गोपेंद्र नाथ भट्ट
18 वीं लोकसभा के गठन और नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी एनडीए दलों के सामने लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव, लोकसभा और विधानसभाओं के उप चुनाव,हरियाणा और महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनावों की चुनौतियों का सामना करने के साथ ही भाजपा के सामने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आरएसएस के साथ संबंधों की निकटता कायम करने के अलावा प्रदेशों के संगठनों में बदलाव और कई प्रदेशों में राज्यपालों की नियुक्तियां आदि कई कठिन एवं अहम परीक्षाएं है।
भाजपा के सामने सबसे पहली प्राथमिकता अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनना है। वर्तमान अध्यक्ष जे पी नड्डा का कार्यकाल 30 जून को पूरा हो रहा है।जे पी नड्डा, नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाए गए है और उनके पुनः राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना नहीं है। जे पी नड्डा के स्थान पर अब किसे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा इसका पटाक्षेप आने वाले एक दो दिनों में हो जाएगा। इसी प्रकार लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव भी एक बड़ी कसौटी है। 17 वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में यह पद रिक्त रहा था। इस बार कांग्रेस और साथी दल तथा एनडीए के सहयोगी दल भी इस पर नजरें गढ़ाए हुए हैं।
इसके अलावा भाजपा अगले महीने अपने कुछ राज्यों के प्रदेशाध्यक्ष भी बदलेगी। जिन प्रदेशाध्यक्षों को बदला जाना है उसमें राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष सांसद सी पी जोशी का नाम भी शामिल बताया जा रहा है। इसके अलावा बिहार, केरल, अंडमान, गुजरात, हरियाणा,दिल्ली और नॉर्थ ईस्ट के कुछ राज्यों के प्रदेशाध्यक्ष भी बदले जा सकते है। इसके साथ ही कुछ राज्यों के राज्यों में प्रभारी और संगठन मंत्री भी बदले जाने की संभावना है । राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के प्रभारी शायद यथावत रहेंगे। बताया जा रहा है कि राजस्थान के प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे यथावत रहेंगे क्योंकि उनकी नियुक्ति विधानसभा चुनाव के वक्त ही हुई थी। इसके साथ ही हरियाणा के प्रभारी सतीश पूनियां को भी नहीं बदला जाएगा क्योंकि इस साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले है। ऐसे में भाजपा पूनियां को प्रभारी के तौर पर बरकरार रखना चाहती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भाजपा अगले माह करीब 8 राज्यों के प्रदेशाध्यक्ष बदल सकती है। दिल्ली में लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजों से भाजपा खुश है,ऐसे में भाजपा यहां के प्रभारी ओमप्रकाश धनखड़ को नहीं बदलेगी।
इसके अलावा विधायक से सांसद बनने वाले और एक से अधिक सीटों से चुनाव जीतने वाले और एक सीट से त्यागपत्र देने वाले सांसदों की रिक्त हुई लोकसभा सीटों पर होने वाले उप चुनावों की व्यूह रचना बनाने का काम भी काफी अहम है, जिस पर उच्च स्तर पर रणनीति बनाने की तैयारियां की जा रही है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कुछ प्रदेशों के राज्यपालों की नियुक्ति अथवा उनका कार्यकाल बढ़ाने की कसौटी भी है। कुछ प्रदेशों के राज्यपालों के कार्यकाल इसी वर्ष पूर्ण हो रहा रहे है जिनमें राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र और प्रधान मंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत तथा उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के नाम भी शामिल है। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत का कार्यकाल आगामी 22 जुलाई तथा उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और बिहार के राज्यपाल फागुसिंह चौहान का कार्यकाल 29 जुलाई को पूरा होने जा रहा है। साथ ही छत्तीसगढ़ की अनुसुइया का भी 29 जुलाई को और आंध्र प्रदेश के विश्व भूषण हरिचंदन का कार्यकाल 24 जुलाई को पूर्ण हो रहा है। इसके अलावा केरल के आरिफ मोहम्मद खान का कार्यकाल 6 सितंबर को तथा तेलंगाना की तमिलसाई सुंदर राजन का कार्यकाल भी 8 सितंबर को पूर्ण होने जा रहा है।
राजस्थान में भी पांच विधायकों के सांसद बन जाने से खाली हुई विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने है जिन्हे जीतना भाजपा और प्रतिपक्ष दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के समक्ष मुंह बाएं खड़ी है कई कठिन परीक्षाओं का सामना आने वाले दिनों में वे किस प्रकार करते हैं?