्वारा जिस तरह हथियार व गोला बारूद जुटाया जा रहा है, उससे नहीं लगता कि यह संघर्ष जल्दी थमेगा। इस संघर्ष में विदेशी फेक्टर का शामिल होना, जैसे कि राज्य सरकार भी कह रही है, बेहद चिंता की बात है। जाहिर है राज्य में तीन मई के बाद भड़की हिंसा के बाद जो शांति स्थापित करने की कोशिश हो रही थी, उसे हालिया हिंसा से फिर झटका लगा है। राज्य में हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों का मरना और हजारों का बेघर होना, ऐसे जख्म दे गया है, जिन्हें जल्दी से भरना कठिन होगा।

इस मुद्दे पर विपक्ष ने भी तीखे तेवर दिखाए और संसद में कड़ा प्रतिरोध किया। यहां तक कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी संसद में लाया गया था। यही वजह है कि दो महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार का वीडियो वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रवैया दिखाया था। साथ ही स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र व राज्य सरकार को चेताया था कि आप कुछ कीजिए, नहीं तो हम करेंगे। साथ ही शीघ्र कार्रवाई के लिये चेताया था कि देरी की वजह से सबूत गायब हो जाएंगे। जाहिर बात थी कि सुप्रीम कोर्ट राज्य प्रशासन की अक्षमता व लापरवाही से खासी क्षुब्ध था। निस्संदेह, मणिपुर में राज्य सरकार हिंसा रोकने के मामले में पूरी तरह विफल रही है।

हाल ये है कि राज्य में हिंसा की घटनाओं का क्रम जारी है। यहां तक कि राहत व पुनर्वास के प्रबंधन पर सवाल उठाये जा रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि एक समुदाय में पुलिस-प्रशासन को लेकर अविश्वास का संकट बना हुआ है। जिसके चलते ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की निगरानी के लिये पूर्व महिला जजों की एक समिति बनायी थी। जिसका दायित्व राहत व पुनर्वास के काम की निगरानी करना था। पुलिस के प्रति अविश्वास के चलते ही निगरानी के लिये बाहरी राज्यों के पुलिस अधिकारियों की राज्य में तैनाती के आदेश अदालत ने दिये थे। यह चिंताजनक बात है कि लोग पुलिस-प्रशासन के प्रति अविश्वास जताएं। बहरहाल, इस संकट के समाधान को केंद्र-राज्य के साझे प्रयासों की सख्त जरूरत है।